श्रीडूंगरगढ़ किसी तीर्थ से कम नहीं, मानव अज्ञान से बचे- आचार्यश्री महाश्रमण।
श्रीडूंगरगढ़ , धोलिया नोहरे के प्रांगण में उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं को प्रवचन देते हुए कहा श्रीडूंगरगढ़ मेरे लिए किसी तीर्थ से कम नहीं है। मुनि दीक्षा के उपरांत मैंने गुरुदेव आचार्य श्री तुलसी के पावन दर्शन यहीं किए थे। उन्होंने मनुष्य को अज्ञान से बचने की सीख देते हुए कहा कि शास्त्र स्वयं के साथ युद्ध के लिए कहता है। आचार्यश्री ने राग द्वेष, मोह, माया, लोभ जैसे मोहनीय कर्मों को बंधनकारी बताते हुए इनसे आत्मा को दूर रखते हुए शुद्धता व बुद्धता की स्थिति को लक्ष्य बनाने को कहा। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति भले ही अपनी युक्ति और बाहुबल से लाख लोगों को जीत ले, लेकिन जब तक अपनी आत्मा को नहीं जीत लेता, उसकी जीत कोई मायने नहीं रखती।श्रीडूंगरगढ़ में चातुर्मास फरमाने का आग्रह किया। प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष जतन पारख ने युगप्रधान आचार्य महाश्रमण जी का अभिनंदन करते हुए कहा कि 34 वर्षों से श्रीडूंगरगढ़ में चातुर्मास नहीं हुआ है और यहां चातुर्मास फरमा कर श्रावक समाज पर कृपा करावें। गुरुवर से ये आग्रह सभा अध्यक्ष विजयराज सेठिया तथा जैन विश्व भारती विश्व विद्यालय के वाइस चांसलर डाॅ बच्छराज दूगड़ ने भी किया। स्वागताध्यक्ष भीकमचंद पुगलिया ने आचार्य श्रीतुलसी महाप्रज्ञ साधना केन्द्र की उपादेयता बताते हुए कहा कि हमें कोई विशेष सेवा सौंपी जावे। टी. टी. एफ. के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन पारख ने कहा कि हमें भी एक सुखद अनुभूति मिले, इसलिए आपके सुदीर्घ प्रवास का अवसर दिया जाए। इस दौरान किशोर मंडल तथा महिला मंडल की ओर से सुन्दर गीतिका की प्रस्तुत की गई। ओम अर्हम भी पाण्डाल में गुंजायमान होता गया।
Jai Ho
Nice
भड़िया।
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