दिल्ली हाई कोर्ट ने जज शब्द के दुरुपयोग मामले पर नोटिस जारी किया

in #wortheum2 years ago

Screenshot_20220422-155957_Jagran.jpgनई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जज शब्द के दुरुपयोग मामले पर नोटिस जारी किया है। इसमें कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ ने प्रतिवादी, हाई कोर्ट प्रशासन को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है। कोर्ट अब 18 नवंबर को मामले की सुनवाई करेगा।

दरअसल, अदालत अधिवक्ता संसेर पाल सिंह की याचिका में उन लोगों के खिलाफ कानूनी या विभागीय जांच की मांग की गई है, जो अपने वाहनों पर धोखाधड़ी से 'जज' शब्द अंकित करवा कर या स्टिकर चिपकाकर उसका दुरुपयोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस तरह के प्रिंटआउट और स्टिकर का धोखाधड़ी से इस्तेमाल सुरक्षा के लिए खतरा है, क्योंकि ऐसे वाहनों को सुरक्षा कर्मचारियों द्वारा तलाशी के लिए नहीं रोका जाता है। याचिका में दिल्ली जिला अदालतों के न्यायिक अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की गई है, जिन्होंने वर्ष 2018 के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए जज वाहन पार्किग स्टिकर प्राप्त किया था।

जनहित याचिका खारिज

दिल्ली हाई कोर्ट ने बृहस्पतिवार को ओखला औद्योगिक क्षेत्र में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण को लेकर दाखिल एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि सामान रखकर 24 घंटे तक अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ओखला के स्ट्रीट वेंडर्स समूह ने यह जनहित याचिका मार्च में आए हाई कोर्ट के उस आदेश के विरोध में दाखिल की थी, जिसमें कोर्ट ने दक्षिणी दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) को किसी भी अनधिकृत निर्माण को तुरंत हटाने का निर्देश दिया था।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार एक विक्रेता को 24 घंटे सामान को वेंडिंग के स्थान पर रखने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि बिक्री की आड़ में आप स्टाल लगाकर क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं कर सकते। वहीं, याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि उनके पास बिक्री के लिए लाइसेंस हैं और हाई कोर्ट के उक्त आदेश के बाद उन्हें उनके स्थानों से हटा दिया गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि बिक्री लाइसेंस बिक्री करने का अधिकार देता है, कब्जा करने और सामान को लगातार उस स्थान पर रखने का नहीं। वहीं, कोर्ट ने आवासीय अधिकारों का दावा करते हुए क्षेत्र के झुग्गी निवासियों द्वारा दायर एक आवेदन पर विचार करने से भी इन्कार कर दिया।