विश्व पशु दिवस पर विशेष

in #social2 years ago

विश्व पशु दिवस पर रिपोर्टर शिव यादव की स्पेशल रिपोर्ट :

गोरक्षक गुंडे तो सरेआम पशुओं का कत्लेआम करने वाले क्या?
मुर्दे को छूकर नहाते हैं
जानवर को मारकर खाते हैं
मुर्दे को कब्रिस्तान/ शमशान घाट में दफनाते हैं
तो क्यूं हम कुछ जानवरों को मारकर अपने घर में जलाते/ पकाते हैं और अपने पेट में दफनाते/ खाते हैं।

यह पंक्तियां आज विश्व पशु दिवस के मौके पर बहुत हद तक सही साबित हो रही हैं ।

जानवर मनुष्यों के हमेशा से ही सबसे अच्छे दोस्त रहे हैं । मनुष्य ने अपनी सभ्यता की शुरुआत से ही जानवरों के साथ बेहतरीन दोस्ती बनाकर रखी और उसी का परिणाम है कि जानवर हमारी कई जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। लेकिन इसके बदले हमने जानवरों को क्या दिया है? उन्हें ही बेघर कर अपना भोजन बना लिया जो कभी हमारे परम मित्र हुआ करते थे लेकिन आज उन्हें अपना परम शत्रु बना लिया है ।

आज इंसान ने अपने भोजन और शौक के लिए कई ऐसे जानवरों को लुप्त होने की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है जो कभी इस धरती पर बड़ी तादाद में थे। उदाहरणार्थ- शार्क और व्हेल को खाने की प्लेट में रखने वाले तथाकथित शौकीनों की वजह से इन जलीय ( एक्वेटिक) प्राणियों की संख्या लगभग नगण्य हो चुकी है। कुछ ऐसा ही हाल हिंदू धर्म में मातृ शक्ति का दर्जा प्राप्त गायों और नीलगायों का भी हुआ है।

विगत कुछ सालों से जंगली जानवरों ने भी मानव बस्तियों पर हमला कर मनुष्य को ही अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया है। हमनें अपनी स्वार्थ - पूर्ति हेतु पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया और जंगलों का कटान कर अपनी बस्तियां स्थापित कीं।

जीवन- संघर्ष की जद्दोजहद में अब वन्य जीवों के रहने हेतु घर नहीं रहे व भोजन बनाने में दिक्कत हुई तो मजबूरन उन्हें मानव आबादी की ओर अपना रूख करना पड़ा। यही कारण है कि वह हिंसक हुए और हमारी आबादी पर हमले करने लगे। बंदर, सुअर और नीलगाय/ गाय लोगों की फसलों के दुश्मन बने हुए हैं। जंगलों और स्वयं पर कुठाराघात करने के परिणाम हमारे सामने हैं। जंगली और आवारा जानवरों की स्थिति को तो हम काबू ही नहीं कर सकते और सरकार व प्रशासन शहरों से लेकर गांव तक फैले आवारा पशुओं को भी संरक्षित नहीं कर पाती। सड़कों और खेतों पर खुले आम घूमते गाय और अन्य जानवर जनता के लिए तो मुसीबत बनते ही हैं इसके साथ- साथ वह कई बार स्वयं उनके लिए भी मुसीबत का सबब बन जाता है।

कहां खो गई वह आवाज?

आज इस मौके पर यह जानना बेहद जरूरी है कि बेजुबान पशुओं के प्रति हम क्या कर रहे हैं?

हमारा बर्ताव कैसा हो? इस पर सोच न बदली तो वह दिन दूर नहीं जब पशु- पक्षी ढूंढने पर भी नहीं मिलेंगे ।
मुंडेर पर कौवे की कौ- कौ व घर- आंगन में गौरैया की चहक तो दूर ही हो गई है। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार 33 कोटि देवी- देवताओं का वास- स्थान माने जाने वाली गाय की भी संख्या पिछले काफी समय से कम हुई है। आक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाकर उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता बढाई जा सकती है लेकिन उनकी जीवन क्षमता बहुत अधिक प्रभावित होती है।

विश्व पशु दिवस पर विशेष -

पशुओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए दुनियाभर में हर साल 4 अक्टूबर को विश्व पशु दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1931 में इटली के फ्लोरेंस शहर से हुई थी।

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि एक शाकाहारी व्यक्ति एक वर्ष में तकरीबन 100 से अधिक पशुओं की जान बचा सकता है। तो आइए आज इस मौके पर हम सब मिलकर शाकाहारी बनने का प्रयत्न करें और यथासंभव जानवरों के प्रति स्नेह रखेंगे।

कहते हैं कि फिल्में और साहित्य समाज का दर्पण हैं तो पशुओं का जिक्र वहां भी हुआ है-

हे खग- मृग हे मधुकर स्त्रेनी,
तुम देखी सीता मृग- नयनी।( साहित्य- वियोग श्रृंगार रस)
फिल्म- हाथी मेरे साथी में राजेश खन्ना - मोहम्मद रफी ÷
" जब जानवर कोई इंसान को मारे , कहते हैं दुनिया में वहशी उसे सारे।
एक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है,
चुप क्यूं है संसार? "1664851728572.jpg