मित्रता दिवस पर विशेष

in #up2 years ago

#मित्रता....❤️
आपने महाभारत तो देखी होगी ? जानते हैं कि कौन्तेय युद्ध क्यों जीत गएं और कर्ण युद्ध क्यों हार गया ? क्या अर्जुन बहुत बड़े योद्धा थें और कर्ण योद्धा नहीं था ? नहीं! कौन्तेय इसलिए युद्ध जीते क्योंकि उसका आत्मविश्वास कभी हिला नहीं, सदैव एकाग्रचित्त रहा। उसके रथ पर स्वयं केशव थे जो उसे सदैव ज्ञान देते रहे, एक क्षण के लिए भी एकाग्रता भंग न होने दिया, उसे मोटिवेट करते रहे। केशव कभी भी एक क्षण के लिए भी अर्जुन को हतोत्साहित न होने दिए। दूसरी ओर रश्मिरथी के रथ पर मद्रराज शल्य थे। जो सदैव राधेय पर कटु वचन, तीखे व्यंग्य कसते रहते थे। बाण सहूँ या व्यंग्य बाण.. कर्ण सदैव यही निर्णय करता रहता था। इसका प्रभाव कर्ण के युद्ध कौशल पर पड़ा। वो अपना सम्पूर्ण नहीं दे पाया। ढाई दिवस में आधा दिवस तो शल्य की निगेटिव बातों को ही झेलने में निकल गया था।

कर्ण ने दुर्योधन के लिए अपनी जान दे दी लेकिन फिर भी उनकी मित्रता लोगों के लिए आदर्श नहीं बन पाई, जब कि श्री कृष्ण के मुट्ठी भर चावल खा लेने से ही उनकी मित्रता दुनिया के लिए मिसाल बन गई... जानते हैं क्यों ? क्योंकि कृष्ण की मित्रता निःस्वार्थ है, निश्छल है। सुदामा का हित ही कृष्ण का हित है। अनंत कोटि ब्रह्माण्डनायक श्री कृष्ण सुदामा को सब कुछ दे देना चाहते हैं, वो भूल जाते हैं कि वे ईश्वर के अवतार हैं। मगर वहीं दुर्योधन राज भाव से कर्ण को अंग देश का राजा बनाता है और कर्ण दास भाव से दुर्योधन का आभार व्यक्त करता है... वहीं दुर्योधन राजनीति भाव लेकर कर्ण से मित्रता करता है। इस मित्रता में लोभ है, लालच है, अहंकार है, एहसान है। एकबार सुदामा ने श्री कृष्ण से पूछा था कि मित्रता का क्या मतलब होता है ? कृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि जहाँ मतलब हो, वहाँ मित्रता कहाँ होती है मित्र...😊

इसीलिए आवश्यक है कि आपके मित्र आपको उत्साहित करें, आपकी आत्मदीप्ति को जाज्वल्यमान रखे और आपको सदैव सत्य और धर्म का मार्ग भी दिखाते रहें। आपके हिम्मत को बढ़ाते रहे। जिससे आपकी एकाग्रता बनी रहे। केशव जैसा मित्र चुनें/बनें, शल्य और दुर्योधन जैसा नहीं।☝️

"मित्रता" को परिभाषित करना मेरे लिए तो नामुमकिन है, क्योंकि मेरे हिसाब से ये शब्द ही अपरिभाषित है। जहाँ तक मेरी व्यक्तिगत राय की बात है, मित्र, सखा, दोस्त, फ्रेंड, चाहे किसी भी नाम से पुकारो, दोस्त की कोई एक परिभाषा हो ही नहीं सकती। हमें तन्हाई का कोई साथी चाहिए, खुशियों का कोई राजदार चाहिए और गलती पर प्यार से डांटने-फटकराने वाला चाहिए। यदि यह सब खूबी किसी एक व्यक्ति में मिले तो निःसन्देह ही वह आपका दोस्त होगा, मित्र होगा। वही दोस्त, जिसके रिश्ते में कोई स्वार्थ या छल-कपट नहीं बल्कि आपके हित, आपके विकास, आपकी खुशियों के लिये जिसमें सदैव एक तड़प एवं आत्मीयता रहेगी।

मैं उस ईश्वर का सदैव शुक्रगुजार हूँ जिसने मुझे इन सारे गुणों से भड़े इतने सारे मित्र दिये हैं... कोई मुझे दुख की घड़ी में हँसाता है, कोई मुझे उलझन की घड़ी में सुलझाता है, कोई मुझे मेरी गलती पर डांटता है, कोई सुख की घड़ी में मेरे साथ गुनगुनाता है। आप सबों से सदैव कुछ ना कुछ सीखता हूँ और उस सीख के साथ जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ... इस सोशल मीडिया प्लेटफार्म ने भी मुझे इतने सारे अंजान दोस्तों से मिलाया है जो मेरी ज़िंदगी में धीरे-धीरे खास बन गए। अतः आज इस घड़ी पर इस तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म का भी शुक्रियादा करता हूँ।💜

इस पटल पर उपस्थित सभी मित्रों को इस अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं... हमारी मित्रता सदैव बनी रहे...🙌💜
Avinash Jha ✍️💖FB_IMG_1659970443260.jpg