संकट में पृथ्वी, हमारा जीवन नष्ट कर रहा प्लास्टिक

in #wortheum2 years ago

IMG-20220422-WA0003.jpgनई दिल्ली। पूरी धरती पर्यावरण की समस्या से जूझ रही है। नदियां दूषित हो रही है, वन्य जीव विलुप्त हो रहे हैं, प्लास्टिक का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। जागरण न्यू मीडिया के सीनियर एडिटर अनुराग मिश्र और एसोसिएट एडिटर अमित शर्मा ने अपनी अर्थ डे के मौके पर अपनी मुहिम कल की रौशनी आज बचाएं के तहत ग्रीन ऑस्कर विजेता माइक पांडे से बात की।
पृथ्वी के लिए संकट का समय

पृथ्वी इस समय संकट में है। ऐसे संकट में पृथ्वी कभी नहीं थी। क्लाइमेट चेंज की बात हो, ग्लोबल वॉर्मिंग की बात हो सबने धरती को मुश्किल में डाल रखा है। जल प्रदूषित हो गया, नदियां प्रदूषित हो गई, खाना प्रदूषित हो गया। इस समय सबसे घातक चीज जो हमारी मुश्किल बढ़ा रही है वो है प्लास्टिक। प्लास्टिक के कई लाख कण खाना-पानी और अन्य माध्यमों से हमारे शरीर में जा रहे हैं। यह हमारी जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। इससे हजारों बीमारियां पैदा हो रही है। जिस तरह प्लास्टिक का प्रयोग कर रहे हैं वह काफी खतरनाक है। हमें प्लास्टिक के बेवजह इस्तेमाल को रोकना होगा।
स्वास्थ्य के लिए बढ़ा रहा मुश्किल
मनुष्य समेत हर तरह के जीवों के लिए प्लास्टिक घातक है। हम प्लास्टिक को अपने स्वार्थ की वजह से बंद नहीं कर रहे हैं। प्लास्टिक के विघटन में लंबा समय लग जाता है। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति भी प्रभावित होती है। प्लास्टिक के कण हमारी आंखों, दिल और लिवर तक पहुंच रहे हैं। नवजात शिशुओं को यह अनजाने में प्रभावित कर रहे हैं।

प्रकृति को लेकर भूले ज्ञान
जिस प्रकार से हम पानी, संसाधन का दोहन करते हैं, वह सिर्फ फायदे के लिए होता है। अब यह एक सीमा को पार कर चुका है। यह जरूरी है कि उतना ही प्रकृति से लें जितना आवश्यक हो। बाघ एक तादाद के नीचे चले जाएंगे तो उनका लौटना मुश्किल हो जाएगा। हम प्रकृति को लेकर ज्ञान को क्यों भूल गए हैं, इस पर विचार करने की आवश्यकता है। अब समय आ गया है कि हम ठहर कर प्रकृति के बारे में सोचें। हमारी परंपराओं में प्रकृति की पूजा की जाती है। हम नदियों को माता मानते हैं, जल को पवित्र मानते हैं। दुनिया भर में प्रकृति का इस तरह से आदर करने का भाव नहीं है। फिर हम प्रकृति को नेस्तानाबूत करने में क्यों लगे हैं। हमें इस भावना को जमीनी स्तर पर दिखाना होगा। हम गंगा को माता का सम्मान देते हैं। हमें ये ध्यान रखना होगा कि जैसे हम माता को सम्मान देते हैं वैसे ही हमें गंगा को सम्मान देना होगा। हमें बतौर नागरिक सीखना होगा कि कैसे हम प्रकृति को बेहतर कर सकते हैं। हमें अपनी विरासत के बारे में जानना होगा।
हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझें
हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। वह कुछ न कुछ कर सकता है। मैं नौ साल का था। मेरा जन्म अफ्रीका में था। नौ साल की उम्र में मैं जहाज पर सफर कर रहा था। मुझे व्हेल शार्क दिखी। पांच-छह दिन के सफर में मुझे वह लगातार दिखी बाद में उनके बारे में मैं भूल गया। मैंने कुछ सालों के बाद मैंने इस पर फिल्म बनाने के बारे में सोची। गुजरात में बड़ी मशक्कत के बाद मैंने इस पर फिल्म बनाई। मेरी फिल्म बनने के बाद व्हेल शार्क को बचाए जाने के लिए नीतियां बनी।

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