संपादकीय• टूटते गठबंधन धर्म का एक और उदाहरण

in #sampadkiye2 years ago

राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है और न ही स्थायी दुश्मन। बिहार में भारतीय जनता पार्टी के साथ जद (यू) का गठबंधन खत्म करते हुए बिहार के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद अब नीतीश कुमार के नेतृत्व में भी बिहार सरकार का चेहरा बदला हुआ होगा। इसे अस्तित्व की लड़ाई कहें या राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा लेकिन यह सच है कि सत्ता की खातिर पाला बदलने में कोई दल पीछे नहीं रहता। लोकतांत्रिक मूल्य तो शायद राजनीतिक दलों के शब्दकोश से गायब ही हो गए लगते हैं। दो दिन की गहमागहमी के बाद नीतीश कुमार ने आखिर राज्यपाल से मुलाकात कर 160 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने का दावा भी पेश कर दिया।

बिहार का सियासी घटनाक्रम क्या रंग दिखाएगा, यह भी अगले दिनों में सामने आ ही जाएगा। पर सबकी नजर इस बात पर रहेगी कि जो भी उलटफेर होगा उसका देश की राजनीति पर क्या असर पड़ने वाला है? यह भी जाहिर है कि नीतीश की पार्टी का एनडीए से यह ‘सियासी तलाक’ उन चर्चाओं को भी हवा देने का काम कर रहा है जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त विपक्ष की ओर से नीतीश को भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में पेश करने वाले चेहरों में से एक माना जा रहा है। राजनेताओं के लिए सत्ता के लिए यू-टर्न लेने के किस्से कोई नए नहीं हैं। खुद नीतीश पहले भी कभी राजद तो कभी भाजपा से दोस्ती का हाथ छिटका चुके हैं। महाराष्ट्र में उद्धव सरकार के पतन के बाद कहीं न कहीं नीतीश कुमार व जद (यू) को भी लगने लगा था कि भाजपा बिहार में भी ऐसी ही किसी कवायद को हवा न दे दे। नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़ने को अपनी पार्टी का फैसला बताया है लेकिन यह भी सच है कि सत्ता में साझेदार भाजपा की अपने दम पर सत्ता में आने की आतुरता में भी उन्हें अपने सियासी भविष्य पर खतरा मंडराता दिखने लगा था। राष्ट्रीय जनता दल पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा दल बनकर उभरा लेकिन सत्ता हाथ में नहीं आ सकी। ऐसे में सत्ता पाने की आतुरता राजद को भी कम नहीं होगी।

सवाल यही है कि क्या सत्ता की खातिर चुनाव पूर्व गठबंधनों को नकारना उचित है? महाराष्ट्र में तो यह गठबंधन चुनाव नतीजे आने के साथ ही टूट गया। राजनीति में जब नीति गायब होने लगती है तो बेमेल गठबंधनों के बनते भी देर नहीं लगती। और, इस बुराई के लिए कमोबेश सभी राजनीतिक दल समान रूप से जिम्मेदार हैं। देखा जाए तो सबकी नजर में 2024 का लोकसभा चुनाव है जहां 40 सीटों वाले बिहार की भूमिका भी अहम रहने वाली है। बिहार में नया सियासी गठबंधन कितना बदलाव लाएगा, यह भविष्य ही बताएगा।

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