Sawan Mantra 2022: सावन के महीने में कर लें शिव की आराधना और इस मंत्र का जाप, सभी कष्टों से मिलेगी मुक्ति

in #santkabirnagar2 years ago

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Sawan Mantra 2022: सावन का महीना शुरु होने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं। सावन के महीने में भगवान शिव की खास रूप से पूजा आराधना की जाती है। शिव जी भक्तों पर बहुत ही कृपालु होते हैं। उनकी पूजा अर्चना करने के बहुत से तरीके हैं। आज हम आपको एक ऐसे महामंत्र के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसका जाप करने से जीवन के सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है। भगवान शिव का महामंत्र महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से रोग और भय दूर हो जाते हैं। साथ ही आयु में भी वृद्धि होती है। महामृत्युंजय का जाप विपत्ति के समय में भी दिव्य ऊर्जा के कवच की सुरक्षा प्रदान करता है।

शक्तियों से भरपूर है ये मंत्र
मंत्र के बारे में जानने से पहले हीन शक्तियों को समझना बहुत जरूरी है। हीन शक्तियां दो प्रकार की मानी जाती है। पहली वह होती है जो मनुष्य स्वयं अपने भीतर विपरीत विचार धाराओं से निर्मित करता है। और दूसरी वह होती है जो दूसरों द्वारा निर्मित की जाती है। महामृत्युंजय के महामंत्र का जाप जब किया जाता है तो एक अलग ही प्रकार का कंपन पैदा होता है। जो कि इन हीन शक्तियों के प्रभाव को कम करता है। इस मंत्र का पाठ बचपन से ही करना चाहिए। ताकि इस मंत्र का कवच सदैव आपके साथ बना रहे।

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

त्र्यम्बकं - इसका अर्थ है तीन आंखों वाला, भगवान शिव की दो साधारण आंखें हैं और तीसरी आंख दोनों भौहों के मध्य में है। यही तीसरी आँख है। यह विवेक और अंतर्ज्ञान की आंख है। जब मनुष्य विवेक की दृष्टि से देखता है तो उसका अनुभव कुछ और ही होता है। इसके जाप से ही विवेक की दृष्टि आने लगती है।
यजामहे - इसका अर्थ यह है कि भगवान के प्रति जितना ज्यादा पवित्र भाव पाठ और जप के दौरान रखा जाएगा। उतना ही उसका प्रभाव बढ़ेगा। भगवान के प्रति सम्मान और विश्वास रखते ही प्रकृति की ओर देखने का नजरिया बदल जाता है। जब भी हम पूजा पाठ करते हैं तो कुछ विपरीत शक्तियां मन को हटाने का प्रयास करती हैं। लेकिन यदि इन शक्तियों के वेग को रोक लिया जाए तो ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
सुगन्धिं - भगवान शिव सुगंध के पुंज माने जाते हैं। जो मंगलकारी हैं। उनका नाम शिव है। उनकी ऊर्जा को यहां पर सुगंध कहा गया है। जब व्यक्ति अहंकारी, अभिमानी और ईर्ष्यालु हो जाता है तो उसके व्यक्तित्व से दुर्गंध आती है। लेकिन कुछ लोगों का व्यक्तित्व इतना आकर्षक होता है कि उनके निकट बैठने पर आपको पॉजिटिव वाइब्स आने लगती है। उनके बात करने का तरीका भी अच्छा लगता है। उनकी प्रसन्नता और उनकी सकारात्मकता से दूसरे चार्ज हो जाते हैं। वहीं कुछ दुखी लोग मिलते हैं। जो अपनी समस्याओं का बखान करने लग जाते हैं। जिससे मन नकारात्मक हो जाता है।
पुष्टिवर्धनम् - इसका अर्थ है आध्यात्मिक पोषण और विकास की ओर जाना। मौन अवस्था में रहते हुए आध्यात्मिक विकास अधिक हो जाता है। संसार में ईर्ष्या, घृणा, अहंकार आदि के कीचड़ में रहते हुए कमल की तरह ही खिलना होगा। आध्यात्मिक विकास से ही कमल की तरह खिला जा सकता है।
उर्वारुकमिव बंधनान् - इसका अर्थ है संसार में जुड़े रहते हुए भी भीतर से अपने इस बंधन को छुड़ाना। भगवान शिव से प्रार्थना करना कि मुझे संसार में रहते हुए आध्यात्मिक परिपक्वता प्रदान करें। जिस तरह नौकरी करने वाले ऑफिस में प्रमोशन और व्यापारी मुनाफे का हिसाब लगाते हैं। उसी तरह आध्यात्मिक प्रमोशन के बारे में भी विचार करना चाहिए।
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् - आध्यात्मिक परिपक्वता आने का बाद मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाती है। हे प्रभु आपके अमृतत्व से कभी हम वंचित न रहें। जब यह भाव मजबूत हो जाएगा तब मृत्यु के भय से मुक्ति मिल जाएगी। भय वहीं तक होता है जहां आपको लगता है कि आप कुछ कर सकते हैं। लेकिन जो चीज आपकी पकड़ से बाहर हो उसे लेकर चिंता कैसी। शंकालु होना ही मोह है।
भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने स्वच्छ आसन में पद्मासन की स्थिति में बैठकर रुद्राक्ष की माला से जाप करें। जाप करने से पहले सामने एक कटोरी में जल रखें। जाप करने के बाद उस जल तो पूरे घर में छिड़क दें। इससे हीन शक्तियों का प्रभाव नहीं पड़ेगा।