अपूर्वा ने बनाया गन्ने के कचरे से अंगुलियों के निशान पहचानने का पाउडर

in #skn2 years ago

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संतकबीर नगर: जनपद की बेटी अपूर्वा सिंह ने गन्ने के कचरे से अंगुलियों के निशान (फिंगर प्रिंट) को पहचानने के लिए एक विशेष प्रकार का पाउडर विकसित किया है। शुगरकेन बगास नैनो बायोचार नामक पाउडर के परीक्षण के बाद अपूर्वा को कापीराइट मिल गई है। वह अब इसे पेटेंट कराने की तैयारी में है। खलीलाबाद शहर के स्व. संजय प्रताप सिंह की पुत्री अपूर्वा ने शोध के दौरान गन्ने के कचरे से फिंगर प्रिंट पहचानने के लिए उपयोगी पाउडर बनाने में सफलता हासिल की है। आवेदन करने के बाद राजस्थान सरकार की टीम ने परीक्षण करके लगभग पांच माह बाद उनके शोध को कापीराइट दे दिया। अपूर्वा का कहना है कि अब इसे पेटेंट करवाने की तैयारी की जा रही है।

कैसे बनता है फिंगर प्रिंट पहचानने का पाउडर

गन्ने के कचरे को एकत्र करके सुखाने के बाद उसे एक उचित तापमान पर जलाया जाता है। इससे बनी राख को बारीक पीसकर नैनो कार्बन पार्टिकल बनाया जाता है। यही फिंगर प्रिंट को पहचानने में प्रयोग होता है। अपूर्वा ने बताया कि कहीं भी आपराधिक घटना होने पर फाटक, दरवाजों के साथ ही अन्य स्थानों पर इस पाउडर को कागज के सहारे फैलाकर हाथ के अंगुलियों के निशान को पहचाना जा सकता है। अंगुली रखने के स्थान पर पाउडर चिपक जाता है। ऐसे ही अन्य सबूतों के साथ ही पाउडर का उपयोग करके सबूत एकत्रित किए जा सकते हैं।
सरकारी सहयोग के लिए हो रहा प्रयास
अपूर्वा ने बताया कि उनका शोध अभी किसी जनरल में प्रकाशित नहीं हुआ है। इस अनुसंधान के लिए सरकारी स्तर से कोई आर्थिक सहायता भी नहीं मिली है। विश्वविद्यालय प्रशासन उसके शोध को सरकारी सहयोग दिलाने की दिशा में प्रयास कर रहा है। यदि शासन का साथ मिला तो उसे देश के लिए आविष्कार को पेटेंट कराने में सुविधा मिल सकेगी।
बचपन से कुछ नया करने की थी इच्छा
खलीलाबाद से इंटरमीडिएट प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बाद अपूर्वा सिंह नोयडा के एएमआइटी कालेज से फोरेंसिक विज्ञान विषय से बीएससी किया। यहां भी वह प्रथम श्रेणी में रही। उनकी मां कल्पना सिंह व भाई संकल्प सिंह और मामा रितेश सिंह बताते हैं कि बचपन से ही अपूर्वा के मन में कुछ नया करने की इच्छा थी। इसी को लेकर उसने 2020 में मध्य प्रदेश के सागर विश्वविद्यालय से फोरेंसिक विज्ञान में एमएससी करने के बाद जयपुर के विवेकानंद ग्लोबल विश्वविद्यालय में प्रो. एसएस डागा के निर्देशन में शोध (पीएचडी) करने लगी।