मोबाइल के ‘परदादा जी’ का नाम जानते हैं क्या था?…‘लवर्स फोन’
ये बात है. 1672 के आसपास की. उस वक्त एक अंग्रेज वैज्ञानिक होते थे रॉबर्ट हुक. उन्होंने अपने शोध के दौरान पाया कि बिजली के तार के जरिए आवाज सामान्य से अधिक दूर तक पहुंच सकती है. लिहाज़ा उन्होंने सूप पीने के काम आने वाली लकड़ी की दो कटोरियों के तल्ले में छेद किया. फिर उन्हें लंबे बिजली के तार से जोड़ दिया. इसके बाद दूर कोने में उसका सिरा पकडा़कर अपने एक सहयोगी को खड़ा किया. दूसरे सिरे पर वे ख़ुद खड़े हो गए और कटोरी मुंह से लगाकर सहयोगी से पूछा, ‘क्या तुम्हें मेरी आवाज़ आ रही है…..?’ सहयोगी ने अपने सिरे वाली कटोरी कान से लगा रखी थी. उसमें उसने हुक की आवाज सुनी और फिर कटोरी मुंह से लगाकर जोर से ज़वाब दिया, ‘हां, आ रही है….’ हुक को अपना यह प्रयोग सफल होते दिख रहा था. लेकिन उन्होंने तसल्ली करने के लिए अगली बार टीन की दो छोटी केनों (जिनमें एनर्जी ड्रिंक वगैरह आता है) का इस्तेमाल कर वैसा ही प्रयोग किया. इस बार तार की दूरी भी बढ़ाई. पहले की तरह यह प्रयोग भी सफल रहा.