भारतीय समाज में नारी का स्थान हमेशा से सर्वोच्च रहा है -अनीता भगत

in #shivraj2 years ago

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जीवन की हर एक हलचल के केंद्र में हमेशा से नारी की महत्वपूर्ण स्थिति रही है, अब इसके बजूद को दरकिनार नहीं किया जा सकता। निश्चित ही नारी लेखन अब भी सीमित है लेकिन समर्थ लेखिका पुनीता शाह ने कलम चलाई है - कोमल है कमजोर नहीं तू शक्ति का नाम ही नारी है जग को जीवन देने वाली, मौत भी तुझ से हारी है। भारतीय समाज में नारी शक्ति का स्थान सृष्टि के आरंभ से ही सर्वोच्च रहा है सतयुग, द्वापर या त्रेता युग सभी में नारी को सर्वोच्च स्थान का सम्मान मिलता रहा है। नारी की सहभागिता के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण व सफल नहीं माना जाता। त्रेता युग में जब श्री रामचंद्र जी को अश्वमेध यज्ञ करना था तब यज्ञ को पूर्ण करने के लिए सीता

की मूर्ति को अपने साथ स्थापित करना पड़ा था क्योंकि उस समय श्री रामचंद्र जी ने सीता का परित्याग कर दिया था। माता कैकई ने युद्ध क्षेत्र में राजा दशरथ की जान बचाकर अपनी बुद्धि वल, शक्ति का परिचय दिया था। सती सावित्री ने सत्यपाल से अपने पति को यमलोक से वापस लाकर नारी शक्ति के दृढ़ निश्चय का एहसास कराया था। देवी सर्मिष्ठा ने राष्ट्रहित के लिए दैत्य गुरु शंकराचार्य की कन्या देवयानी की दासी बनना स्वीकार कर लिया था, और राष्ट्र को संकट से उभार कर यह सिद्ध कर दिया था कि नारी राष्ट्र की आधार शक्ति भी है। हम यह भूल जाते है कि नारी मातृसत्ता का नाम है, जो हमें जन्म देती है, पालती है तथा इस योग्य बनाती है कि हम अपने जीवन में महत्वपूर्ण कार्य कर सकें। भारत में ऐसी नारियों की कमी नहीं है जिन्होंने अपना सर्वस्व राष्ट्रहित को अर्पित कर दिया था जैसे जीजाबाई रानी लक्ष्मीबाई देवी अहिल्या बाई। जहाँ तक योग्यता का प्रश्न है नारी ने सभी क्षेत्रों में नाम अर्जित किया है शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक कार्य, राजनीतिक क्षेत्र में पहले से ही श्रेष्ठ मानी जाती रही। इंदिरा गांधी ने कुशल प्रशासन दिया था भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करा था, सरोजनी नायडू ने राज्यपाल का और प्रतिभा पाटिल ने भारत के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के पद की गरिमामय किया था। नोबेल पुरस्कार के क्षेत्र में भौतिक व रासायनिक का प्रथम बार मैडम क्यूरी को नोबेल पुरस्कार मिला था। यह एक प्राकृतिक तथ्य है कि नारी कोमल कंठ होने के साथ-साथ अपने स्वभाव में अधिक कर्मठ एवं सहनशील हुआ करती है उसमें अधिक धैर्य होता है। कहते हैं कुछ अपवादों को नकारते हुए वर्तमान में भी नारी उतनी ही सबल है जितनी प्राचीन काल में थी। वह हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चलने में सक्षम है। भारतीय समाज स्त्री पुरुष शिव-शक्ति का स्वरूप है। आज के समय में नारी शक्ति मातृशक्ति का उतना ही महत्व है जितना पुरुष शिव शक्ति का पुरुष प्रधान समाज होते हुए भी नारी शक्ति के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता। स्त्री और पुरुष मानव समाज की गाड़ी के दो पहिए है यदि ये पहिया समानांतर संतुलन बनाकर चलते रहेंगे तो कोई भी समाज ऊंचाइयों की बुलंदियों को छू सकता है।