पैग़ंबर मोहम्मद मामले में अजित डोभाल पर ईरान का यह दावा कितना सही

in #wortheum2 years ago

Zskj9C56UonZ32EJw6nMdZ9KTTEqRkXAjaDZ4bu6UPEjAQPnqKdZjE7xFatMoenkcLkRwFQ9TuTaxjL6oNpLPSfQKpZ8LjbCSZYyXB1kKS6tGAdjxJW3.webpईरानी विदेश मंत्रालय का दावा
ईरानी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है, ''भारत हमेशा से करुणा और सहिष्णुता का आश्रय रहा है. यहाँ अलग-अलग मतों के साथ लोग रहते हैं. धार्मिक असहिष्णुता न तो भारत को रास आता है और न ही इसकी जड़ों में है. निश्चित तौर पर भारत में सभी धर्मों के लोग इस तरह के बयानों की निंदा करेंगे.''
गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से पूछा गया कि क्या ईरानी विदेश मंत्री के साथ भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की बैठक में पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित बयान को लेकर बातचीत हुई थी? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मेरी समझ है कि यह मुद्दा बातचीत के दौरान नहीं उठाया गया था.

बागची ने कहा कि एक दर्जन से ज़्यादा देशों को भारत ने इस मामले में जवाब दिया है.भारत ने साफ़ कर दिया है कि पैग़ंबर मोहम्मद पर ट्वीट्स और टिप्पणी भारत सरकार की राय और सोच को नहीं दर्शाते हैं.

बागची ने कहा कि इस मामले में सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी और कार्रवाई भी हो चुकी है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि अब इस मामले में कहने के लिए कुछ और नहीं है.

ईरान के उस दावे के बारे में पूछा गया जिसमें उसने बयान जारी कह कहा था कि भारत के एनएसए अजित डोभाल के साथ बैठक में ईरानी विदेश मंत्री ने पैग़ंबर मोहम्मद के अपमान का मुद्दा उठाया था और भारतीय पक्ष ने ऐसा करने वालों से इस तरह निपटने का आश्वासन दिया था, जिससे दूसरे लोग सबक ले सकें. इस पर बागची ने कहा, ''जहाँ तक मुझे पता है कि आप जिस बयान का संदर्भ दे रहे हैं, उसे वापस ले लिया गया है.''

ईरान के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर अजित डोभाल के साथ बैठक की कोई प्रेस रिलीज नहीं है. लेकिन ईरान की ओर से आधिकारिक रूप से इस बात की घोषणा नहीं की गई है कि बयान वापस लिया गया है. हालांकि ईरान सरकार की वेबसाइट पर अजित डोभाल को लेकर जो दावा किया गया है, वो अब भी है.

ईरान ने भारत के एनएसए को लेकर ऐसा दावा क्यों किया और किया तो वापस क्यों लिया? मध्य-पूर्व मामलों के जानकार क़मर आग़ा ने बीबीसी हिन्दी के रजनीश कुमार से कहा, ''एनएसए के साथ ईरानी विदेश मंत्री की क्या बात हुई ये तो कहना मुश्किल है लेकिन इतना स्पष्ट है कि ईरान इस मुद्दे पर टकराव नहीं चाहता है. अगर टकराव चाहता तो वह वापस नहीं लेता बल्कि जवाब देता.''

'ईरान को अगर ज़्यादा आपत्ति होती तो उसके विदेश मंत्री भारत आते ही नहीं. ईरानी विदेश मंत्रालय ने अपना बयान वापस लेकर बता दिया कि वह भारत की कार्रवाई से संतुष्ट है. दूसरी बात यह भी है कि भाषा के स्तर पर समस्या हुई होगी. इन्हें फ़ारसी में अनुवादक ने बताया होगा और अजित डोभाल अंग्रेज़ी में बोल रहे होंगे. इसलिए बाद में वापस में ले लिया.''

क़मर आगा कहते हैं, ''भाषा की ही समस्या हुई होगी तभी ईरान ने वापस लिया क्योंकि ईरानी संबंधों पर असर पड़ने से नहीं डरते और जो होता है, उसे बता देते हैं.''

ईरान और इसराइल के बीच संतुलन
ईरान के विदेश मंत्री के दौरे से पहले इसराइल के रक्षा मंत्री भारत दौरे पर आए थे. कहा जा रहा है कि भारत इसराइल और ईरान के बीच रिश्तों में संतुलन रखना चाहता है.

दोनों देश भारत के लिए अहम हैं लेकिन इसराइल और ईरान के बीच दुश्मनी है. पिछले साल अगस्त महीने में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर तेहरान पहुँचे थे. जयशंकर के दौरे को दोनों देशों के रिश्तों में आई कड़वाहट को कम करने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा था.

पिछले कुछ सालों में कई वजहों से दोनों देशों के बीच दूरियाँ बढ़ती गई थीं. भारत ने अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण ईरान से तेल का आयात बंद कर दिया था और चाबहार पोर्ट में काम को लेकर भी दोनों देशों के बीच पर्याप्त मतभेद थे.

इसके अलावा कश्मीर पर भी ईरान के बयान से भारत नाराज़ रहा है. जयशंकर के दौरे को देखते हुए कहा जा रहा था कि भारत ईरान, अमेरिका, सऊदी अरब और इसराइल के बीच रिश्तों में संतुलन रखना चाहता है.

2014 में भारत की सत्ता में मोदी सरकार के आने के बाद कहा जाता है कि इसराइल से दोस्ती मज़बूत हुई है. प्रधानमंत्री मोदी इसराइल का दौरा करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने. लेकिन मोदी सरकार की विदेश नीति में ईरान को लेकर एक किस्म का दबाव रहा.

भारत और ईरान के बीच रिश्तों का इतिहास
भारत और ईरान के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्तों का इतिहास सदियों पुराना है.
साल 1947 से पहले तक दोनों मुल्क एक दूसरे के पड़ोसी हुआ करते थे.
इसका असर दोनों देशों की भाषा, बोली, और संस्कृति पर नज़र आता है.
जानकार मानते हैं कि इस्लाम का उदारवादी पहलू भी ईरान से ही भारत आया.
भारत और ईरान के बीच व्यापारिक, राजनयिक और सांस्कृतिक रिश्ते भी काफ़ी मजबूत रहे हैं.
एक लंबे समय तक भारत की शासकीय भाषा फारसी हुआ करती थी.
मौजूदा दौर में भी क़ानूनी दस्तावेज़ों में गिरफ़्तार, दरोगा, और दस्तख़त जैसे शब्द आमतौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं.
आम बोलचाल में भी ऐसे कई शब्द हैं जो फारसी भाषा से निकले हैं. इनमें आराम, अफ़सोस और किनारा जैसे शब्द शामिल हैं.

यह दबाव अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण रहा. भारत को अमेरिकी दबाव में ईरान से तेल का आयात रोकना पड़ा था जबकि ईरान भारत को तेल भारतीय मुद्रा रुपया से ही देने को तैयार था. जयशंकर का दौरा तब हुआ है जब अफ़ग़ानिस्तान की सरकार तालिबान के साथ संघर्ष में अस्तित्व के संकट से जूझ रही थी.

पिछले साल अप्रैल में ईरान के तत्कालीन विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान में सुरक्षा का ख़तरा भारत, ईरान और पाकिस्तान तीनों के हक़ में नहीं है.

ईरान शिया इस्लामिक देश है और भारत में भी ईरान के बाद सबसे ज़्यादा शिया मुसलमान हैं. अगर भारत का विभाजन न हुआ होता यानी पाकिस्तान नहीं बनता तो ईरान से भारत की सीमा लगती. पाकिस्तान और ईरान भले पड़ोसी हैं पर दोनों के संबंध बहुत अच्छे नहीं रहे.

मध्य-पूर्व में ईरान एक बड़ा खिलाड़ी है और ऐसा माना जा रहा है कि वहाँ भारत का प्रभाव लगातार कम हो रहा है और चीन के पक्ष में चीज़ें मज़बूती से आगे बढ़ रही हैं.

चीन और ईरान के बीचे होने वाला कॉम्प्रिहेंसिव स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप अग्रीमेंट की रिपोर्ट लीक होने के कुछ दिन बाद ही चाबहार प्रोजेक्ट के लिए रेलवे लिंक को ईरान ने ख़ुद ही आगे बढ़ाना शुरू कर दिया था.