रायसेन जिले में उड़ने बाले डायनासोर के पंख का जीवाश्म मिले

in #raisen2 years ago

रायसेन जिले में उड़ने बाले डायनासोर के पंख का जीवाश्म मिले raisen daynasor.jpg

रायसेन मप्र

आने वाले समय में शायद पृथ्वी पर जैविक विकास का इतिहास नए सिरे से लिखे जाने की आवश्यकता पड़ेगी। नर्मदा घाटी में मिल रहे जीवाश्म तो इसी बात के संकेत कर रहे हैं। बरेली से करीब पचास किलोमीटर दूर नर्मदा के पतई घाट के किनारे 65 मिलियन वर्ष पुराने उडऩे वाले डायनासोर के पंख के जीवाश्म मिले हैं। 160 मिलियन वर्ष पूर्व स्थलीय क्रीटेशस के विकास क्रम के यह दुर्लभ साक्ष्य हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल, डेक्कन कालेज पुणे और नर्मदा महाविद्यालय होशंगाबाद के एक संयुक्त दल द्वारा नर्मदा घाटी की सभ्यता पर सर्वेक्षण तथा शोध किया जा रहा है। इस दल में शामिल अधीक्षण पुरातत्वविद् एन ताहिर, सहायक पुरातत्वविद् एम जोसफ, डेक्कन कालेज पुणे के विजय साठे और नर्मदा महाविद्यालय होशंगाबाद के वसीम खान रायसेन जिले के नर्मदा तट पतई घाट के आसपास काम करते हुए एक जीवाश्म की ओर विशेष रूप से आकर्षित हुए। जब इस दल ने इस जीवाश्म पर ध्यान केंद्रित किया तो यह बात उत्साह से सराबोर करने वाली थी कि जीवाश्म 6 5 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर पाए जाने वाले उडऩे वाले डायनासोर के हैं। आग उगलती सूरज की धूप और तेज लू को भूलकर यह दल बारीकी से निरीक्षण में जुट गया। डायनासोर के पैर की हड्डी तथा अन्य जीवाश्म देखकर इस दल को लगा कि यहां डायनासोर बहुतायत में थे। दरयाई घोड़ा के पंजा के जीवाश्म यह संकेत कर रहे थे कि नर्मदा घाटी के गर्भ में करोड़ों सालों के जैविक विकास के दुर्लभ साक्ष्य छिपे हुए हैं।

गायब हो रहे साक्ष्य

पुरातत्वविद् वसीम खान यह देखकर हैरान हैं कि उनके द्वारा चिन्हित सामग्री दूसरी बार आने पर गायब हो जाती है। इसके बाद भी उत्साहवर्धक बात यह है कि हर बार कुछ न कुछ नया नर्मदा के अंचल में मिल जाता है। प्रशासनिक स्तर पर प्राचीन अवशेषों के संरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है।

मिल रहे हैं अवशेष

1994 में नर्मदा के चौरास घाट पर मिले डायनासोर के निचले जबड़े ने सभी का ध्यान इस ओर आकर्षित कराया। इस जबड़े के जीवाश्म के बाद यहां डायनासोर के रहने की संभावनाओं के संकेत मिले तथा इस दिशा में यदा कदा काम होता रहा। दूसरी बड़ी उपलब्धि 2006 में मिली। भेड़ाघाट के समीप डायनासोर का अंडा मिला। इस अंडे को स्थानीय लोग शिवलिंग मानकर पूजा करते थे। इसके बाद बीच-बीच में डायनासोर के अंडे अन्यस्थानों पर भी मिलते रहे।

नष्ट हो रहे हैं अवशेष

नर्मदा घाटी की सभ्यता करोड़ों साल के इतिहास को अपने अंचल में समेटे हुए हैं। नर्मदा महाविद्यालय, होशंगाबाद पुरातत्ववेत्ताओं के सहयोग से इस सभ्यता पर शोध में जुटा हुआ है। हमे सबसे च्यादा निराशा इस बात को लेकर है कि संरक्षण के अभाव में विश्व के दुर्लभ अवशेष निरंतर नष्ट होते जा रहे हैं।

वसीम खान, शा. नर्मदा महाविद्यालय, होशंगाबाद

गंभीरता से हो खोज का काम

नर्मदा घाटी में मिल रहे दुर्लभ साक्ष्यों में हमारी भी जिज्ञासा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मंडल के एम ताहिर ने जब यहां आने को कहा तो मैंने इस अवसर को नहीं गंवाया। यदि इस सभ्यता की खोज का काम गंभीरता से होता है तो पृथ्वी पर जैविक विकास तथा पुरातात्विक इतिहास में कई दुर्लभ अध्याय जुड़ जाएंगे।

विजय साठे, डेक्कन कालेज, पुणे