मुल्क के हालाते हाजरा पर कलम कारों की नजरें और उनके विचार।।

in #sultanpur2 years ago

हालाते हाजरा पर कलमकार की नजरें।।।

सदियों पुरानी मस्जिदो, खानकाहों को मंदिर बता कर उसकी जांच करना हिंदुस्तानी कानून का मजाक है _अकील अहमद कादरी मिस्बाही

हमारा हिंदुस्तान एक जमहूरी मुल्क है ।इस देश में विभिन्न प्रकार के जाति, धर्म के लोग बसते हैं जबान व बयान, रंग व रूप और धर्म के एतवार से भी लो अलग-अलग पहचान के साथ अपना जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन इस देश की जो सबसे बड़ी अच्छाई है वह यह है कि अलग-अलग जाति धर्म के होने के बावजूद भी सब में मेल मोहब्बत,प्यार, भाईचारा एक दूसरे के प्रति हमदर्दी एक दूसरे के सुख दुख में काम आना एक दूसरे के रीत रिवाज का ख्याल करना एक दूसरे के त्योहारों में शिरकत करना हिंदुस्तानी की परंपरा समझी जाती है।अनेकता में एकता का प्रतीक यह प्यारा मुल्क पूरी दुनिया में अपनी इस खूबी के लिए जाना और पहचाना जाता है। लेकिन बहुत ही अफसोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि हिंदुस्तान में अब यह सब चीजें धीरे-धीरे खत्म हो रही है बुजुर्गों से मिले अपनी पुरानी रवायत को भूलते जा रहे हैं। जिसका नतीजा है कि आज अंग्रेजों की नीति को अपनाते हुए अब यहां के लोग ही धर्म और जात के नाम पर लड़ाने, आपस में फूट डालकर राज करने का मन बना लिये है।इसकी बुनियाद पर यह समझना अब मुश्किल नहीं है की दौरे हाजिर में अब इस मुल्क में नफरत की राजनीति ने जन्म ले लिया है जिसके कारण कमज़ोर, मजबूर ,बे सहारा लोगों के लिए यह देश अब किसी जहन्नम से कम नहीं, जबकि हमारा देश कई दशकों से सोने की चिड़िया समझा जाता था। लेकिन आज
हर रोज अल्पसंख्यक समाज खुसूसियत के साथ मुस्लिम समाज को तरह-तरह के हीले, बहाने से सताने की भरपूर साजिश रची जा रही है।बल्कि सताने में कोई कमी नही रखी है ।मुल्क में अमन व सुकून को खत्म करने, शांति व्यवस्था को भंग करने, प्यार व मोहब्बत को नफरतों में बदलने का जो काम एक खास धर्म जाति के लोगों के जरिए से किया जा रहा है वह ना काबिले बर्दाश्त भी है और हिंदुस्तान की मर्यादा ,कानून और रीत व रवाज के खिलाफ भी है । मंदिर ,मस्जिद गुरुद्वारा हो या ऐतिहासिक इमारत हो या निजी इमारतें या सामाजिक शैक्षिक इमारते हों, भारतीय संपत्ति है, उस पर बगैर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कोई भी कार्यवाही करना मैं समझता हूं ज़ुल्म की इंतिहा है।जब भारत के कानून के मुताबिक यह बात साफ कर दी गई है कि 1947 के वक्त जो इबादतगाह जिस हालत में थी उसे वैसे ही रखा जाएगा, यानी मंदिर को मंदिर ,गुरुद्वारे को गुरुद्वारा और मस्जिद को मस्जिद तो अब किसी मस्जिद में मंदिर की जगह बता कर या किसी मंदिर को मस्जिद की जगह बता कर या किसी गुरुद्वारे को कोई और धार्मिक स्थल बताकर उसकी जांच करवाना और उस पर स्टे लगाना, वहां मौजूद लोगों को उसमें इबादत ना करने देना यह सरासर कानून के खिलाफ है और भारतीय सभ्यता संस्कृति और मर्यादा के खिलाफ बल्कि अगर कह लीजिए यह.. इंसानियत व मानवता के खिलाफ है। और हद तो तब हो जाती है जब 700, 800 पुरानी मस्जिदों को या खानकाहो या ऐतिहासिक इमारतों को किसी मनचले,सरफिरे और कट्टरपंथी की अपील पर जांच करवाने और उसे हटाने का हुक्म दे दिया जाता है। हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक ख्वाजा गरीब नवाज के दरबार को भी जांच के तौर पर एक टीम भेजना , पूरी दुनिया में प्यार और मोहब्बत की निशानी माना जाने वाला ताजमहल जो हिंदुस्तान की शान भी है, सदियों पुरानी ज्ञानवापी की मस्जिद को और उसके वज़ू खाने को सिर्फ इसलिए बंद कर देना कि कुछ सरफिरों ने वहां कुछ धार्मिक चीज के होने का दावा किया है और मंदिर की जगह होने का दावा किया है ये कितना खुला हुआ मजाक है ।लेकिन जब संय्या भये कोतवाल तो डर काहे का। इस कदर कानून का मजाक उड़ाया जा रहा है और संस्कृत व सभ्यता के खिलाफ काम किया जा रहा है केंद्र और राज्य की हुकूमते खामोश होकर तमाशा देख रही है। अपने ही मुल्क में एक खास धर्म के लोगों को जीने का सही हक नहीं दिया जा रहा है उन को कानून के दायरे में रहकर इबादत करने नहीं दिया जा रहा है उनको उनकी बनाए हुए शिक्षा संस्थान में पढ़ने नहीं दिया जा रहा है और उसके बाद भी सबका साथ सबका विकास का दावा भी किया जा रहा है इसे क्या समझा जाए ?!इसे खिलवाड़ ना समझा जाए, क्या समझा जाए ?!कानून के साथ उसको मजाक न समझा जाए तो क्या समझा जाए ?!मज़लूमों पर जुल्म न समझा जाए तो क्या समझा जाए ?!इसका जवाब हम किसी और से नहीं भोली-भाली जनता से भी नहीं जनता से चुने हुए प्रतिनिधि से भी नहीं सिर्फ और सिर्फ हुकूमत और अदालत से चाहते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह हमें ना उम्मीद नहीं करेंगे ।इन सबके बावजूद आज तक मुस्लिम समाज के अवाम और धर्म गुरूओं ने अपने आप को कितना कंट्रोल में रखे हुए हैं इस की भी सराहना होनी चाहिए और उसके साथ साथ यह याद भी रखना चाहिए कि जिस कौम के धर्मगुरु अपने मुल्क की इज्जत बचाने के लिए मस्जिद के मेंबरों से जिहाद और इंकलाब के नारे बुलंद करने में अंग्रेज जैसी नंगी हुकूमत के खिलाफ जरा सा भी न हिचकिचाये,तो अपनी मस्जिद, मदरसे और खानकाहो की हिफाजत में भी बहुत ज्यादा परेशान होने के बाद अगर कोई ऐसा कदम उठाने पर मजबूर हुए तो उसकी ज़िम्मेदार कौन होगा..? भारत के सर्वोच्च न्यायालय से हमें पूरी उम्मीद है कि वह इस माहौल को सही करने और पूरे मुल्क में अमन व अमान काइम करने के लिए जल्द से जल्द कोई सख्त कदम उठाए और भारत में बसने वाले हर तबके के नागरिकों को यकीन दिलाएं कि जब तक कानून का राज है कट्टरपंथी कुछ नहीं कर सकते और हर छोटा बड़ा सुकून के साथ हिंदुस्तान में सांस ले सकेगा।आखिर में मैं एक पैगाम के तौर पर और चेतावनी के तौर पर यह शेर कह कर अपनी बात को पूर्ण विराम देता हूं।जब ज़ुल्म हद से गुजरता है तो कुदरत को जलाल जाता है। फिरौन का सर जब उठता है मूसा कोई पैदा हो जाता है।

अकील अहमद क़ादरी मिसबाही...
अध्यापक _ : जामिया इसलामिया रौनाहीIMG-20220531-WA0004.jpg