फसल बचाने के प्रयास में घर की पूंजी भी गंवा रहे किसान

संतकबीरनगर
संतकबीरनगर में बरसात न होने से सूख रही धान की फसल बचाने के प्रयास में किसान को अब घर की पूंजी भी गंवाने की नौबत आ गई है। खेत की नमी गायब होने से निजी संसाधनों से हर सप्ताह सिंचाई करनी पड़ रही है। जितनी लागत लग रही है उसके अनुपात में उत्पादन होने की उम्मीद नहीं है। सूखे के हालात पर तहसीलों से डाटा तैयार हो रहा है। जिले में 50 प्रतिशत भी बारिश नहीं हुई है। लिहाजा किसान जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग कर रहे हैं। कुछ स्थानों पर तो किसान लागत अधिक हो जाने पर खड़ी फसल की जुताई करवा रहे हैं।

इस समय जिला सूखे की चपेट में आ गया है। किसान धान की फसल को सुरक्षित करने के लिए निजी संसाधनों से खेत में पानी भर रहे हैं। किसानों का कहना है कि जब पैदावार से लागत अधिक हो जा रही है तो कैसे इस फसल को उगाया जा सकता है। इससे बेहतर तो आगे की फसल के लिए तैयारी करें तो दूसरी फसल सुरक्षित हो जायेगी। किसानो ने जिले को सूखग्रस्त घोषित करने की मांग की है।

हर हफ्ते एक एकड़ पर साढ़े तीन हजार सिंचाई की आ रही लागत

निजी संसाधनों से सिंचाई करने से किसानों की कमर टूट जा रही है। हफ्ते भर में ही नमी गायब होने से सिंचाई करनी पड़ रही है। एक एकड़ की सिंचाई करने में लगभग 18 घण्टे पानी चलाना पड़ रहा है। वहीं पम्पसेट चालक 200 रूपए प्रति घण्टे की लागत से वसूल रहे हैं। इस तरह एकड़ की सिंचाई मे साढ़े तीन हजार की लागत आ रही है। इसके चलते किसानों का इरादा बदल रहा है।

जोगीडीहा के किसान अर्जुन चौधरी ने कहा कि धान के खेतों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। पानी के अभाव में फसलें सूख रही रही हैं। एक तरफ मेघ नाराज चल रहे हैं। वहीं क्षेत्र की नहरों में इस समय पानी तो आ रहा है लेकिन खेतों तक पानी नही पहुंच पा रहा है। ऐसे में निजी संसाधनों से खेतों में पानी भरा जा रहा है।
चौरी के किसान मातबर यादव ने कहा कि सरकार किसानों को परेशान कर रही है। डीजल का दाम अधिक है जिससे सभी किसान अधिक लागत के कारण खेतों में पानी नहीं भर पा रहे हैं। अब तो बेहतर होगा कि खेतों की जुताई करा दी जाए ताकि गेहूं की फसल प्रभावित न हो। सरकार को जिला को सूखाग्रस्त घोषित कर सब्सिडी देनी चाहिए।
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