गोरखपुर से उगे, देश भर में चमके हिंदी के सितारे

in #wortheum2 years ago

समकालीन हिंदी साहित्य का परिवेश गढ़ने में गोरखपुर की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहां से निकले साहित्यकार देश के कोने-कोने में हिंदी का मान बढ़ा रहे हैं। अलग-अलग शहरों में रहकर अलग-अलग विधाओं में गोरखपुर का गौरव बढ़ा रहे ऐसे ही कुछ रचनाकारों के बारे में बता रहे हैं सुपरिचित कवि प्रमोद कुमार।

समकालीन हिंदी साहित्य का परिवेश गढ़ने में गोरखपुर की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहां से निकले साहित्यकार देश के कोने-कोने में हिंदी का मान बढ़ा रहे हैं। अलग-अलग शहरों में रहकर अलग-अलग विधाओं में गोरखपुर का गौरव बढ़ा रहे ऐसे ही कुछ रचनाकारों के बारे में बता रहे हैं सुपरिचित कवि प्रमोद कुमार।

राम दरश मिश्र
हिंदी में राम दरश मिश्र की राष्ट्रीय पहचान है। इनका जन्म गोरखपुर के डुमरी गांव में हुआ। इनकी आत्मकथा ‘सहचर है समय’ में गोरखपुर की मिटटी की खुशबू है। सन 1956 में बडौदा में हिंदी प्राध्यापक के रूप में नियुक्ति हुई। 1970 में दिल्ली से प्रोफेसर के रूप में सेवामुक्त हुए और दिल्ली में ही रह गए, लेकिन गोरखपुर से उनका नाता कभी टूटा नहीं। रामदरश मिश्र ने कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना और निबंध जैसी प्रमुख विधाओं में तो लिखा ही है, आत्मकथा, यात्रा वृत्त तथा संस्मरण भी लिखे हैं। यात्राओं के अनुभव ‘तना हुआ इन्द्रधनुष, ‘भोर का सपना’ तथा ‘पड़ोस की खुशबू’ में अभिव्यक्त हुए हैं। इन्हें अनेक प्रतिष्ठित सम्मान मिले हैं, जिनमें व्यास सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि प्रमुख हैं। ‘पानी के प्राचीर’, ‘बीच का समय’ समेत 15 उपन्यास, खाली घर ,सर्पदंश समेत 12 कहानी संग्रह, ‘पथ के गीत’, बैरंग चिट्ठियां समेत 9 कविता व गीत संग्रह सहित अनेक पुस्तकें प्रकाशित हैं।

भगवान सिंह
गोरखपुर जिले के गगहा नामक कस्बे में 1 जुलाई 1931 को जन्मे भगवान सिंह राष्ट्रीय ख्याति के लेखक हैं। उन्होंने गौतम बुद्ध के जीवन पर आधारित ‘ महाभिषग’ उपन्यास लिखा, जिसमें बुद्ध को एक महापुरुष के रूप में पाठकों के सामने रखा। उनका ‘अपने-अपने राम’ रामकथा का औपन्यासिक सृजन है, यहाँ राम प्रचलित अर्थों के राम नहीं हैं। इनकी प्रकाशित कृतियों में ‘काले उजले टीले’, ‘महाभिषग’, ‘अपने-अपने राम’, ‘परम गति’, ‘उन्माद’, ‘शुभ्रा’, ‘अपने समानान्तर’, ‘इन्द्र धनुष के रंग’ प्रमुख हैं । इनकी शोधपरक पुस्तकों में ‘आर्य-द्रविड़ भाषाओं की मूलभूत एकता, ‘हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य’, ‘दि वेदिक हड़प्पन्स’, ‘भारत तब से अब तक’, ‘भारतीय सभ्यता की निर्मिति’, ‘भारतीय परम्?परा की खोज’, ‘प्राचीन भारत के इतिहासकार’, ‘कोसम्बी- मिथक और यथार्थ’, ‘इतिहास का वर्तमान’ आदि बहुचर्चित हैं।

स्वप्निल श्रीवास्तव
गोरखपुर ने जिन्हें अपना बना लिया, उनमें स्वप्निल श्रीवास्तव का भी नाम है। सिद्धार्थ नगर में जन्मे स्वप्निल कुशीनगर से इंटर पास करने के बाद स्नातकोत्तर करने के लिए गोरखपुरविश्व विद्यालय आए। यहां के प्रसिद्ध लेखकों परमानंद श्रीवास्तव, देवेन्द्र कुमार बंगाली आदि से सम्पर्क हुआ और कविता की दुनिया के हो गये। आज इनकी गिनती हिन्दी के श्रेष्ठ कवियों में की जाती है। इन्हें भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, केदार सम्मान, शमशेर सम्मान, तथा रूस का पुश्किन सम्मान मिल चुका है। ईश्वर एक लाठी है, ताख पर दियासलाई, जिंदगी का मुकदमा जैसे चर्चित कविता संग्रहों सहित इनकी 9 पुस्तकें प्रकाशित हैं।

कात्यायनी
अपने ज्वलंत और जीवंत लेखन के लिए सुपरिचित तथा व्यवस्था के दुर्ग द्वार पर लगातार धावा बोलनेवाली कवि कात्यायनी का जन्म 7 मई 1959 को गोरखपुर में हुआ। गोरखपुर विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में उच्च शिक्षा के पहले और बाद भी वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से संबद्ध रहीं और स्त्री-श्रमिक-वंचित वर्ग से जुड़े प्रश्नों पर सक्त्रिस्य रही हैं। आजकल उनका कार्यक्षेत्र मुख्यत: लखनऊ है। कात्यायनी की प्रतिबद्धता उनके जीवन और उनकी कविताओं में अभिव्यक्त होती है। भाषा के स्तर पर उन्होंने कविता में संभ्रांत और आभिजात्य के दबदबे को चुनौती दे उसे लोकतांत्रिक बनाया है। ‘चेहरों पर आँच’, ‘सात भाइयों के बीच चंपा’, ‘इस पौरुषपूर्ण समय में’, ‘जादू नहीं कविता’, ‘राख अँधेरे की बारिश में’, ‘फ़ुटपाथ पर कुर्सी’ और ‘एक कुहरा पारभाषी’ उनके काव्य-संग्रह हैं। ‘दुर्ग-द्वार पर दस्तक’, ‘कुछ जीवंत कुछ ज्वलंत’ और ‘षड्यंत्ररत मृतात्माओं के बीच’ उनके निबंधों के संग्रह हैं।

जितेंद्र श्रीवास्तव
मूलत: देवरिया जिले के रहने वाले जितेंद्र श्रीवास्तव ने स्नातक की अपनी पढ़ाई गोरखपुर में पूरी की और उस दौरान वह यहां के साहित्यकारों के संपर्क आये और यहीं से लिखना शुरू किया। बाद में वह जेएनयू, नई दिल्ली से हिंदी साहित्य में परास्नातक और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की । वर्तमान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली मानविकी विद्यालय में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर हैं। उनके नाम पर 24 पुस्तकें हैं, जिनमें कविता संग्रह ‘इन दिनों हालचाल’, ‘अनभै कथा’, ‘असुंदर-सुंदर’, ‘बिलकुल तुम्हारी तरह’, कायान्तरण’ आदि, आलोचना में ‘भारतीय समाज’, ‘राष्ट्रवाद और प्रेमचंद’, ‘सर्जक का स्वप्न’, ‘विचारधारा’, ‘नए विमर्श’ आदि प्रमुख हैं। उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं जिनमें भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, देवीशंकर अवस्थी सम्मान, भारतीय भाषा परिषद पुरस्कार, कृति सम्मान आदि शामिल हैं।

अशोक कुमार पाण्डेय
‘कश्मीरनामा‘ पुस्तक के लिए चर्चित कवि, कथाकार और अनुवादक अशोक कुमार पाण्डेय का भी गोरखपुर से गहरा सम्बन्ध है। गोरखपुर से ही इन्हें विद्रोही तेवर और लेखन के संस्कार मिले। ‘कश्मीरनामा’ ने कश्मीर के छुपे हुए यथार्थ को जिस तरह उजागर किया है, उससे देश को नए सिरे से देखने समझने एक नया नज़रिया मिला है। इनकी पुस्तकें ‘कश्मीर और कश्मीरी पंडित’, ‘उसने गाँधी को क्यों मारा’ और ‘सावरकर- कालापानी और उसके बाद’ भी चर्चित हैं । लगभग अनामंत्रित, प्रलय में लय जितना और प्रतीक्षा का रंग सांवला उनके प्रकाश्ाित कविता संग्रह हैं।

सदानंद शाही
भोजपुरी और हिंदी की सेवा में निरंतर क्त्रिस्याशील प्रो सदानंद शाही गोरखपुर के ही माने जाते हैं, हांलाकि इनका जन्म कुशीनगर जिले के सिंगहा गाँव में हुआ। पर इनके व्यक्तित्व का विकास इनके छात्र जीवन में गोरखपुर में ही हुआ। गोरखपुर विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान इनकी साहित्यिक प्रतिभा निखरी। ये अभी बीएचयू में प्रोफेसर पद पर आसीन हैं। गोरखपुर में प्रेमचंद साहित्य संसथान की स्थापना एवं संचालन में इनका बड़ा योगदान है। साखी नामक एक साहित्यिक पत्रिका का संपादन भी करते हैं। ‘असीम कुछ भी नहीं’ नाम से इनका एक कविता संग्रह, शोध पुस्तक ‘अपभ्रंश के धार्मिक मुक्तक और संत काव्य’ चर्चित हैं।

वशिष्ठ अनूप
वशिष्ठ अनूप (मूल नाम वशिष्ठ द्विवेदी) का जन्म गोरखपुर जिले में ही हुआ और शिक्षा दीक्षा हिंदी विभाग गोरखपुर विश्व विद्यालय से हुई, जहाँ से इन्होंने स्नाकोतर और पीएचडी की। अनूप आजकल बीएचयू में हिंदी के प्रोफेसर हैं और कवि आलोचक व गज़लकार के रूप में प्रसिद्ध हैं । अपने छात्र जीवन से ही प्रो अनूप हिंदी गज़लें कह रहे हैं । प्रगतिशील चेतना से लैस इनकी कविताओं और गीत गज़लों में शोषित, वंचित समाज के यथार्थवादी चित्रण दृष्टव्य है। इनकी अनेक पुस्तकें प्रकशित हैं। चेतना सम्मान सहित कई सम्मानों से सम्मानित हैं।

प्रदीप मिश्र
प्रदीप मिश्र समकालीन कविता में एक सुपरिचित नाम हैं। गोरखपुर के अशोक नगर के मूल निवासी प्रदीप मिश्र इंदौर, मध्य प्रदेश में राजा रामन्ना प्रगत प्रौद्योगिकी केंद्र में वैज्ञानिक अधिकारी हैं और साहित्यिक -सांस्कृतिक गतिविधियों सतत सक्त्रिस्य हैं। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक प्रदीप मिश्र ने स्नातकोतर हिंदी साहित्य से किया। इनके दो कविता संग्रह ‘फिर कभी’ और ‘उम्मीद’ छपे हैं। वैज्ञानिक उपन्यास ‘अंतरिक्ष नगर‘ और बाल उपन्यास ‘मुट्ठी में किस्मत’ चर्चित रहे हैं। मलखान सिंह सिसौदिया पुरस्कार सहित कई सम्मानों से सम्मानित हैं।

और जो यहीं रहकर बढ़ा रहे हिंदी का मान
आचार्य रामदेव शुक्ल, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, महेश अश्क, कृष्ण चन्द्र लाल, देवेंद्र आर्य, अनंत मिश्र, मदन मोहन, गणेश पाण्डेय, रवींद्र श्रीवास्तव जुगानी, कपिल देव, राजा राम चौधरी, जय प्रकाश मल्ल, अरविंद त्रिपाठी, प्रमोद कुमार, वीरेंद्र मिश्र दीपक, राजेश मल्ल, मनोज सिंह, दीपक त्यागी, अनिल राय, देवेन्द्र नाथ द्विवेदी, वेद प्रकाश, रंजना जायसवाल, कलीमुल हक, सुरेंद्र शास्त्री, प्रदीप सुविज्ञ, आरडीएन श्रीवास्तव, सृजन गोरखपुरी, अमित कुमार आदि।

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