CWG 2022: भारतीय मुक्केबाज के बेटे का वेटलिफ्टिंग में कमाल, गोल्ड जीत कमाया नाम

in #wortheum2 years ago

जेरेमी लालरिननुंगा शुरुआत में तो अपने पिता की राह पर चले थे, मगर बाद में उन्होंने अपना खेल बदल दिया

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भारत के चैंपियन मुक्केबाज के 19 साल के बेटे ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में कमाल कर दिया. जेरेमी लालरिननुंगा ने वेटलिफ्टिंग में मैंस 67 किग्रा में गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया है. यूथ ओलिंपिक गेम्स में गोल्ड जीतने वाले पहले भारतीय जेरेमी ने बर्मिंघम में कुल 300 किलो वजन उठाया. कभी रिंग में मुक्कों की बरसात करने वाले जेरेमी की वेटलिफ्टिंग में कदम रखने की कहानी काफी दिलचस्प है.

नेशनल चैंपियन रह चुके हैं जेरेमी के पिता

दरअसल जेरेमी के पिता जूनियर नेशनल चैंपियन मुक्केबाज रह चुके हैं. जेरेमी और उनके 4 भाई भी पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए मुक्केबाजी के रिंग में उतरे, मगर जेरेमी सिर्फ तब तक ही मुक्केबाज कहलाए, जब तक उन्होंने वेटलिफ्टिंग नहीं देखी थी. कुछ समय पहले एक इंटरव्यू में जेरेमी ने कहा था कि मेरे गांव में एक एकेडमी थी, जहां कोच वेटलिफ्टिंग की ट्रेनिंग दे रहे थे. मैंने मेरे दोस्तों को ट्रेनिंग करते हुए देखा और सोचा कि स्ट्रैंथ का खेल है और मुझे भी इसकी जरूरत है.

2011 में करियर ने ली करवट

जेरेमी में करियर ने उस समय करवट ली, जब उनका चयन 2011 में आर्मी इंस्टीट्यूट ट्रायल्स के लिए हो गया और यही से जेरेमी का पेशेवर वेटलिफ्टिंग सफर शुरू हुआ. इसके बाद उन्होंने 2016 में वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप में 56 किग्रा भार वर्ग में सिल्वर मेडल जीता. इसके अगले साल उन्होंने इसी इवेंट में एक और सिल्वर जीता. जेरेमी ने इसके बाद जूनियर एशियन चैंपियनशिप 2018 में ब्रॉन्ज मेडल जीता. जेरेमी ने 7 साल की उम्र में मुक्केबाजी शुरू की थी, जबकि उनके पिता ने 1988 में बॉक्सिंग शुरू की थी. जेरेमी के पिता के अनुसार उनका सपना इंटरनेशनल स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करना था, मगर उनका ये सपना पूरा नहीं हो पाया. इसी वजह से वो चाहते थे कि उनके बेटे मुक्केबाज बने.

फाइनल में मिली कड़ी टक्कर

जेरेमी को फाइनल में कड़ी टक्कर मिली. उन्होंने स्नैच में 140 किलो और क्लीन एंड जर्क में 160 किलो का भार उठाया. सामोआ के नेवो ने उन्हें कड़ी टक्कर दी, जिन्होंने 293 किलो भार उठाकर सिल्वर जीता. नेवो आखिरी प्रयास में 174 किलो का भार नहीं उठा पाए थे, जिस वजह से उन्हें सिल्वर से ही संतोष करना पड़ा.

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