साल बीज सेआदिवासी परिवार का संवर सकता है जीवन

in #sal2 months ago

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  • साल बीज से आदिवासी परिवार हो सकते है मालामाल
  • साल बीज से ग्रामीणों का संवर सकता है जीवन
  • समर्थन मूल्य में साल बीज खरीदी के लिए भेजा मांग पत्र, नहीं आई खरीदी के लिए राशि
  • बिचौलिये उठा रहे ग्रामीणों का फायदा, समर्थन मूल्य का नहीं मिल रहा लाभ

मंडला. मंडला जिले का सबसे पिछड़़ा और वनांचल क्षेत्र मवई, जिसे छोटा कश्मीर के नाम से भी जाना जाता है। जिले का मवई विकासखंड अपने घने जंगलों और साल के लिए प्रसिद्ध है। मवई में वृहत रूप में साल का जंगल फैला हुआ है। साल के जंगल की ठंडक लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। इसके साथ ही ये जंगल अनेक जड़ी बुटियों और कंद मूल से अच्छादित है। साल के वृक्ष से निकलने वाला साल बीज भी बहुउपयोगी है। इस साल वृक्ष की लकड़ी, बीज ही नहीं बल्कि उसके फल, छाल, पत्ते भी उपयोगी हैं। साल बीज की मांग को देखते हुए आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला के वनांचल क्षेत्र मवई में साल बीज के लिए विगत वर्ष यहां वन विभाग ने साल बीज खरीदी के लिए समर्थन मूल्य में खरीदी प्रारंभ की थी। यहां बनाई गई वन समितियों के माध्यम से साल बीज की खरीदी की जा रही थी, लेकिन विगत कुछ वर्षो से शासन से साल बीज के समर्थन मूल्य में खरीदी के लिए राशि जारी नहीं की जा रही है। जिसके कारण मवई क्षेत्र के ग्रामीणों को यह साल बीज यहां के बिचौलियों को बेचना पड़ रहा है। जिससे इसका फायदा यहां के बिचौलिये उठा रहे है।

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जानकारी अनुसार प्रदेश की सीमा में बसा छत्तीसगढ़ राज्य से लगा आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला के वनांचल जनपद पंचायत मवई में विगत वर्षो से साल बीज की खरीदी समर्थन मूल्य पर नहीं की जा रही है। जिसके कारण मवई क्षेत्र के आदिवासी परिवार निराश है। क्षेत्र के कुछ बिचौलियों द्वारा ग्रामीणों से यह साल बीज मनमुताबिक दामों में खरीदकर जिले से बाहर बेच रहे है। वहीं विगत वर्षो में प्रतिवर्ष सरकार द्वारा इसका समर्थन मूल्य लगभग 20 रूपये के आसपास था और खुले बाजार में इसके दाम 10 से 15 रूपए थे, लेकिन समर्थन मूल्य में खरीदने के लिए राशि ना मिलने के कारण वन समितियों द्वारा इसकी खरीदी नहीं की जा रही है। जिसके कारण ग्रामीणों को इसे खुले बाजार में ही बेचना पड़ रहा है। आज की स्थिति में साल बीज का समर्थन मूल्य भी बढ़ गया होगा, वहीं खुले बाजार में अब यहां के बिचौलिये करीब 20 रूपए में आदिवासी परिवार से यह बीज खरीदी कर रहे है।

बताया गया कि समर्थन मूल्य में साल बीज की खरीदी ना होने से यहां के बिचौलिये खुले बाजार में इसे यहां के ग्रामीणों से 15 से 20 रूपए के भाव में खरीदी करते थे। यदि शासन वन समितियों को समर्थन मूल्य की राशि प्रदान करें तो वन समितियों को फायदा होने के साथ यहां के आदिवासी परिवारों की आर्थिक स्थिति और बेहतर हो सकती है। समर्थन मूल्य में खरीदी के साथ ग्रामीणों को इसका बोनस भी मिल जाएगा। जिससे ग्रामीणों को एक अच्छी आय अर्जित होगी और बिचौलियों के पास ओने पोने दाम में यह साल बीज नहीं बेचना पड़ेगा। फिलहाल मवई के बिचौलिये इस साल बीज से अच्छी खासी आमदानी कर रहे है।

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  • मांग पत्र भेजा, नहीं आई समर्थन मूल्य की राशि
    मवई रेंज के रेंजर प्रफुल्ल त्रिपाठी ने बताया कि इस वर्ष साल बीज का समर्थन मूल्य में खरीदी के लिए प्राथमिक लघु वन उपज समित द्वारा मांग पत्र दिया गया था, इस मांग पत्र को जिला लघु वन उपज समिति को भेजा गया। जहां यह मांग पत्र राज्य लघु वन उपज संघ को भेजा गया। लेकिन इस वर्ष समर्थन मूल्य में साल बीज खरीदी के लिए आज दिनांक तक राशि नहीं आई। जिसके कारण इस वर्ष साल बीज की खरीदी समर्थन मूल्य में नहीं की जा सकी है।

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  • उद्योग स्थापित होने से मिल सकते है रोजगार के नए साधन:
    बताया गया कि विगत तीन-चार वर्षो से मवई में समर्थन मूल्य पर साल बीज की खरीदी ना होने के कारण मवई मुख्यालय में साल बीज बेचने आदिवार बिचौलियों के पास देखे जा सकते है। मवई क्षेत्र में इस साल बीज से एक सीजन में यहां एक करोड़ से अधिक के साल बीज खरीदा जाता है। लोगो का मानना है कि इससे जुड़े उद्योग मवई क्षेत्र में स्थापित होने से यहां के हजारों आदिवासी युवाओं को रोजगार के साधन उपलब्ध हो सकते है और उन्हे काम की तलाश में बाहरी प्रदेशो में पलायन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यदि यहां इसका उद्योग स्थापित हो जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों से होने वाला पलायन बंद हो जाएगा। जरूरतमंदों को रोजगार मिलने लगे। जिससे ग्रामीणों की परेशानी खत्म हो जाएगी।

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  • मवई से गुजरात तक जाता है साल:
    बताया गया कि साल बीज का उपयोग कई चीजों में किया जाता है। साल बीज के तेल को सामान्य तेल में मिलाने से यह तेल बन जाता है और वनस्पति घी में इसका उपयोग किया जाता है। व्यापारियों के मुताबिक साल के बीज का उपयोग चॉकलेट के ऊपरी परत बनाने में, कपड़े धोने के साबुन बनाने में किया जाता है। मवई के इस साल के बीज को गुजरात की एक कंपनी द्वारा खरीदा जाता है। जिसे व्यापारी द्वारा खरीद कर रायपुर स्थित सरई मील भेजा जाता है।

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  • यह है साल बीज की खासियत:
    प्रत्येक वर्ष मार्च, अप्रैल और सितंबर अक्टूबर में पेड़ो में नए पत्ते लगते है। जब सम्पूर्ण जगह पतझड़ रहता है, तब साल के इन जंगलो में हरियाली रहती है। इन साल के पेड़ो की लम्बाई 70 से 100 फिट तक होती है। इनकी लकडिय़ा पानी में कभी खराब नहीं होती है। जिसके चलते इन साल की लकडिय़ों का उपयोग रेल की पटरियों में बिछाने में किया जाता है। इनकी जड़ो में पानी संग्रहण की क्षमता अत्यधिक होती है। इनकी जड़ों में करीब पांच हजार लीटर तक पानी स्टोर रहता है। मप्र में यह साल का जंगल केवल मवई क्षेत्र और कान्हा के आस पास व डिंडोरी जिले अमरकंटक के आस पास तक फैला हुआ है। देश में इसका जंगल कुछ क्षेत्रफल में पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में भी मिलते है।

  • इनका कहना है

इस वर्ष प्राथमिक लघु वन उपज समिति द्वारा साल बीज खरीदी के लिए मांग पत्र दिया गया था, जिसे जिला लघु वन उपज समिति को भेजा गया, यहां से राज्य लघु वन उपज संघ को भेजा गया था, लेकिन समर्थन मूल्य की राशि खरीदी के लिए नहीं आई है। अगले सीजन में इसके लिए पूरा प्रयास करेंगे, कि मवई क्षेत्र में साल बीज की खरीदी समिति के माध्यम से हो सके।
प्रफुल्ल त्रिपाठी
वन परिक्षेत्र अधिकारी, मवई

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