इंजेक्शन लगे लेकिन आंखों की रोशनी नहीं लौटी; मोदी की मिमिक्री ने पहुंचा दिया लाफ्टर चैलेंज

कइसे जीवन बीती बाबू, भगवान सब कुछ त दिहलन, एक ठो अखिएं न दिहलन (कैसे जीवन बीतेगा, भगवान ने सब कुछ तो दिया, बस आंख ही नहीं दी)

गांव के लोग ये कहकर ताने मारते थे, तंज कसते थे। कहीं भी जाने पर सिर्फ मेरी कमजोरियों पर बातें करते थे। मुझे लगता था कि कब तक ये लोग मुझ पर तरस खाते रहेंगे।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के रहने वाले स्टैंडअप कॉमेडियन और मिमिक्री आर्टिस्ट अभय कुमार शर्मा जब ये बातें बताते हैं तो उनके चेहरे पर उदासी नहीं, एक अलग सी चमक आ जाती है।

अभय जन्म से ही नेत्रहीन हैं। वो इस दुनिया को देख तो नहीं सकते लेकिन अपने टैलेंट की बदौलत मिमिक्री और कॉमेडी की दुनिया में एक अलग पहचान बना चुके हैं। इन दिनों रियलिटी शो ‘इंडियाज लाफ्टर चैंपियन’ 2022 के क्‍वार्टर फाइनल में पार्टिसिपेट कर रहे हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि अभय ने नेत्रहीन होने के बावजूद ये शोहरत कैसे हासिल की? तो इसके लिए हमने उनसे खास बातचीत की है। अभय की पूरी स्टोरी जब आप पढ़ेंगे तो उनके जीवन से जुड़े कई अनछुए पहलुओं के बारे में भी जानेंगे।
अभय बताते हैं- मां-पापा ने BHU समेत कई अस्पतालों में आंख का इलाज करवाया। वो चाहते थे कि किसी भी तरह से मेरी आंखों की रोशनी लौट आए। डॉक्टरों ने पूरी कोशिश की, दर्जनों इंजेक्शन लगाए, लेकिन सब असफल रहा।

डॉक्टरों ने सीधा जवाब दे दिया। कहा, मुश्किल है आंखों की रौशनी को लाना। मां निराश हो गईं। उन्हें डर था कि मैं कभी देख नहीं पाऊंगा तो पूरी लाइफ मेरी खराब हो जाएगी।

मां चाहती थी कि मैं अच्छे से पढ़ लूं ताकि कुछ कर सकूं। इसलिए एडमिशन किसी अच्छे नेत्रहीन स्कूल में हो जाए।

आज भी मां सोचती हैं कि कोई ऐसी टेक्नोलॉजी तो आए, जिससे मैं इस दुनिया को देखने लगूं। लेकिन, मैंने अब ठान लिया है कि जो परिस्थिति है उसी में खुद को पॉजिटिव रखना है और दुनिया को हंसाना है।

अब मेरे लिए यह मायने नहीं रखता है कि मैं कितना देख पाता हूं। मेरे लिए मायने यह रखता है कि लोग मुझे कितना देखते हैं।

अभय को सबसे पहले साल 2017 में टीवी पर आने का मौका मिला था। वो बताते हैं, इंडियाज लाफ्टर चैलेंज में पार्टिसिपेट किया था, जहां से मुझे लोगों ने मिमिक्री और कॉमेडी की दुनिया में जाना।

अभय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यानी BHU से पॉलिटिकल साइंस में ग्रेजुएशन किया है। वो कहते हैं- BHU के एटमॉस्फेयर ने मेरे टैलेंट को और निखारा। एक हॉस्टल के फेयरवेल पार्टी में कॉमेडी-मिमिक्री की थी। उसके बाद से मुझे कई कार्यक्रमों में बुलाया जाने लगा।
स्कूल के बाद जब BHU आया और यहां परफॉर्म करना शुरू किया तब परिवार वालों को मेरे टैलेंट के बारे में पता चला।

यहां से मेरी जर्नी शुरू होती है। मिमिक्री के आइडिया को लेकर अभय बताते हैं, शुरू से चाहता था कि जो लोग मेरे अंधेपन पर फुसफुसाते हैं, कानों में तंज करते हैं। उन्हें तालियों में तब्दील करना है।

कई कॉमेडी शोज के वीडियो देखता था। कॉमेडियन, मिमिक्री आर्टिस्ट को सुनता था। जिसके बाद लगा कि मैं भी बेहतर कॉमेडी-मिमिक्री कर सकता हूं।

जब लोकसभा चुनाव 2014 को लेकर नरेंद्र मोदी ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे थे तो वहां से अभय को मोदी की आवाज कॉपी करने का आइडिया आया। जिस तरह से भीड़ मोदी-मोदी के नारे लगाती थी और वो गूंजने लगती थी, अभय ने इसकी मिमिक्री करनी शुरू कर दी।

अभय शर्मा एक दिलचस्प वाकया बताते हैं। कहते हैं- 2017 में पीएम मोदी बनारस आए थे। उनकी मैंने मिमिक्री की थी। जब पीएम ने पूछा कि और मैं किस-किस की मिमिक्री कर लेता हूं। तो मैंने कई नेताओं के नाम बताए। पीएम मोदी हंसते हुए बोले- पूरा मंत्रिमंडल ही लेकर बैठा है।

अभय सीएम योगी आदित्यनाथ, सीएम नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, मुलायम सिंह, पीएम मोदी, राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं की मिमिक्री करते हैं।

2019 लोकसभा चुनाव और 2022 यूपी विधानसभा चुनाव में अभय ने कई चुनावी और महंगाई के इर्द-गिर्द गाने लिखे और गाए थे, जो काफी वायरल हुए।

अभय बताते हैं- चुनाव से कुछ महीने पहले तक मैं सोचता था कि जो मैं कर रहा हूं, क्या वो सही है? डी-मोटिवेट हो रहा था। उसी दौरान कॉमेडियन राजीव निगम ने साथ दिया, मोटिवेट किया। कॉमेडी के स्किल्स को और बेहतर करने में मदद की।
अभय को आज भी तकलीफ महसूस होती है कि लोगों के चेहरे का एक्सप्रेशन, भाव वो नहीं देख पाते हैं। कहते हैं- मैं देख नहीं सकता हूं, लेकिन सुन तो सकता हूं। सर्वाइव करने के लिए पॉजिटिव रहने के अलावा हमारे पास दूसरा कोई ऑप्शन नहीं है।

लोग आमतौर पर नेत्रहीन लोगों के बारे में क्या सोचते हैं, उसे अपने स्क्रिप्ट में शामिल करता हूं। खुद को सेंटर में रखकर कॉमेडी कंटेंट तैयार करता हूं। खुद पर कॉमेडी क्रिएट करता हूं। लोग इससे खुद को कनेक्ट करते हैं और हंसते हैं।

मजाकिया लहजे में अभय बताते हैं- गांव में आज भी लोग मेरे सामने बातचीत करने से डरते हैं। उन्हें लगता है कि मैं उनकी बातों को सुन रहा हूं और इसे कॉमेडी के जरिए मंचों पर शेयर कर दूंगा।

अभय आखिर में सिस्टम में कुछ बदलाव को लेकर सुझाव भी देते हैं। कहते हैं- हम जैसे लोग नेत्रहीन स्कूलों से पढ़ाई करते हैं। इन स्कूलों में कुछ को छोड़ बाकी सभी लोग नेत्रहीन होते हैं।

हम नॉर्मल स्कूलों में भी पढ़ सकते हैं, लेकिन यहां यदि हम माइनॉरिटी में हैं तो हमारे साथ भेदभाव होगा। जरूरत है कि सरकार इस पर एक बेहतर रिसर्च करे और मॉडल तैयार करे।

हमारी तरह अनगिनत लोग हैं जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं। उनके पास यदि हुनर होगा तो वो भी जीवन में बेहतर कर पाएंगे।