जिंदगी बचने वाले गोताखोर अपनी जीवन श्रेणी चलाने के लिए रोटियों से मोहताज

in #swiming2 years ago

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जिंदगी बचाने वाले जिंदगी जीने के लिए अपनी जीवन श्रेणी चलाने के लिए रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं दरबदर। मजबूरी में जिंदगी जी रहे हैं भिखारियों से भी ज्यादा बत्तर। सरकार की तरफ से नहीं दी जाती है इनको मूलभूत सुविधाएं और नहीं दे रही है शासन प्रशासन इन जिंदगी बचाने वाले गोताखोरों पर ध्यान।

जिंदगी बचाने वाले गोताखोरों की जिंदगी अब दो वक्त की रोटी पाने के लिए किसी बडी मुसीबत से कम नहीं। क्योंकि जिंदगी बचाना ही इनकी इंसानियत है और इंसानियत यह कभी भूलते नहीं और यमुना में डूबने वाले लोगों को बचाने के लिए कोई परमानेंट रोजगार नही करते है यदि कहीं रोजगार ढूंढ कर यह परमानेंट रोजगार करते हैं और यमुना नदी मैं किसी के डूबने की कॉल दिल्ली पुलिस या फायर दमकल विभाग को मिलती है । तो सभी विभाग के लोग गोताखोर सितार खान से संपर्क करते हैं ताकि यमुना में डूबे हुए शख्स की सही सलामत बाहर निकाला जाए।
आपको बता दें दिल्ली में यमुना का जलस्तर कम है ऐसे में यमुना में डूबने के मामले भले ही कम हो जाएं लेकिन उन्हें बचाने वाले गोताखोर अपनी जिम्मेदारी समझकर यमुना किनारे ही सुबह से शाम तक रहते हैं और कोई दूसरा रोजगार नहीं कर पाते हैं । दिल्ली में जल्द ही मानसून दस्तक दे सकता है और पहाड़ी इलाकों में बरसात के बाद यमुना नदी में जलस्तर बढ़ जाता है। फ्लड विभाग की तरफ से कई पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं लेकिन फ्लड विभाग के पास गोताखोर कम होने के चलते आपदा के समय गोताखोर सत्तार खान की टीम को आघा किया जाता है। यह अपनी इंसानियत समझते हुए हमेशा तत्पर रहते हैं। जैसे ही किसी के डूबने की कोल मिलती है वैसे ही गोताखोर सियार खान अपने गोताखोरों की टीम के साथ यमुना में छलांग लगाकर उसे जीवित बचाने की कोशिश करते हैं। सितार खान का दावा है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में यमुना में डूबने वाले अनेकों लोगो की जान बचाई हैं ।ताखोर गौरव कुमार से बात की तो उन्होंने कहा कि वह अपने घर की जीवनशैली चलाने के लिए यमुना में पड़े वेस्ट सामान को ढूंढ कर बाहर निकालते हैं जैसे कोई भी श्रद्धालु मूर्तियां तांबे पीतल की धातु व अन्य सामग्री डालते हैं।। उन्हें यमुना नदी से बाहर निकालते हैं उसे बेच कर अपने घर की जीवन श्रेणी चलाते हैं ।क्योंकि इन्होंने अपना लक्ष्य बनाया है कि कोई भी यमुना में डूबे उसे मरने से पहले यमुना से बाहर निकाला जाए लेकिन मजबूरी इनके सामने जब आती है । जब यह यमुना किनारे को छोड़कर कहीं रोजगार की तलाश में जाते हैं और कोई यमुना में डूबता है और उसे बचाने के लिए यह मौके पर पहुँचते हैं तब तक डूबने वाले की मौत हो जाती है। यह अपनी जिंदगी से ज्यादा डूबने वाले की जिंदगी बचाने पर विश्वास रखते हैं।
सितार खान की टीम पिछले 40 साल से यमुना में डूबने वाले लोगों को बाहर निकालने का काम कर रही है । लेकिन दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार और शासन प्रशासन इनका सिर्फ मुसीबत के समय इस्तेमाल कर उनको छोड़ देते हैं। इनके ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया जाता ओर न परमानेंट किया जाता है। जरूरत है शासन प्रशासन ऐसे गोताखोरों पर ध्यान दें जिन्होंने अपनी जिंदगी से ज्यादा दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए इंसानियत को कायम रखा हुआ है।