ये तो होना ही था यार, हिंदी को दासी बनकर रोना ही था...काका हाथरसी को आखिरी पलों तक रही टीस
अलीगढ़ 14 सितंबर : (डेस्क) काका हाथरसी ने खुले मंच से यह कविता पढ़ी थी...राजभाषा विधेयक पास हो गया, तो क्या गजब हो गया यार..., शोर मचाते हो बेकार, ये तो होना ही था यार, हिंदी को दासी बनकर रोना ही था...।
काका हाथरसी ने एक मंच पर अपनी कविता "राजभाषा विधेयक पास हो गया" प्रस्तुत की, जिसमें उन्होंने हिंदी भाषा की स्थिति पर चिंता व्यक्त की। कविता में उन्होंने कहा कि हिंदी को दासी बनकर रोना ही था, जो दर्शाता है कि हिंदी को राजभाषा के रूप में मान्यता मिलने के बावजूद उसके उपयोग में कमी आई है।
उन्होंने यह भी बताया कि जब राजभाषा विधेयक पारित हुआ, तो इसका शोर मचाना बेकार था। उनका यह कथन दर्शाता है कि हिंदी को उचित सम्मान नहीं मिल रहा है, और इसे एक उपेक्षित भाषा के रूप में देखा जा रहा है।
कविता में काका ने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदी का असली स्थान और उसकी गरिमा को बनाए रखना आवश्यक है। उन्होंने यह सवाल उठाया कि क्या हिंदी को केवल एक औपचारिकता के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
काका हाथरसी की यह कविता न केवल हिंदी भाषा के प्रति उनकी चिंता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि समाज में भाषा के प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
इस प्रकार, काका हाथरसी की कविता एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि हमें हिंदी की पहचान और उसकी गरिमा को बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।