उदास रहने से नहीं भर सकते जीवन का खालीपन, हमारा कर्तव्य केवल कर्म करना- समकितमुनि

in #samajicke2 years ago

खुश रहने की कला सीख ली तो कभी नहीं हो सकते जीवन में दुःखी

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भीलवाड़ा, 1 अगस्त। जीवन में खालीपन रोने या उदास रहकर जीने से या कर्मो व भगवान को कोसने से नहीं भरा जा सकता। हमारा कर्तव्य केवल कर्म करने का है, फल के बारे में चिंता करना अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं है। हमारा कार्य व कर्तव्य अच्छे कर्म करते जाना है। हर स्थिति में हमे अपनी खुशी नहीं खोनी चाहिए। ये विचार श्रमणसंघीय सलाहकार सुमतिप्रकाशजी म.सा. के सुशिष्य आगमज्ञाता प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने सोमवार को शांतिभवन में नियमित चातुर्मासिक प्रवचन के तहत भविष्य में तीर्थंकर बनने वाली सुश्राविका सुलसा की कथा सुनाते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिसने खुश रहने की कला सीख ली वह जिंदगी में कभी दुःखी नहीं हो सकता। दूसरों को दुःखी देख मन में करूणा जन्मेंगी लेकिन स्वयं अशांत नहीं होगा। चिंता करने की अपेक्षा अच्छा है कर्तव्य करते चलो। मुनिश्री ने हर स्थिति में खुश रहने के लिए प्रेरित करते हुए सैकड़ो श्रावक-श्राविकाओं को संकल्प कराया कि आज पूरे दिन प्रसन्न रहना है चाहे अच्छी-बुरी कैसी भी स्थिति बने। सुबह उठकर सोचने लगे क्या होगा तो हो सकता 60 प्रतिशत डिस्टर्ब हो लेकिन सोच ही ऐसी बन जाए तो शत प्रतिशत डिस्टर्ब होना है। सुबह उठते ही संकल्प कर लिया आज खुश रहना है तो कोई आपको उदास नहीं कर पाएगा। पूज्य समकितमुनिजी ने सुश्राविका सुलसा की जिंदगी से प्रेरणा लेने का आग्रह करते हुए कहा कि भगवान बनने की हसरत रखते है तो जो भविष्य के भगवान बनने वाले है तो उनकी जिंदगी को फॉलो करते हुए वैसा ही जीने का प्रयास करें। अपनी छवि अच्छी बनानी है तो अच्छी आदतों को अपनाना होगा। सुलसा जैसी सोच रखों कि सब कुछ किसी के पास नहीं होेता लेकिन सबके पास कुछ न कुछ जरूर होता है। सबके जीवन में कुछ जगह खाली होती है। एक खाली जगह को भरने के चक्कर में कुछ लोग पूरी तरह खाली हो जाते है तो कुछ उस पर ध्यान नहीं देकर भरे हुए का आनंद लेते है। मुसीबत का पहाड़ किसी पर टूटता है उस समय यदि मन नहीं टूटे तो अशांति का फोल्डर क्लोज ही रहता है। उन्होंने कहा कि ज्ञान का अभिमान ही बड़ो को छोटे के यहां जाने से रोकता है। बड़े छोटे के यहां जाए इसके लिए बहुत बड़ा दिल चाहिएं।

माता-पिता को घर से निकालने वाले पशु से भी गए गुजरे

पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने माता-पिता की सेवा को सबसे बड़ी सेवा बताते हुए कहा कि यदि आप अपने माता-पिता को जो आपको इस दुनिया में लेकर आए और आपसे पहले उस घर में रहते है उन्हें घर से भगाते हुए तो स्वयं को पशु से भी गया गुजरा समझना। एक पशु भी उसके घर में कोई आ जाए तो उसे मारता नहीं बल्कि सुरक्षा प्रदान करता है। उन्होंने घर पर आने वालों का स्वागत-सम्मान करने का आग्रह करते हुए कहा कि आगमकारों ने कहा कि मेहमान की खातिरदारी खानापूर्ति नहीं करके सही ढंग से होनी चाहिए। यदि हम किसी का सम्मान नहीं करते, उसे स्थान प्रदान नहीं करते है तो मनुष्य से नारकीय जीव बन जाते है। परमात्मा ने ये सौभाग्य केवल इंसान को प्रदान किया है जो किसी का स्वागत -अभिनंदन कर सके। किसी अन्य जीव को ये सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है।

मंगल की शरण में जाने से दुर्भाग्य खत्म

समकितमुनिजी ने कहा कि हम दिनभर जिसकी शरण में रहेंगे हमारी सोच, विचार व जीवन वैसा ही बनेगा। इसीलिए आप जांच करते रहे कि आप दिनभर मंगल या दंगल में से किसकी शरण में है। मंगल की शरण लेने से दुर्भाग्य खत्म हो जाता है। कुछ शरण से सौभाग्य और कुछ शरण से दुर्भाग्य की शुरूआत होती है। जैन धर्म में चार तरह के मंगल अरिहन्त, सिद्ध, साहूं व केवल धर्म का मंगल बताए गए है। इनकी शरण में रहना है। आपका एक मंगल विचार किसी की शंका दूर कर सकता है, किसी की हानि को लाभ में तब्दील कर सकता है। किसी का अज्ञान दूर कर सकता है।

तपसाधना करने की लगी है होड़

चातुर्मास में तप साधना की भी होड़ सी लगी हुई है। धर्मसभा में रविवार को सुश्राविका सुनीता सुकलेचा ने 17 उपवास की तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए तो प्रवचन पांडाल हर्ष-हर्ष, जय-जय के उद्घोष से गूंज उठा। कुछ तपस्वियों ने 6 व 7 उपवास के प्रत्याख्यान भी लिए। लुधियाना से भीलवाड़ा शांतिभवन दर्शनों के लिए परिवार संग आए गुरू निहाल परम्परा के वरिष्ठ श्रावक लाला कस्तुरीलाल जैन,कमला लैन एवं अखिल जैन का श्रीसंघ के अध्यक्ष राजेन्द्र चीपड, उपाध्यक्ष सुरेशचन्द्र सिंघवी, सह मंत्री प्रकाश पीपाड़ा, श्री शांति जैन महिला मंडल की अध्यक्ष स्नेहलता चौधरी एवं मंत्री सरिता पोखरना ने स्वागत-सम्मान किया। धर्मसभा का संचालन श्रीसंघ के मंत्री राजेन्द्र सुराना ने किया।

बेटियों पर विशेष प्रवचन श्रृंखला 5 अगस्त से

पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने बताया कि बड़ी होती बेटियों एवं उनकी माताओं के लिए 5 से 7 अगस्त तक तीन दिवसीय विशेष प्रवचन श्रृंखला ‘‘पिंकी का क्या होगा’’ का आयोजन होंगा। इसमें श्राविकाएं अपनी ऐसी बेटियों को साथ लेकर अवश्य शामिल हो जो कक्षा 9 या उससे बड़ी कक्षाओं में पढ़ रही है। इस प्रवचन श्रृंखला के माध्यम से बदलते परिदृश्य में युवा होती बेटियों के सामने आ रही चुनौतियों एवं परिजनों की भूमिका पर चर्चा होंगी। इसी तरह माता-पिता की सेवा के लिए प्रेरणा प्रदान करते हुए 19 से 21 अगस्त तक कथा श्रवण कुमार की आयोजन होगा। इसके तहत 21 अगस्त को ऐसे आदर्श पुत्रों-पुत्रवधुओं या पुत्रियों-दामादों को श्रवणकुमार अवार्ड भी प्रदान किया जाएगा जो विवाह के 25 वर्ष बाद भी माता-पिता या सास-ससुर के संग रहकर उनकी समर्पित भाव से सेवा कर रहे है।