यजुर्वेद के सत्तरवें अध्याय के पहले श्लोक से लेकर लगातार वैज्ञानिक आधारों पर सटीक जवाब गया

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दोस्तों कई लोग सनातन धर्म पर प्रश्न उठाते हैं की हम पूजाओं में दूध दही घी शक़्कर एवं अनाज की बर्बादी करते हैं उनके इस सवाल का उत्तर यजुर्वेद में दिया गया है। यजुर्वेद के सत्तरवें अध्याय के पहले श्लोक से लेकर लगातार वैज्ञानिक आधारों पर सटीक जवाब दिया गया है। DocScanner May 25, 2022 17-51.jpg
अश्मन्नूर्जं पर्वते शिश्रियाणामद्भय ऒषधीभ्यो वनस्पतिभ्यो अधि सम्भ्रतं पय:।
तां न इषमूर्जं धत्त मरुत: संरराणा अश्मस्ते क्षुन्मयि त ऊर्ग्यं द्विष्मस्तं ते शुगॄच्छतु

इस श्लोक में हम मरुद्गणों यानी की पौधों के लिए सहायक भूमि में स्थित उर्वरकों के लिए प्रार्थना कर रहे हैं ।
हे मरुद्गणों (उर्वरकों )आप हमें अन्नआदि से संपन्न करने में सक्षम हैं। आप पाषाणों में आश्रित बलों जल दूध एवं ऑखधियों को हमारे लिए धारण करें।
आज विज्ञानं भी मानता है की ये मरुद्गण (उर्वरक) ही सभी पेड़ पौधों के भोजन में सहायक होते हैं। इसी प्रकार हमारी कई प्रकार की प्रार्थनाओं में हमने इन उर्वरक जीवाणुओं के लिए ज्यादातर नदी के किनारों में मंदिर बनाये हैं ताकि भागवान पर चढ़ाया गया पुष्प लतापत्र दूध दही घी शक़्कर शहद एवं अन्न भोजन नदी की धाराओं में प्रवाहित होकर खेतों में सिंचाई के माध्यम से मरुद्गणों तक पहुंचे।
हमने केवल मरुद्गणों के लिए ही नहीं सभी जीवों को भोजन प्राप्त करने का अधिकारी माना है। क्यों की हर किसी में वही आत्मा प्राण है जो हम मनुष्यों में है। जिस प्रकार एक भूखे मनुष्य को भोजन कराकर अभीष्ट फल अर्थात दुआ प्राप्त होती है उसी प्रकार हर प्राणी को भोजन कराने पर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
यजुर्वेद में रूद्रामरुद्गगण जो की गाय के गोबर एवं गौमूत्र में उर्वरक पाए जाते हैं इन्हें विशेष स्थान दिया जाता है। आज कृषि विज्ञान भी इन्हे खेती के लिए अहम मानता है
इसीलिए तो हमारे सनातन संस्कृति की खूबसूरत पंक्ति में कहा जाता है
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
सर्वे अर्थात केवल मनुष्य ही नहीं सभी प्राणियों का अभिष्टफल जरूरी है

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