इन पर असर डालेगा कॉमन सिविल कोड

in #raibareli2 years ago

केंद्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक उत्तराखंड से आने वाले नतीजे पूरे भारत में इस संहिता का भविष्य तय करेंगे. केंद्र सरकार ने संविधान में बदलाव के बारे में पूरे देश के लिए इसके स्वरूप और एहतियात पर भी विचार शुरू कर दिया है.

इन पर असर डालेगा कॉमन सिविल कोड

समान नागरिक संहिता देश के सभी नागरिकों के लिए विवाह की उम्र, विवाह, विवाह विच्छेद (तलाक), दत्तक (गोद लेने का अधिकार), बच्चों का अभिरक्षण (कस्टडी), पोषण भत्ता, उत्तराधिकार (विरासत), पारिवारिक संपदा का बंटवारा और दान यानी चैरिटी को लेकर एक ही कानून होगा.

SC भी दे चुका है जरूरत पर जोर

समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद हिंदू विवाह, हिंदू अविभाजित परिवार, मुस्लिम पर्सनल लॉ, पारसी लॉ या इसाई लॉ या किसी और अल्पसंख्यक धर्म के कानून जैसे धर्म आधारित अधिनियम वाले कानून की जगह एक सार्वजनिक कानून होगा. संविधान बनाते समय भी इसी की वकालत की गई थी. इसके अलावा कई बार सुप्रीम कोर्ट भी इस एकसमान कानून की जरूरत पर जोर दे चुका है.

जल्द तैयार हो जाएगा विधेयक

केंद्र सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इसके लिए सारा खाका तैयार किया जा रहा है. शीघ्र ही इस पर विधेयक तैयार हो जाएगा. इसका परीक्षण उत्तराखंड से किया जा रहा है. फिलहाल कुछ राज्य ही इसकी शुरुआत कर रहे हैं. लेकिन बाद में संसद से पारित होने के बाद राज्यों के समान नागरिक कानून केंद्रीय कानून में विलीन हो जाएंगे.

SC की पूर्व जज कर रहीं अगुआई

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के लिए बनाई गई कमेटी की अगुआई सुप्रीम कोर्ट में पूर्व जज और जम्मू कश्मीर परिसीमन आयोग की अध्यक्ष रहीं जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई कर रही हैं. कमेटी के अन्य सदस्यों में दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस प्रमोद कोहली, सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, पूर्व आईएएस अधिकारी शत्रुघ्न सिंह और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल भी शामिल हैं.

सिविल मुकदमों में आएगी कमी

सरकार के मुताबिक समान नागरिक संहिता होने से देश की अदालतों पर लगातार बढ़ते मुकदमों के बोझ को हल्का करने में भी मदद मिलेगी. अंतरधार्मिक विवाह और उनसे उत्पन्न संतानों और पारिवारिक विवादों से जुड़े मुकदमें घटेंगे. एक अनुमान के मुताबिक मुकदमों की संख्या में 20 से 25 फीसदी कमी आ सकती है. क्योंकि इन धार्मिक कानूनों की वजह से चल रहे दिवानी यानी सिविल मुकदमे अपने आप खत्म हो जाएंगे, क्योंकि फिर समान कानून आईपीसी यानी भारतीय दंड संहिता की तरह सब पर एक समान रूप से लागू होगा.

फिलहाल ये है कानून का स्वरूप

अभी हिंदू कानून वेद पुराण, स्मृति आदि के आधार पर तो मुस्लिम पर्सनल लॉ कुरान, सुन्नत, इज्मा, कयास और हदीस के आधार पर हैं. इसी तरह ईसाइयों का कानून बाइबिल, पुराने अनुभव, तर्क और रूढ़ियों के आधार पर, जबकि पारसियों का कानून उनके पवित्र धार्मिक ग्रंथ जेंद अवेस्ता पर आधारित है. सरकारी सूत्रों का कहना है कि कुछ और राज्यों में कमेटी बनाकर इस बारे में जानकारी जुटाई जा सकती है. उससे अखिल भारतीय स्तर पर कानून का खाका तैयार करने में आधारभूत मदद हो जाएगी.

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