कोरोना संक्रमण कि शीघ्र और सटीक जांच के लिए आई आई टी इंदौर ने की 2डी तकनीक टी ने

in #wortheumnewslast year

Screenshot_20230413_093350~2.jpg
Corona Testing Indore: इंदौर के क्षेत्र में इंदौर लगातार नई-नई उपलब्धियां हासिल कर रहा है। यहां के तकनीकी संस्थानों में लगातार जारी रहने वाले शोध देश-दुनिया को कई सौगातें दे रहे हैं।हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) इंदौर ने डीप लर्निंग आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआइ) आधारित एक पद्धति विकसित की है। इसके जरिए चेस्ट सीटी स्कैन को पढ़ने के लिए अपनाई जाने वाली मैन्युअल विधि की जगह आधुनिक विधि से कोरोना संक्रमण की सटीक जांच की जा सकती है।

फेफड़ों की सूजन का पता भी इससे आसानी से लगाया जा सकता है। आइआइटी ने इस शोध में कलिंगा विश्वविद्यालय (केआइआइटी) भुवनेश्वर और चोइथराम हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर इंदौर को साथ लिया। आइआइटी इंदौर के प्रोफेसर डा. हेमचंद्र झा व डा. एम तनवीर, केआइआइटी के प्रोफेसर डा. निर्मल कुमार मोहकुद और चोइथराम हास्पिटल की डा. सुचिता जैन ने मिलकर इस शोध को सफलतापूर्वक किया है।

मैन्युअल प्रक्रिया के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा

संक्रमण की जांच करने के लिए सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) का उपयोग होता है जो शरीर में इन्फेक्शन के स्तर को बताता है। इससे संक्रमण कितना फीसद है यह पता लगाया जाता है। बात अगर सीटी स्कैन को पढ़ने की होती है तो यह मैन्युअल प्रक्रिया है। इसमें कई तरह की समस्याएं आती हैं। सीटी स्कैन के परिणामों का और बारीकी से अध्ययन करने के लिए शोधकर्ताओं ने 2-डी यू नेट आधारित विधि का उपयोग किया है। इससे फेफड़ों में मौजूद संक्रमण का सूक्षमता से पता लगाया जा सकता है। सीटी स्कैन की मैन्युअल प्रक्रिया में जहां 80 फीसद सटीकता होती है, वहीं इस 2-डी तकनीक से 90 फीसद तक संक्रमण का सही-सही पता लगाया जा सकता है।

फेफड़ों के रोग समझने में भी मदद मिलेगी

डा. हेमचंद्र झा ने कहा कि संक्रमण का प्रभाव फेफड़ों के दाहिने लोब से शुरू होता है जो बाद में फेफड़ों के बाकी हिस्सों को प्रभावित कर सकता है। हमने जो शोध किया है उससे फेफड़ों में फैलते संक्रमण का शीघ्र और सटीकता से पता लगाया जा सकता है। शोध में 1100 से अधिक कोरोना संक्रमित रोगियों के नमूनों का उपयोग किया गया। इससे आगे अगर शोध किया जाता है तो इससे बड़ी आबादी पर कोरोना संक्रमण के विभिन्न वैरिएंट के साथ, फेफड़े के लोब में जैव रासायनिक परिवर्तनों के पैटर्न को समझने में भी मदद मिल सकती है।

ऐसे काम करती है नई तकनीक

डा. हेमचंद्र झा ने बताया कि कोरोनाकाल में मैं भी संक्रमित हो गया था। उस दौरान मैंने देखा कि सीटी स्कैन से संक्रमण की जो स्कैलिंग की जाती है उसमें सटीक परिणाम की जरूरत है। संक्रमण की बारीकी को पता करने के लिए और भी आधुनिक विधि की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद इस पर कार्य शुरू किया। नई विधि में सीटी स्कैन की इमेज को आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस आधारित साफ्टवेयर में अपलोड किया जाएगा। इससे साफ्टवेयर में पहले से मौजूद डेटा से संक्रमण की बारीकी को अच्छी तरह से जांचा जा सकता है। सटीक परिणाम आने से मरीज और डाक्टर दोनों को और बेहतर तरीके से इलाज कराने के रास्ते खुलेंगे। इस साफ्टवेयर को हम सार्वजनिक करेंगे, ताकि कोई भी इसका निश्शुल्क उपयोग कर सके। इस क्षेत्र में शोध की और भी संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। इस पर आगे शोध जारी रखेंगे।