कांवड़ यात्रा देख जब भगवान से निजी रिश्ता याद आया
पिछले सप्ताह मैं दिल्ली एयरपोर्ट जा रही थी. सुबह का वक्त था और दिल्ली के रिंग रोड पर मुझे कांवड़ियों के अलग अलग समूह दिखे जो हरिद्वार से अपने अपने घरों की ओर लौट रहे थे.
ट्रकों, कार और टेंपों में भरे युवा तेज़ संगीत पर डांस करते हुए सड़कों पर बढ़ रहे थे. उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि वे किसी तीर्थयात्रा के बदले डिस्को पार्टी में हिस्सा ले रहे हैं.
अधिकांश लोगों की छाती खुली हुई थीं और उनमें से कुछ वाहनों के बीच दौड़ भी लगा रहे थे. कुछ जगहों पर सड़क वनवे थी जहां गाड़ियां रेंगती हुई दिखीं.
अपने जीवन का अधिकांश हिस्सा उत्तर भारत में बिताने के चलते मुझे मालूम है कि हर साल इस वक्त कांवड़ यात्रा होती है. सालों तक मैंने शिव भक्तों को मुश्किलों के साथ कांवड़ यात्रा देखा है, जिसमें वे नंगे पांव या पतली चप्पलों में गढ़वाल के पहाड़ों तक यात्रा करके अपने घर और शहर के मंदिरों में चढ़ाने के लिए पवित्र गंगाजल लाते हैं.
कांवड़ यात्रा की मुश्किलों के सामने उनके दृढ़ संकल्प और भक्ति भाव के लिए मेरे मन में सम्मान है. पैरों में छाले पड़ने और शरीर के हिस्सों में दर्द के बावजूद उनके चेहरों पर खुशी और यात्रा के दौरान सहयोग करने वाले लोगों से आपसी भाईचारे का भाव दिखता है. सेवाभाव भी नज़र आता है. रास्ते में पड़ने वाले लोग कांवड़ियों के लिए आराम करने की जगह और भोजन की व्यवस्था भी करते हैं.
Good job