पीटीआर में सिस्टम घाघ : कैसे सुरक्षित हों बाघ

in #ptr2 years ago

-पीटीआर में बाघ संरक्षण के लिए प्रशिक्षित स्टाफ का अभाव, नहीं मिली टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स

पीलीभीत। टाइगर रिजर्व की स्थापना से लेकर अब तक 19 बाघ व शावकों के असमय मारे जाने एवं दर्जन भर से अधिक बाघ व शावकों को रेस्क्यू करके दूसरे चिड़िया घरों या टाइगर रिजर्व में भेजा जाना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। बाघ संरक्षण में सबसे बड़ी बाधा टाइगर रिजर्व में अधिकारियों व कर्मचारियों का प्रशिक्षित ना होना भी है। बरसों से पुराने ढर्रे पर काम कर रहे अधिकारी व कर्मचारी बाघ संरक्षण की कसौटियों पर फिलहाल खरे नहीं उतर पा रहे हैं। टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स की तैनाती भी स्थापना से लेकर अब तक इस टाइगर रिजर्व में नहीं हो पाई है, इसके चलते बाघ व शावकों की मौत निरंतर होती जा रही है। वनाधिकारी इन मौतों को स्वाभाविक मृत्यु करार देकर पर्दा डालने के अलावा फिलहाल और कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघों की वंश वृद्धि के लिए काफी अनुकूल वातावरण है और इसी के तहत टाइगर रिजर्व को टीएक्स-2 अवार्ड ग्लोबल लेवल पर मिला है परंतु टाइगर रिजर्व की स्थापना से अब तक 19 बाघ, तेंदुआ व शावकों की मौत से वन्य जीव प्रेमी निराश हैं और अफसरों की चुप्पी के बाद अब लोग मौतों के कारणों पर चर्चा करके इसके कारण भी तलाशने लगे हैं।
अधिकांश लोगों का मानना है कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व 2014 में बना था तब से लेकर अब तक यहां टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स तैनात नहीं की गई है। यहां जो रेंजर से लेकर नीचे स्तर के अधिकारी व कर्मचारी हैं वह भी लगभग अनट्रेंड हैं। कई रेंजर ऐसे भी हैं जो पीलीभीत के वनों में ही फॉरेस्ट गार्ड की नौकरी शुरू करके प्रोन्नति पाकर फारेस्टर और रेंजर बने हैं, उन्हें बाहर के किसी टाइगर रिजर्व में काम करने का बिल्कुल अनुभव नहीं है। उनके स्थानीय होने के कारण भी बाघ संरक्षण में कई तरह की बाधाएं आती हैं। टाइगर रिजर्व घोषित होने के बाबजूद वनों के अंधाधुंध कटान का कारण भी इन अधिकारियों का स्थानीय होना माना जा रहा है। बड़े अधिकारी जान कर भी अंजान बने हुए हैं और कोई एक्शन लेना पसंद नहीं करते। शायद इसी कारण टाइगर रिजर्व में बाघ कुत्ते की मौत मर रहे हैं।
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