वह स्वतंत्रता संग्रामी जिसने रहम की अपील ठुकरा चूमा था फंदा
आजादी की लड़ाई में 18 की उम्र में शहीद बंगाल के खुदीराम बोस के बाद शहीद करतार सिंह सराभा का नाम आता है, जिन्होंने रहम की अपील ठुकरा कर 19 वर्ष की आयु में फांसी का फंदा चूमा था। उन्होंने कहा कि था कि अगर हजार जिंदगियां भी मिले तो उसे देश के लिए कुर्बान कर दूं। 24 मई 1896 को लुधियाना के गांव सराभा के धनवान किसान मंगल सिंह और मां साहिब कौर के घर जन्मे करतार सिंह सराभा को अंग्रेजों ने 16 नवंबर 1915 को लाहौर की सेंट्रल जेल में फांसी पर लटका दिया था।
आजादी के महानायक शहीद भगत सिंह करतार सिंह सराभा को अपना गुरु मानते थे और हमेशा उनकी तस्वीर जेब में रखते थे। मालवा खालसा हाई स्कूल लुधियाना से मिडिल क्लास पास करने के बाद उन्होंने ओडिशा के कटक के रविनशॉ कॉलेजिएट स्कूल से दसवीं पास की थी। करतार सिंह सराभा 1912 में शिप के जरिये अमेरिका के सान फ्रांसिस्को स्थित बर्कले यूनिवर्सिटी से उच्च शिक्षा प्राप्त करने गए और वहां जाकर गदर पार्टी में शामिल हो गए।
उन्होंने गदर अखबार भी चलाया और बतौर पत्रकार उसमें काम किया। वहीं हथियार चलाना और बम बनाना सीखा। करतार सिंह सराभा ने इतनी छोटी उम्र में हवाई जहाज चलाना भी सीख लिया था। अक्तूबर 1915 को सराभा और गदर पार्टी के अन्य सदस्य अमेरिका से कोलंबो के जरिये कोलकाता आ गए। भारत आकर अंग्रेजों के खिलाफ महासंग्राम की योजना तैयार की।
20 हजार गदरी योद्धाओं को इकठ्ठा कर अंग्रेजों पर प्रहार करने के लिए लामबंद किया लेकिन अंग्रेजों के मुखबिर किरपाल सिंह ने ब्रिटिश आर्मी के अफसर रिसालदार गंडा सिंह को गदरियों की योजना और ठिकाने की सूचना दे दी। करतार सिंह सराभा को उसके गदरी साथी हरनाम सिंह टुंडीलाट और जगत सिंह के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई और साथ ही रहम की अपील का सुझाव भी दिया गया लेकिन करतार सिंह सराभा ने रहम की अपील से इंकार करते हुए कहा कि अगर मुझे हजार जिंदगी और मिले तो देश के लिए कुर्बान कर दूं।