नेहरू पर राजनाथ का बयान

in #rajnitik2 years ago

"चीन पर नेहरू जी  की आलोचना नहीं कर सकता, किसी की नीति खराब हो सकती है नीयत नहीं। बहुत सारे लोग जवाहर लाल नेहरू की आलोचना करते हैं. मैं भी एक विशेष राजनैतिक दल से आता हूं. मैं भारत के किसी भी प्रधानमंत्री के आलोचना नहीं करना चाहता. साथ ही मैं किसी भी प्रधानमंत्री की नीयत पर सवालिया निशान नहीं लगाना चाहता. नीयत में किसी की खोट नहीं हो सकता है".


निःसंदेह राजनाथसिंह जी का यह बयान स्वागतयोग्य है। बयान इनके शालीन व्यक्तित्व के अनुरूप ही है। उनका यह बयान सरकार की उस स्थापित और बहुप्रचारित नीति के खिलाफ है, जिसके तहत नेहरू का चरित्र हनन योजना के तौर पर किया जाता है। नेहरू को आजादी के अमृत महोत्सव से बाहर किया जाना यूँ ही नहीं था। यह उसी  बरसों से पोषित घृणित मानसिकता का ही नग्न प्रदर्शन था। इनकी राजनीति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर टिकी थी और नेहरू इस ध्रुवीकरण को रोकने के सबसे बड़े प्रतीक हैं, लिहाजा नेहरू इनके स्वाभाविक शत्रु हैं ही।

राजनाथसिंह का यह बयान अटल जी की विचार परंपरा से जुड़ता है, जो शालीन राजनीति की आग्रही है। 

हालांकि स्वस्थ लोकतंत्र में आलोचना के प्रति आदर रहता है, पर यह आलोचना तथ्यपरक होनी चाहिए।

नेहरू तो चीन के विश्वासघात के शिकार हुए थे, चीन का हमला अप्रत्याशित था, पर जो चीन-नीति को लेकर नेहरू को बार-बार लांछित करते हैं, वे अब चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ क्यों  कुछ नहीं बोलते? आखिर अब कौन सी विवशता है? अपने हितों के प्रति प्रतिबद्धता में यह स्खलन क्यों कर है?


 ख़ैर बात राजनाथसिंह जी की। सरकार में अब तक कोई खास प्रभावी भूमिका नजर नहीं आई उनकी। वे बस मंत्री बने रहे यही उनकी उपलब्धि कही जा सकती है।

नीति-निर्णयों को लेकर उनका बहुत कम बोलना, कुछ संकेत तो कर ही देता है। निश्चित तौर पर वे खुद को भेड़चाल से अलग रखना चाहते होंगे। कई बार उनका न बोलना अखरा है पर वह भी परिस्थितिजन्य ही रहा होगा। इस बयान से न सिर्फ़ उनके अंदर की व्यग्रता दिखती है अपितु इससे संगठन के नियंताओं के प्रति उनकी मनःस्थिति को भी समझा जा सकता है। प्रकारांतर से इसे संगठन के रवैये के प्रति असहमति के रूप में भी देखा जा सकता है।