कंगारू कोर्ट' के दौर में सांविधानिक अदालतें, प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की टिप्पणी के मायने

in #raebareli2 years ago

nv-ramana_1658850427.jpegरिटायरमेंट के पहले सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण के कई बयानों ने बर्र के छत्ते को छेड़ दिया है। मुकदमों के बोझ से लदी न्यायपालिका के सामने कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर, जजों की कमी और जजों की सुरक्षा पर उन्होंने चिंता जाहिर की। परंतु उनकी सबसे बड़ी बेचैनी सोशल मीडिया के माध्यम से चल रही 'कंगारू कोर्ट' के बढ़ते प्रचलन पर है, जिससे अधिकांश जज त्रस्त चल रहे हैं। टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में उत्तेजक बहसों से क्या न्यायपालिका पर दबाव पड़ता है? सेलिब्रिटीज और बड़े आपराधिक मामलों में मीडिया ट्रॉयल (Media Trail) से क्या न्यायिक व्यवस्था प्रभावित होती है? अनेक चर्चित मामलों की सुनवाई और फैसलों से इन सवालों का जवाब हां में दिया जा सकता है। इसके बाद सबसे मौजूं सवाल यह है कि क्या न्यायपालिका से आम जनता की उम्मीदें धुंधली हो गई हैं? इस सवाल के जवाब के लिए नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) के सबसे अहम बयान पर गौर करना जरूरी है, जिसमें उन्होंने वंचित वर्ग के उत्थान के लिए सबके प्रयास और सबके कर्तव्य का आवाहन किया है।