कारगिल: 15 गोलियां लगने के बाद भी लड़ते रहे परमवीर योगेंद्र सिंह यादव

in #cargil2 years ago

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परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव.

26 जुलाई 1999..

कारगिल की लड़ाई के 23 साल हो चुके हैं. भारत सरकार इसे कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाती है.

3 जुलाई, 1999 को टाइगर हिल पर बर्फ़ पड़ रही थी. रात साढ़े नौ बजे ऑप्स रूम में फ़ोन की घंटी बजी. ऑपरेटर ने कहा कि कोर कमांडर जनरल किशन पाल मेजर जनरल मोहिंदर पुरी से तुरंत बात करना चाहते हैं.
दोनों के बीच कुछ मिनटों तक चली बातचीत के बाद पुरी ने 56 माउंटेन ब्रिगेड के डिप्टी कमांडर एसवीई डेविड से कहा, 'पता लगाओ क्या टीवी रिपोर्टर बरखा दत्त आसपास मौजूद हैं? और क्या वो टाइगर हिल पर होने वाली गोलीबारी की लाइव कमेंटरी कर रही हैं?'

लेफ़्टिनेंट जनरल मोहिंदर पुरी याद करते हैं, 'जैसे ही मुझे पता चला कि बरखा दत्त टाइगर हिल पर हमारे हमले की लाइव कमेंट्री दे रही हैं, मैं उनके पास जा कर बोला, इसे तुरंत रोक दीजिए. हम नहीं चाहते कि पाकिस्तानियों को इसकी हवा लगे."

जनरल पुरी ने कहा, "मैंने इस हमले की जानकारी सिर्फ़ अपने कोर कमांडर को दी थी. उन्होंने इसके बारे में सेना प्रमुख को भी नहीं बताया था. इसलिए मुझे ताज्जुब हुआ कि बरखा दत्त इतने संवेदनशील ऑपरेशन की लाइव कमेंट्री कैसे कर रही हैं?"
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कारगिल युद्ध के दौरान पत्रकार बरखा दत्त ने लाईव रिपोर्टिंग की थी.

टाइगर हिल पर कब्ज़े का ऐलान

4 जुलाई को उस वक्त के रक्षा मंत्री जार्ज फ़र्नांडिस ने टाइगर हिल पर कब्ज़े की घोषणा की, उस समय तक भारतीय सैनिकों का उस पर पूरी तरह कब्ज़ा नहीं हुआ था.

टाइगर हिल की चोटी तब भी पाकिस्तानियों के कब्ज़े में थी. उस समय भारतीय सेना के दो बहादुर युवा अफ़सर लेफ़्टिनेंट बलवान सिंह और कैप्टन सचिन निंबाल्कर टाइगर हिल की चोटी से पाकिस्तानी सैनिकों को हिलाने में एड़ी चोटी का ज़ोर लगाए हुए थे.

वो अभी चोटी से 50 मीटर नीचे ही थे कि ब्रिगेड मुख्यालय तक संदेश पहुंचा, 'दे आर शॉर्ट ऑफ़ द टॉप.'

श्रीनगर और ऊधमपुर होता हुआ जब तक ये संदेश दिल्ली पहुंचा उसकी भाषा बदल कर हो चुकी थी, 'दे आर ऑन द टाइगर टॉप.' रक्षा मंत्री तक ये संदेश उस समय पहुंचा जब वो पंजाब में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने आव देखा न ताव, उसकी दोबारा पुष्टि किए बग़ैर वहीं ऐलान कर दिया कि टाइगर हिल पर अब भारत का कब्ज़ा हो गया है

पाकिस्तान का जवाबी हमला

जनरल मोहिंदर पुरी बताते हैं कि उन्होंने जब कोर कमांडर जनरल किशनपाल को इसकी ख़बर दी तो उन्होंने पहला वाक्य कहा, 'जाइए, फ़ौरन जाकर शैंपेन में नहा लीजिए.'

उन्होंने सेनाध्यक्ष जनरल मलिक को ये ख़बर सुनाई और उन्होंने मुझे फ़ोन कर इस सफलता पर बधाई दी.

लेकिन कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई थी. टाइगर हिल की चोटी पर जगह इतनी कम थी कि वहाँ पर कुछ जवान ही रह सकते थे.

पाकिस्तानियों ने अचानक ढलानों पर ऊपर आ कर भारतीय जवानों पर जवाबी हमला किया.

उस वक़्त बादलों ने चोटी को इस कदर जकड़ लिया था कि भारतीय सैनिकों को पाकिस्तानी सैनिक दिखाई नहीं दे रहे थे. इस हमले में चोटी पर पहुंच चुके सात भारतीय जवान मारे गए.

मिराज 2000 की भीषण बमबारी

16700 फ़ीट ऊँची टाइगर हिल पर कब्ज़ा करने की पहली कोशिश मई में की गई थी लेकिन उन्हें बहुत नुकसान उठाना पड़ा था.

तब ये तय किया गया था कि जब तक पास की चोटियों पर कब्ज़ा नहीं हो जाता, टाइगर हिल पर दूसरा हमला नहीं किया जाएगा.

3 जुलाई के हमले से पहले भारतीय तोपों की 100 बैट्रियों ने एक साथ टाइगर हिल पर गोले बरसाए.

उससे पहले मिराज 2000 विमानों ने 'पेव वे लेज़र गाइडेड' बम गिरा कर पाकिस्तानी बंकरों को ध्वस्त किया.

इससे पहले दुनिया में कहीं भी इतनी ऊँचाई पर इस तरह के हथियार का इस्तेमाल नहीं हुआ था.

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