कुढ़नी विधानसभा उपचुनावः नीतीश कुमार की लोकप्रियता और साख दांव पर

in #nitishkumar2 years ago

फ़ज़ल इमाम मल्लिक

बिहार में सियासत का नया मैदान अब कुढ़नी बना गया है. मुजफ्फरपुर जिले के कुढ़नी में पांच दिसंबर को उपचुनाव होना है और इसी वजह से फिलहाल कुढ़नी बिहार की सियासत के केंद्र में है. महागठबंधन और भाजपा आमने-सामने है. खेल बनाने और बिगाड़ने के लिए मुकेश साहनी की वीआईपी और एआईएमआईएम के उम्मीदवार भी हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में राजद ने भाजपा को हराया था. लेकिन राजद के अनिल सहनी अयोग्य घोषित किए गए और इसी वजह से यहां उपचुनाव हो रहा है. पिछले महीने हुए दो सीटों पर हुए उपचुनाव में राजद और भाजपा ने अपनी-अपनी सीटें बरकरार रखीं थीं. अब कुढ़नी में महागठबंधन की साख दांव पर है. राजद ने गठबंधन धर्म निभाते हुए अपनी जीती सीट जदयू को दे दिया. जदयू ने पूर्व विधायक मनोज कुशवाहा को यहां से उम्मीदवार बनाया है. भाजपा ने पिछला चुनाव हार गए केदार गुप्ता पर भी दांव खेला है. वीआईपी ने या है. भाजपा ने पिछला चुनाव हार गए केदार गुप्ता पर भी दांव खेला है. वीआईपी ने भी दांव खेला है और भुमिहार जाति का उम्मीदवार खड़ा कर भाजपा की परेशानी बढ़ाई है.
हाजीपुर खत्म होते ही मुजफ्फरपुर जिला कुढ़नी विधानसभा सीट से ही शुरू होता है. मुजफ्फरपुर शहर से पहले नेशनल हाईवे 77 पर दोनों तरफ कुढ़नी विधानसभा का इलाका आता है. वैशाली जिले की सीमा से सटा कुढ़नी खेती किसानी के लिए जाना जाता है.
पांच दिसंबर को इस सीट पर उपचुनाव का नतीजा क्या आएगा यह तो आट दिसंबर को पता चलेगा, लेकिन इस सीट ने बिहार में सियासी संग्राम को तेज कर दिया है. पिछले चुनाव में अनिल सहनी यहां से जीते थे. घोटाले में फंसने की वजह से उनकी सदस्यता चली गई थी. इसी वजह से उपचुनाव हो रहा है. कुढ़नी के उपचुनाव से पहले बिहार में दो सीटों पर उपचुनाव हुआ था और नतीजों के बाद सामाजिक समीकरणों और जातीय गोलबंदी को लेकर नतीजों का विशलेषण किया गया.
कुढ़नी में उम्मीदवार को लेकर भाजपा पसोपेश में थी. पहले किसी भुमिहार को ही उतारने का भाजपा ने तय किया था. क्योंकि बिहार की राजनीति में इन दिनों भूमिहार वोट की काफी चर्चा होती रही है. गोपालगंज से लेकर मोकामा तक भूमिहार जाति की गोलबंदी की चर्चा हुई और अब कुढ़नी में भी भुमिहारों की भूमिका पर ही चर्चा हो रही है. बोचहा उपचुनाव में भाजपा से भुमिहारों के मोह भंग होने की चर्चा खूब ही थी.
बोचहां में भाजपा से भूमिहारों की नाराजगी ने पार्टी के लिए परेशानी खड़ी की थी. इसका असर गठबंधन टूटने से लेकर महागठबंधन मंत्रिमंडल और मोकामा में अनंत सिंह की जीत तक दिखा है. मुजफ्फरपुर जिले में भूमिहारों की नाराजगी स्थानीय वजहों से है. असल में मुजफ्फरपुर शहर में भूमिहार जाति से आने वाले भाजपा विधायक और मंत्री रहे सुरेश शर्मा पिछला चुनाव में हार गए. इस हार की एक बड़ी वजह यह रही कि भाजपा के कोर वोटर माने जाने वाले वैश्य समुदाय ने इस सीट पर महागठबंधन के उम्मीदवार विजेंद्र चौधरी को वोट किया. मुजफ्फरपुर और कुढ़नी विधानसभा आसपास है लिहाजा इस समीकरण ने कुढ़नी पर भी असर डाला. कुढ़नी में तब भाजपा ने वैश्य उम्मीदवार केदार गुप्ता को उतारा था. भूमिहारों ने मुजफ्फरपुर का बदला कुढ़नी में भाजपा से लिया और वैश्य उम्मीदवार के खिलाफ वोट देकर हरा दिया. अब उन्हीं केदार गुप्ता को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है.
जातिगत समीकरण की बात करें तो कुढ़नी में भूमिहार, कोइरी, मल्लाह, यादव वोटरों की संख्या अच्छी खासी है. मुसलमान और वैश्य वोटर भी प्रभावशाली हैं. उपचुनाव में जातियों का खेल होगा. भुमिहार वोटरों को एकजुट करने के लिए भाजपा ने भुमिहार नेतओं की फौज उतार दी है. मुकेश सहनी ने पूर्व विधायक साधु शरण शाही के पोते नीलाभ को टिकट देकर भाजपा की परेशानी बढ़ाई है. साधु शरण शाही चार बार विधायक रहे और 1990 में आखिरी बार जीते साधु शरण शाही इस सीट से आखिरी भूमिहार विधायक थे. 1995 में भूमिहार जाति के बाहुबली अशोक सम्राट निर्दलीय चुनाव लड़े थे और लालू की पार्टी के बसावन भगत जो कि कोइरी जाति के थे उनसे हारे थे. 2000 में एनडीए ने ब्रजेश ठाकुर को उतारा था जो बिपीपा के उम्मीदवार थे. ब्रजेश ठाकुर बालिका गृह कांड में जेल में बंद हैं. 2005-2015 तक मनोज कुशवाहा जेडीयू के विधायक रहे. 2015 में केदार गुप्ता बीजेपी से जीते. 2020 में अनिल सहनी आरजेडी के टिकट पर महज 712 वोट से विजयी हुए थे. एआईएमआईएम ने भी अपना उम्मीदवार दिया है लेकिन मुसलमानों की तादाद गोपालगंज की तरह यहां नहीं है इसलिए कितनी और कहां तक मुसलमान वोटों में एआईएमआईएम सेंधमारी कर पाती है यह बड़ा सवाल है.
महागठबंधन की साख दांव पर है लेकिन उससे कहीं ज्यादा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता की परख होनी है. भाजपा से अलग होने के बाद जदयू पहला चुनाव लड़ रहा है इसलिए कुढ़नी उसकी प्रतिष्ठा का सवाल है और नीतीश कुमार की लोकप्रियता का भी. भाजपा ने हालांकि अपना उम्मीदवार जरूर उतारा है लेकिन उसकी अपनी परेशानी है. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का एक वीडियो वायरल हो रहा है जिससे पार्टी की निराशा को समझा जा सकता है. संजय जायसवाल चुनाव प्रचार में लोगों से कह रहे हैं कि इस चुनाव से सरकार की सेहत पर असर नहीं पड़ेगा. इस चुनाव में जीत-हार बहुत मतलब नहीं रखता, समझ लें कि यह मुखिया का चुनाव हो रहा है. इस वीडियो में उनकी हताशा साफ झलकती है. बहरहाल आठ नवंबर को ही फैसला होगा कि उपचुनाव में किसने बाजी मारी. महागठबंधन की जीत का मतलब है नीतीश का मजबूत होता. क्या ऐसा हो पाएगा, बड़ा सवाल यह है.
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