विटामिन और मिनरल्स से भरपूर है पुटपुटा
- साल के जंगल में जमीन पर गिरे साल के सूखे पत्ते के नीचे मिलता है पुटपुटा
- जंगलों में मिलती है देश की सबसे महंगी सब्जी
- पुटपुटा वनस्पतिक जंगली औषधि के रूप में भी आता है काम
- प्रहलाद कछवाहा
मंडला. मंडला जिले का सबसे पिछड़़ा और वनांचल क्षेत्र मवई, जिसे छोटा कश्मीर के नाम से भी जाना जाता है। जिले का मवई विकासखंड अपने घने जंगलों और साल के लिए प्रसिद्ध है। मवई में वृहत रूप में साल का जंगल फैला हुआ है। साल के जंगलों की ठंडक लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। इसके साथ ही ये जंगल अनेक जड़ी बुटियों और कंद मूल से अच्छादित है। जिसमें एक नाम पुटपुटा का भी है, जिसे अन्य प्रदेश में इसे सरई बोड़ा के नाम से भी जाना जाता है। साल के जंगलों में मिलने वाला यह पुटपुटा बेहद स्वादिष्ट होता है। यदि इस पुटपुटा के लजीज स्वाद का लुत्फ लेना है तो बारिश की शुरूआत से करीब डेढ़ माह का समय रहता है। यदि इस पुटपुटा की सब्जी का स्वाद लेने है तो मंडला जिले के कश्मीर कहां जाने वाले वनांचल क्षेत्र मवई आना होगा। जहां आपको ये पुटपुटा मिलेगा।
मवई में वृहत स्तर पर फैले साल के इस जंगलो में मिलने वाले पुटपुटा की सब्जी बनाई जाती है। वहीं इस पुटपुटा को महानगरों में हजार रूपए से अधिक कीमत में बेचा जाता है। इस पुटपुटा में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खनिज तत्व पाये जाते हैं, जो कि इसे पौष्टिक बनाते हैं। वहीं मंडला जिले में महंगी सब्जियों की बात करें तो साल के जंगलों में मिलने वाला पुटपुटा और जिले के अन्य क्षेत्रों से आने वाली पिहरी का नाम सबसे ऊपर आता है। वर्ष भर में करीब डेढ़ माह मिलने वाला पुटपुटा अब मंडला मवई के जंगलों में खूब निकल रहा है। मवई क्षेत्र में पुटपुटा की कीमत कम ही है, यहां गावों में ये करीब 300 रुपये किलो, तो आसपास के क्षेत्रों में 400 से 500 रूपए किलो, वहीं शहर में पहुंचकर इसकी कीमत करीब 600 रुपये हो जाती है। इसके बाद यही पुटपुटा जब महानगरों में पहुंचता है तो इसकी कीमत दो गुनी और तीन गुनी हो जाती है। जहां एक हजार रूपए किलो से अधिक होती है।
आदिवासियों, ग्रामीणों की खोज है पुटपुटा :
बता दे कि मंडला जिले के अंतिम छोर में बसा वनांचल क्षेत्र मवई अपने साल के जंगलों के नाम से जाना जाता है। यहां वृहद रूप में साल के जंगल फैले हुए है। इसी साल के जंगलों में पुटपुटा बोड़ा मिलता है, इस साल के जंगल में मिलने वाला पुटपुटा को यहां के स्थानीय आदिवासियों, ग्रामीणों ने नाम दिया है। अलग- अलग क्षेत्रों में इसे अलग- अलग नाम से जाना जाता है। जमीन के अंदर से मिलने वाली सब्जी की खोज आदिवासियों की ही है। वनोपज पर निर्भरता के कारण वनवासी यहां पैदा होने वाले हर खाद्य पदार्थ के बारे में जानते हैं। पुटपुटा भी उन्ही में से एक है। पुटपुटा दरअसल एक फंगस है।एक फंगस है पुटपुटा :
साल के जंगल में जब पहली बरसात से मिट्टी भीगती है और उसके बाद जो पहली उमस पड़ती है, तब साल के जंगलों में लगे साल वृक्ष की जड़ एक खास तरह का द्रव छोड़ते है, फिर जमीन पर गिरे साल के सूखे पत्ते के नीचे ये फंगस बनता है, जिसे पुटपुटा और अन्य क्षेत्रों में बोड़ा कहते हैं। आदिवासी इसे किसी भी लकड़ी की मदद से जमीन से सुरक्षित बाहर निकालते हैं। जिसके बाद इसका उपयोग स्वंय खाने और अपनी आमदनी के लिए बाजार में विक्रय करते है।
फंगस है तो, इतना महंगा क्यों :
बता दे कि अगर ये फंगस ही है तो इतना महंगा क्यों है. पुटपुटा दरअसल पूरी तरह से प्राकृतिक उत्पाद है। इसकी खेती नहीं की जा सकती। ये अपने आप ही पैदा होता है और खास तरह की परिस्थिति में पैदा होता है। वैसे तो आदिवासियों को ये मुफ्त में ही मिलता है और आप खुद साल के जंगलो में चले जाएं तो ये आपको भी मुफ्त में ही मिल सकता है, लेकिन कड़ी मेहनत के बाद, क्योंकि ये फंगस है इसलिए वजन में काफी हल्का होता है। किसी भी चीज की कीमत उसकी डिमांड पर निर्भर करती है, तो पुटपुटा का स्वाद इसकी बड़ी डिमांड की सबसे बड़ी वजह है। वर्ष के कुछ दिन ही उसका कठिनाई से मिलना और वजन में कम होना, इसकी कीमत को बढ़ा देता है। गांव में इसकी कीमत करीब 300 रुपये किलो तक रहती है, तो शहर में यही 600 रुपये किलो में बिकता है। जबकि महानगरों तक पहुंच कर इसकी कीमत कई गुना बढ़कर करीब हजार रुपये किलो के पार तक चली जाती है।पोषण से भरपूर है पुटपुटा :
पुटपुटा में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और खनिज तत्व पाये जाते हैं, जो कि इसे पौष्टिक बनाते हैं। वहीं कुपोषण, दिल और पेट के रोगों में भी ये फायदेमंद माना जाता है, इसलिए ये पुटपुटा जंगल पर निर्भर रहने वाले ग्रामीणों के भोजन का वर्षो से एक हिस्सा बना हुआ है। हालांकि अब पुटपुटा महानगरों तक पहुंच गया है। जहां लोग इसे बड़े ही शौक से खाते है। ग्रामीण पहली बरसात के बाद पुटपुटा को एकत्र करने जंगलो में जाते हैं, इसके बाद वह कुछ अपने लिए रख लेते हैं और बाकी बाजार में बेच देते है। इससे उन्हें भोजन भी मिलता है और अच्छी खासी आमदानी हो जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि पुटपुटा से भोजन और पैसा दोनों मिल जाता है।अन्य सब्जियों से ज्यादा स्वादिष्ट होता है पुटपुटा :
जानकारी अनुसार साल के जंगलो में पुटपुटा को खोजने वनवासियों का रूख जंगलो की तरफ है। पुटपुटा वनस्पतिक रूप से फफूंद की श्रेणी में आता है। यह अक्सर बिजली के तेज चमक के साथ वर्षा ऋतु के आगमन पर साल के वृक्ष के नीचे गर्म धरती से बाहर आता है। खाने में बड़ा ही स्वादिस्ट होता है। यह काले, भूरे व सफ़ेद रंग का भी पाया जाता है, बाहर का भाग कठोर व काला व भूरा होता है जबकि इसकी भीतरी भाग सफेद व पीली रंग का होता है जो की बहुत ही मुलायम होता है, कुछ लोगो का कहना है की यह अन्य सब्जियों से भी ज्यादा स्वादिष्ट होता है। ग्रामीण अक्सर प्रात: इसे खोजने के लिये जंगल जाते है। बाजार में इसकी बहुत डिमांड होती है, बाहर के व्यापारी प्राय: ग्रामीणों से इसे मनमाने दामों में खरीदते है और महानगरों में इसे 600 से लेकर 1000 रूपए प्रति किलो की दर से बेचते है। वहीं इस पुटपुटा में मिनरल व विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाने के कारण यह बहुत सी बीमारियों से लडऩे के लिये भी रामबाण साबित होता है। पुटपुटा वनस्पतिक जंगली औषधि के रूप में भी काम आता है।
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