आज़मगढ़ क्या अखिलेश के लिए यादव वोट की वफ़ादारी का इम्तिहान बनेगी?

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव करहल से विधायक चुने गए और उन्होंने नेता प्रतिपक्ष बनने का फ़ैसला किया और अपनी संसदीय सीट छोड़ दी.

अखिलेश यादव के संसदीय सीट से इस्तीफ़ा देने के बाद आज़मगढ़ की लोकसभा सीट ख़ाली हो गयी थी.

अब इसी आज़मगढ़ लोकसभा सीट पर उपचुनाव 23 जून को होना है.

इस सीट पर मुख्य मुक़ाबला भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच माना जा रहा है. उपचुनाव के इस सियासी रण में अखिलेश के साथ ही योगी के सियासी कौशल का भी इम्तिहान होगा.

आज़मगढ़ के उपचुनाव में बीजेपी के लिए खोने के लिए कुछ भी नहीं है. वो 2019 के लोकसभा चुनावों में यह सीट हार गई थी.

लेकिन समाजवादी पार्टी अगर यह सीट हारती है तो उसके लिए ये बड़ा नुक़सान साबित होगा. साथ ही इसका सीधा असर आगे आने वाले 2024 के आम चुनावों में भी देखने को मिल सकता है क्योंकि आज़मगढ़ पर सपा का दबदबा रहा है.

समाजवादी पार्टी लगातार यहां पर चुनाव जीतती आई है. ऐसे में अगर इस बार कोई उलटफेर हुआ तो सपा की घरेलू मानी जाने वाली सीट उनके हाथ से निकल जाएगी और इसे समाजवादी पार्टी के घर में सेंधमारी के तौर पर जाना जाएगा.

आज़मगढ़ सीट का समीकरण

आज़मगढ़ लोकसभा सीट में 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 19 लाख मतदाता हैं, जिनमें से क़रीब साढ़े तीन लाख यादव मतदाता हैं. सीट पर तीन लाख से ज़्यादा मुसलमान मतदाता हैं. वहीं तीन लाख से ज़्यादा दलित मतदाता हैं.

ये वो जातीय समीकरण हैं जिनके दम पर समाजवादी पार्टी पूरी मज़बूती से आज़मगढ़ में चुनाव लड़ती और बड़े अंतर से जीतती रही है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि आज़मगढ़ का मुसलमान-यादव समीकरण समाजवादी पार्टी को बड़ी जीत दिलाने में कामयाब रहा था.

2014 में सपा के संस्थापक मुलायम सिंह ने तीन लाख 40 हज़ार वोटों से यहां जीत हासिल की थी. उस समय भाजपा में रहे रमाकांत यादव को दो लाख 77 हज़ार वोट मिले थे और बसपा के गुड्डू जमाली को दो लाख 66 हज़ार वोट मिले थे.

2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने यह सीट क़रीब दो लाख 60 हज़ार वोटों से जीती थी. तब महागठबंधन के चलते बहुजन समाज पार्टी ने सपा को अपना वोट ट्रांसफ़र किया था और अखिलेश यादव की इस बड़े बहुमत की जीत का कारण यही था. भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव उर्फ़ निरहुआ को तीन लाख 61 हज़ार वोट मिले थे.

ये नतीजे बीते दो लोकसभा चुनावों के हैं जिनमें मोदी लहर के बावजूद बीजेपी सपा के गढ़ में सेंधमारी करने में सफल नहीं हो पाई थी. लेकिन इस बार होने वाले उपचुनावों में जातीय गणित सपा के पक्ष में बैठेगी या नहीं ऐसा कहना किसी भी राजनीतिक विश्लेषक के लिए मुश्किल हो रहा है.