लोगों की जिंदगी में चटक रंग भरने को बेकरार रंगमंच के कलाकार

in #wortheum2 years ago

Screenshot_20220327-180504_Jagran.jpgनई दिल्ली। भारत समेत दुनियाभर में आज विश्व रंगमंच दिवस मनाया जा रहा है। रंगमंच से जुड़े कलाकारों के साथ आम लोग भी इंटरनेट मीडिया के माध्यम से विश्व रंगमंच दिवस पर एक-दूसरे को बधाई दे रहे हैं। कोरोना के मामलों में कमी आने के दो साल बाद रंगमंच की गतिविधियों ने धीमी गति से ही सही, लेकिन रफ्तार पकड़ी है। दिल्ली-एनसीआर से जुड़े तमाम रंगमंच के कलाकारों को उम्मीद है कि कोरोना के मामले थमने के बाद रंगमंच जल्द ही अपने उसी पुराने रूप में लौटेगा और फिर से सामान्य रूप से नाटकों का मंचन होना शुरू हो जाएगा।

कोरोना ने दी कलाकारों को बड़ी चोट

कोरोना वायरस संक्रमण के चलते पिछले 2 साल से बंद रही रंगमंच की गतिविधियां कलाकरों के लिए किसी बड़ी चोट से कम नहीं हैं। एक ऐसी चोट जिसे देशभर के हजारों कलाकार ताउम्र नहीं भुला पाएंगे। ऑडिटोरियम बंद होने के बाद रंगमंच की ठप हुई गतिविधियों के बाद दिल्ली और मुंबई में तो कई कलाकारों ने आर्थिक अभाव के चलते इससे दूरी बना ली।

रंगमंच की मानसिक खुराक को तरसते रहे कलाकार

नटसम्राट के निर्देशक श्याम कुमार का कहना है कि पिछले 2 साल के दौरान महामारी ने रंगमंच को बहुत नुकसान पहुंचाया। इस दौरान रंगमंच से जुड़े उषा गांगुली और इरफान समेत दिग्गज कलाकार दुनिया छोड़कर चले गए। दुखद यह रहा कि कोरोना के चलते हम लोग उनकी अंतिम यात्रा तक में शामिल नहीं हो पाए। कोरोना ने कलाकारों को आर्थिक रूप से तो नुकसान पहुंचाया ही मानसिक रूप से भी बहुत परेशान किया।

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उनका कहना है कि कोरोना के चलते रोजाना रिहर्सल नहीं हो पा रही थी, जिससे कलाकार मानसिक सुकून की खुराक से दूर रहे। धीरे-धीरे स्थितियां सामान्य हो रही हैं और एक अप्रैल से रंगमंच ऑडिटोरियम के पूरी तरह से खुलने के बाद रंगमंच के हालात सामान्य होने के आसार हैं।

जल्द लौटेगा रंगमंच का वही पुराना दौर

दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले आत्मा राम सनातन धर्म कालेज के प्राचार्य डा. ज्ञानतोष कुमार झा का कहना है कि कोरोना वायरस ने रंगमंच से जुड़े हर कलाकार के मन को ठेस पहुंचाई, जो जूनून के साथ जुड़ा था। कोरोना के चलते पिछले 2 साल के दौरान कलाकरों को जिस असहनीय पीड़ा से गुजरना पड़ा वह असहनीय है। रंगमंच से जुड़े कलाकार पैसे के अभाव में दर्द से गुजरे। आर्थिक संकट का भी सामना किया। ऑडिटोरियम बंद थे, कलाकारों के पास काम नहीं था। बावजूद इसके आत्मा राम सनातन धर्म कालेज ने अपनी ओर से हर संभव प्रयास किए। विश्व रंगमंच 2022 को ध्यान में रखते हुए ही 24 और 25 मार्च को मंडी हाउस स्थित श्रीराम सेंटर सभागार में 7वें रंगशीर्ष जयदेव नाटय उत्सव का आयोजन किया। इसके तहत जगदीश चंद्र माथुर के सुप्रसिद्ध नाटक "कोणार्क" और जाने माने लेखक अशोक लाल के नाटक 'एक मामूली आदमी' का मंचन किया गया। इसके साथ एआरएसडी कालेज की नाट्य संस्थान 'रंगायन' कोरोना के बीच थमी रंगमंच की गतिविधियों के बीच सन्नाटे को तोड़ा है।

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डा. ज्ञानतोष झा ने उम्मीद जताई है कि कोरोना का दौर जल्द ही थमेगा और रंगमंच पुराने रूप में हम सबके सामने होगा। कलाकारों के लिए अच्छा समय आएगा। दरअसल रंगमचं जीवन से सीधे जुड़ा है। रंगमंच होगा तो लोगों को कलाकारों को रोजगार मिलेगा।

देश के जाने माने लेखक डा. जयदेव तनेजा का मानना है कि कोरोना वायरस के चलते रंगमंच की दुनिया पर छाए बादल छट रहे हैं और जल्द ही स्थिति सामान्य होंगी और थिएटर उसी रूप में वापस आएगा, जैसे दो साल पहले था।

कलाकारों को हुआ नुकसान

18 साल से रंगमंच से जुड़ीं मुनमुन का कहना है कि कोरोना के मामलों में कमी आते ही विभिन्न राज्यों की सरकारों ने सिनेमाल, रेस्तरां और बार तक खोल दिए, लेकिन आडिटोरियम बंद रखे, इससे रंगमंच को बहुत नुकसान हुआ। रंगमंच से जुड़े लोगों ने स्टूडियों से जुड़कर भी कुछ करने का प्रयास किया, लेकिन वह आनंद नहीं मिला जो दर्शकों के सामने नाटकों से मिलता है।

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खत्म होने को है बुरा दौर

आत्मा राम सनातन धर्म कालेज की नाट्य संस्था 'रंगायन' से लंबे समय तक जुड़े रहे मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) के युवा रंगकर्मी शुभम गोस्वामी का कहना है कि कोरोना की शुरुआत होने के साथ ही कलाकारों के सामने जीवनयापन का संकट खड़ा हो गया। रंगमंच से जुड़े कलाकारों के पास मासिक कमाई का कोई साधन नहीं होता है वह तो रोज कुआं खोदकर पानी पीने वाले होते हैं। ऐसे में कलाकारों को बहुत दिक्कत पेश आई।

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फिर रफ्तार भरेगा रंगमंच

वर्ष, 2019 में पिता के असमय निधन के 48 घंटे के भीतर थिएटर में अपनी भूमिका निभाकर मिसाल पेश करने वालीं युवा रंगकर्मी कृतिका सिंह का कहना है कि कोरोना की इस संकट की इस घड़ी में कलाकारों ने कमाई के दूसरे साधन भी ढूंढ़े, लेकिन इससे उनका कोई खास लाभ नहीं हुआ। आज भी बहुत से कलाकार रंगमंच के अच्छे दिन आने की उम्मीद में है। आशा करता हूं कि जल्द ही रंगमंच की गतिविधियां सामान्य होंंगी और कलाकार फिर से रिहर्सल करेंगे और आडिटोरियम में वही पुरानी हलचल लौटेगी।

बालीवुड में भी छाया हुआ है रंगमंच का जलवा

इसी रंगमंच ने महान अभिनेता दिए। ओम पुरी, नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, हिमानी शिवपुरी, आलोक नाथ, केके मेनन, इरफान खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, सतीश कौशिक, राजबब्बर, नीना गुप्ता, रघुबीर यादव, आशुतोष राणा, एके रैना, यशपाल शर्मा, अनूप सोनी, पंकज कपूर के नाम इसमें शामिल हैं। ये सभी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के विद्यार्थी रहे।

जानिये विश्व रंगमंच दिवस के बारे में

विश्व रंगमंच दिवस हर साल 27 मार्च के दिन मनाया जाता है। वर्ष 1961 में अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान ने रंगमंच को अपनी अलग पहचान दिलाने के लिए इस दिन की नींव रखी थी। इसके बाद एक-एक कर दुनिया के कई देशों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रंगमंच या थियेटर से जुड़े हुए कलाकार कई समारोह का आयोजन करते हैं।
टेलीविजन और सिनेमा के साथ ही रंगमंच के प्रति लोगों में जागरूता और रुचि पैदा करने के लिए हर साल विश्व रंगमंच दिवस का आयोजन किया जाता है।
इंटरनेशनल थिएटर इंस्टिट्यूट ने साल 1961 में विश्व रंगमंच दिवस को मनाए जाने की शुरुआत की थी।
हर साल इंटरनेशनल थिएटर इंस्टिट्यूट की ओर से एक कांफ्रेंस का आयोजन किया जाता है. जिसमें दुनियाभर से एक रंगमंच के कलाकार का चयन किया जाता है।
भारतीय रंगमंच कर्मी गिरीश कर्नाड को भी मिला मौका

गौरतलब है कि सबसे पहले 1962 में फ्रांस के जीन काक्टे ने विश्व रंगमंच दिवस के दिन अपना संदेश दुनिया के सामने रखा था। रंगकर्मी गिरीश कर्नाड के अनुसार दुनियाभर में सबसे पहले नाटक का मंचन पांचवीं शताब्दी के शुरुआती दौर में एथेंस में हुआ और एथेंस के एक्रोप्लिस के थिएटर आफ डायोनिसस में मंचन किया गया था