जी हुजीरी वाली पत्रकारिता

in #rajnitik2 years ago

तारीफ़ और विरोध करने के लिए अतिरंजना और अफवाहों का सहारा लेना आज की अधिकांश टीवी पत्रकारिता का राष्ट्रवादी धर्म बन चुका है। यह अनोखा राष्ट्रवाद है जो अपने राजनीतिक विरोधियों को राष्ट्र विरोधी बताने की मुहिम चलाता है। यह चारण पत्रकारिता का युग है। यहां दो हजार की नोट में चिप होने की बात को प्रमुख चैनल में प्रमुखता से जगह दी जाती है। इस तथ्यहीन खबर को लोगों ने बहुत श्रद्धाभाव से ग्रहण किया। इन्हीं चैनलों पर आलू से सोना निकालने की बात को बहुत बेशर्मी से राहुल के साथ चिपकाकर उन्हें पप्पू बना दिया जाता है और लोग उसे चटखारे ले लेकर प्रसारित करते रहे। वायनाड के कांग्रेसी दफ़्तर में तोड़फोड़ करने वाले लोगों के संबंध में राहुल के दिए गए बयान को उदयपुर के आतताइयों से जोड़कर दिखा दिया जाना कोई संयोगवश भूल नहीं है। यह प्रायोजित है, जिनका लम्बा इतिहास रहा है। भूलें तो पकड़ में आ जाने के बाद हो जाती हैं।

राहुल द्वारा वायनाड में तोड़फोड़ करने वाले लोगों को बच्चा समझकर माफ कर देने बयान को उदयपुर से जोड़ कर दिखाना घटिया मानसिकता है। जिस बयान के लिए राहुल की तारीफ की जानी चाहिए थी, पर उल्टा उनका चरित्र हनन किया गया। उनके परिवार ने तो अपने अभिभावक/पिता के हत्यारों को भी माफ कर दिया। क्या इस सद्भावना की तारीफ नहीं होनी चाहिए राजनीतिक समाज में?

दरअसल यह उसी कुत्सित मानसिकता का हिस्सा है, जो अब तक रणनीति के तहत सफलता से प्रायोजित होती रही है। इन चैनलों ने बहुसंख्यक आबादी को छला है। लोग यूँ ही नहीं बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक सोच के हो गए हैं। इस दिशा में नियोजित तरीके से बहुत मेहनत की गई है।

 इन चैनलों के प्रोग्राम में आम आदमी की तकलीफें कभी नहीं रहीं। बेरोजगारी, मंहगाई, चीन की प्रसारवादी नीतियां और गिरती अर्थव्यवस्था कभी इनके मुद्दे न बन सके। अधिकांश विपक्षी दल के नेता जो खुद भ्रष्टाचार में लिप्त रहें हैं, वे डर के मारे इसलिए चुप्पी साधे हैं कि कहीं विरोध का खामियाजा उन्हें जेलवासी न बना दें। गलत तरीके से कमाई गई संपत्ति उन्हे सत्ता का विरोध करने से रोकती है। ये भी टीवी चैनल्स की तरह मूल मुद्दों को उठाने से बच रहे।

जी न्यूज की जी हुजूरी ने पत्रकारिता को शर्मसार किया है। जी न्यूज के पत्रकार के खिलाफ आवाजें बुलंद होना स्वागतयोग्य है। चौथे खम्भे के रूप में आपसे सत्यनिष्ठा की अपेक्षा की जाती है। अगर सरकार अच्छा करे तो बिलकुल उसको सामने लाइये लेकिन यह क्या कि आप विपक्ष का विपक्ष बनकर किसी के एजेंट की भूमिका के रूप में आ जाएं।

- संजीव शुक्ल