1857 से भी पहले द्रौपदी मुर्मू के संथाल समुदाय ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी थी जंग

in #santkabirnagar2 years ago

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देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू को चुन लिया गया है। मुर्मू भारत के सबसे पुराने आदिवासी समुदाय ‘संथाल’ से ताल्लुक रखती हैं। संथाल समुदाय का इतिहास बहुत ही गौरवशाली और रीति रिवाज अनोखा रहा है। भारत में जब आजादी की पहली सामूहिक कोशिश भी नहीं हुई थी, उसके तकरीबन 80 साल पहले संथाल के तिलका मांझी ने धनुष बाण से ही अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था।
रीति रिवाज ऐसे अनोखे-अनोखे कि गैर-आदिवासी सुनकर ही दंग रह जाएं। संथाल समुदाय में 12 तरह के विवाह प्रचलित हैं। इसमें सिंदूर की जगह तेल लगाने से लेकर गर्भवती महिला से विवाह करने तक का चलन शामिल है। इस समुदाय में लिव-इन-रिलेशनशिप भी अलग तरह का होता है। अगर लड़का-लड़की को प्रेम हो लेकिन परिवार उनके खिलाफ हो, तो कपल लिव-इन में रहने के लिए अंजान जगह पर चला जाता है। प्रेमिका के मां बनते ही उन्हें शादीशुदा मान लिया जाता है।
2011 की जनगणना के मुताबिक देश में करीब 8 प्रतिशत आदिवासी हैं। आबादी के मामले में सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय भील है। दूसरे नंबर पर गोंड तीसरे नंबर पर संथाल आते हैं। संथाल शब्द का अंग्रेजी में मतलब होता Peaceful Man यानी शांत व्यक्ति। अन्याय के खिलाफ विद्रोह की ऐतिहासिक विरासत वाला यह समुदाय आम तौर पर बेहद शांति पूर्वक जीवन यापन करना पसंद करता है। यह समुदाय शिकार के लिए जहरीले तीर तो बनाता था लेकिन भयानक युद्ध में भी उनका इस्तेमाल अपने दुश्मनों पर नहीं करता था। छोटानागपुर के पठार में बसने से पहले संथाल समुदाय खानाबदोश था। 18वीं शताब्दी के अंत में उन्होंने झारखंड (पहले बिहार) के संथाल परगना में रहना शुरू किया। फिर वहीं से उड़ीसा और पश्चिम बंगाल की तरफ बढ़ें। पूर्वोत्तर भारत के आदिवासियों को छोड़ दें तो आम तौर पर जनजातीय समुदायों में साक्षरता का स्तर कम होता है लेकिन संथालों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता। 1960 के दशक से ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल के अन्य जनजातियों की तुलना में संथाल अधिक साक्षर पाए गए हैं।

सामाजिक उत्थान के बावजूद संथाल आमतौर पर अपनी जड़ों से जुड़े होते हैं। वे प्रकृति उपासक हैं। उनकी पारंपरिक पोशाक में पुरुषों के लिए धोती और गमछा, वहीं महिलाओं के लिए एक शॉर्ट-चेक साड़ी जिसपर चेक नीले और हरे रंग का होता है। अन्य जनजातियों की तरह ही इस समुदाय में भी गोदना (टैटू) का चलना है। जादोपटिया इस समुदाय की प्रमुख लोक चित्रकला है, यह कला संथालों के लिए हमेशा से ही अपने इतिहास और दर्शन को अभिव्यक्त करने का प्रमुख साधन रहा है।

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