न्याय मिलने का हक लागू करने के लिए नए चीफ जस्टिस ललित की पहल

in #supreme2 years ago

CJI UU Lalit: नए चीफ जस्टिस ललित के अनुसार कानूनी सहायता और न्याय मिलने के अधिकार को भी शिक्षा की तरह मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए. शपथ लेने के साथ ही उन्‍होंने इस दिशा में कार्य आरंभ कर दिया है. 74 दिनों का सीमित कार्यकाल के लिए उन्होनें तीन प्राथमिकताएं बताई हैं.
चीफ जस्टिस एन.वी. रमन्ना ने कार्यकाल खत्म होने के आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग करवाकर एक नए युग की शुरुआत की है. लेकिन उनके 15 महीने के कार्यकाल में संवैधानिक मामलों के निपटारे की गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाई. उनके कार्यकाल के शुरुआत में ऐसे 396 मामले लंबित थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 492 हो गई है. इनमें नोटबंदी, चुनावी बांड, यूएपीए, सबरीमाला, अनुच्छेद-370 जैसे कई चर्चित मामले शामिल हैं.

संविधान के अनुच्छेद- 145 (3) के तहत संवैधानिक मामलों के लिए सुप्रीम कोर्ट में न्यूनतम 5 जजों की बेंच सुनवाई करती है. हाईकोर्टों में 250 जजों की नियुक्ति के बावजूद बड़ी वैकेंसी है. जबकि जस्टिस रमन्ना के रिटायरमेंट के बाद सुप्रीम कोर्ट के कुल 34 जजों में सिर्फ एक वैकेंसी है. जस्टिस यू.यू. ललित ने सुप्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस की शपथ ले ली है. तीसरी पीढ़ी के वकील ललित बार से सीधे जज और फिर चीफ जस्टिस बनने वाले दूसरे व्यक्ति हैं. उनका 74 दिनों का सीमित कार्यकाल होगा जिसके लिए उन्होनें तीन प्राथमिकताएं बताई हैं. इनमें लिस्टिंग सिस्टम में पारदर्शिता, अर्जेंट मामलों की सुनवाई का सिस्टम और संवैधानिक मामलों का जल्द निष्पादन शामिल हैं. इसके लिए 25 संवैधानिक मामलों की लिस्टिंग और तुरंत सुनवाई के लिए आदेश जारी हो गए हैं।

जस्टिस ललित के अनुसार ग्रीन बेंच की तर्ज पर सुप्रीम कोर्ट में एक संविधान पीठ हमेशा सुनवाई करेगी, ऐसा उनका प्रयास होगा. सुप्रीम कोर्ट में 71,411 से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं लेकिन संविधान पीठ से जुड़े मामलों का फैसला होने से कई कनेक्टेट मामलों के फैसले में आसानी हो जाती है। जस्टिस ललित न्यायिक व्यवस्था को सशक्त बनाने के कुछ और क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं –

शिक्षा के अधिकार की तरह न्याय मिलने का अधिकार

संविधान के अनुसार किसी बेकसूर को सजा नहीं मिलनी चाहिए और सरकार की तरफ से गरीब व्यक्ति को कानूनी मदद मिलने का प्रावधान है. संविधान के अनुच्छेद-21 ए में शिक्षा का अधिकार लोगों का फंडामेंटल राइट है. उसी तरीके से अनुच्छेद-39 ए के तहत लोगों को बराबरी से न्याय मिलने और कानूनी सहायता देने के लिए सरकार की जिम्मेदारी है.

नए चीफ जस्टिस ललित के अनुसार कानूनी सहायता और न्याय मिलने के अधिकार को भी शिक्षा की तरह मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए. उनके अनुसार भारत में 70 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है. लेकिन 3 फीसदी आबादी को गिरफ्तारी के पहले, 8 फीसदी लोगों को हिरासत के बाद और 18 फीसदी लोगों को ट्रायल स्टेज पर कानूनी मदद मिल पाती है. इसकी वजह से मुकदमेबाजी की संख्या बढ़ने के साथ लोगों का न्यायिक व्यवस्था में भरोसा कम हो रहा है जिसे दुरुस्त करने के लिए न्यायपालिका के साथ सरकार को भी आगे बढ़ने की जरुरत है.

हर जिले में कानूनी सहायता का सिस्टम

रिटायर होने वाले चीफ जस्टिस रमन्ना, नए चीफ जस्टिस ललित और पुराने कई जजों ने कई बार यह दोहराया है कि महंगे वकीलों की वजह से अदालतों में आम जनता को जल्द और सही न्याय नहीं मिलता। देश के अधिकांश जिलों में लोक अदालत के माध्यम से छुटपुट मामलों का अदालत के बाहर जल्द फैसला हो जाता है.

चीफ जस्टिस बनने से पहले ललित राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के चेयरमैन थे. उसके अखिल भारतीय कार्यक्रम में पिछले महीने उन्होंने कहा था कि देश के सभी जिलों में जरुरतमंदों को कानूनी सहायता देने का सिस्टम बनाने के लिए कानून मंत्रालय के साथ मिलकर काम हो रहा है। आपराधिक मामलों में राज्य की तरफ से हर जिले में अभियोजन यानि प्रोसिक्यूशन के लिए वकील होते हैं. उसी तर्ज पर गरीब और वंचित वर्गों के कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए हर जिले में सरकार की तरफ से बचाव पक्ष के वकीलों के सिस्टम बनाने की योजना है। इसे सफल बनाने के लिए कानून मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के जजों ने देश के युवा वकीलों से सहयोग का आवाहन किया है.
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