चुनाव में 'रेवड़ी कल्चर' पर रोक लगाने की कवायद तेज, 11 सदस्यीय कमेटी बनाने की तैयारी में केंद्र
केंद्र ने चुनाव लड़ने के लिए मुफ्त उपहार संस्कृति पर चिंता जताई है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि अगर कुछ राजनीतिक दल यह समझते हैं कि जन कल्याणकारी उपायों को लागू करने का यही एकमात्र तरीका है तो यह त्रासदी की ओर ले जाएगा। सरकार ने इसे लेकर 11 सदस्यीय कमेटी बनाने की सलाह दी है।
इस पैनल में केंद्रीय वित्त सचिव, राज्यों के वित्त सचिवों, मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के एक-एक प्रतिनिधि, 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के एक प्रतिनिधि और नीति आयोग के सीईओ को शामिल किया जा सकता है। इसमें राष्ट्रीय करदाता संगठन के एक प्रतिनिधि या भारत के पूर्व नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक भी शामिल हो सकते हैं। फिक्की और सीआईआई जैसे वाणिज्यिक संगठनों के प्रतिनिधियों और बिजली क्षेत्र की वितरण कंपनियों के प्रतिनिधियों को भी इस समिति का सदस्य बनाया जा सकता है।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब तक विधायिका या निर्वाचन आयोग कोई कदम नहीं उठाता, तब तक SC को राष्ट्रीय हित में यह दिशानिर्देश जारी करना चाहिए कि राजनीतिक दलों को क्या करना है, क्या नहीं। मेहता ने कहा, 'हाल ही में कुछ पार्टियों की ओर से मुफ्त उपहारों के वितरण के आधार पर चुनाव लड़ा जाता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के चुनावी परिप्रेक्ष्य में कुछ दल समझते हैं कि मुफ्त उपहारों का वितरण ही समाज के लिए कल्याणकारी उपायों का एकमात्र तरीका है। यह समझ पूरी तरह से अवैज्ञानिक है और इससे आर्थिक त्रासदी आएगी।
'...ऐसे में चुनाव चिह्न को छीन लेने का भी बने नियम'
सुप्रीम कोर्ट वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें चुनाव के दौरान मुफ्त उपहार का वादा करने वाले राजनीतिक दलों को रोकने की मांग की गई है। साथ ही चुनाव आयोग से उनके चुनाव चिह्नों को छीन लेने और उनका पंजीकरण रद्द करने के लिए अपनी शक्तियों के इस्तेमाल के लिए भी कहा गया है।