तरकुलहा माता के सामने अंग्रेजों की बलि देते थे बंधु सिंह, फांसी पर लटकाते ही टूट जाता था फंदा

in #santkabirnagar2 years ago

Screenshot_20220805-131101_Facebook.jpg

अमर शहीद बंधु सिंह, देश के ऐसे शहीद का नाम है जिन्होंने 1857 की क्रांति में अहम योगदान दिया। उन्होंने पूर्वांचल के युवाओं के दिल में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई की ऐसी चिंगारी जलाई, जो बाद में ज्वाला बन गई। ऐसे युवाओं के देशप्रेम के जज्बे के कारण ही देश आजाद हुआ।

गोरखपुर के चौरीचौरा क्षेत्र में स्थित तरकुलहा देवी का मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर की महिमा की चर्चा जिले तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूर्वांचल में इसकी ख्याति फैली हुई है। तरकुलहा देवी मंदिर का महत्व स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ा है।
ऐसी मान्यता है कि क्रांतिकारी बाबू बंधु सिंह को माता का विशेष आशीर्वाद प्राप्त था। वह यहां माता के समक्ष अंग्रेजों की बलि देकर उन्हें प्रसन्न किया करते थे।

तरकुलहा देवी मंदिर का इतिहास
तरकुलहा देवी मंदिर का इतिहास चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के विकास खंड सरदारनगर अंतर्गत स्थित डुमरी रियासत के बाबू शिव प्रसाद सिंह के पुत्र व 1857 के अमर शहीद बाबू बंधू सिंह से जुड़ी है। कहा जाता कि बाबू बंधू सिंह तरकुलहा के पास स्थित घने जंगलों में रहकर मां की पूजा-अर्चना करते थे तथा देश को अंग्रेजों से छुटकारा दिलाने के लिए उनकी बलि मां के चरणों में देते थे।
फांसी पर लटकाते ही टूट गया फंदा
बंधु सिंह से अंग्रेज अफसर घबराते थे। उन्होंने बंधु सिंह को धोखे से गिरफ्तार कर उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश दे दिया। जल्लाद ने जैसे ही फांसी के फंदे पर लटकाया फंदा टूट गया। यह क्रम लगातार छह बार चला। जिसे देखकर अंग्रेज आश्चर्य चकित रह गए। तब बंधु सिंह ने मां तरकुलहा से प्रार्थना की कि हे मां मुझे अपने चरणों में ले लो। सातवीं बार बंधु सिंह ने स्वयं फांसी का फंदा गले में डाला। इसके बाद उन्हें फांसी हो सकी।