बंटवारे में मारे गए 10 लाख निर्दोष पंजाबी

in #punjab2 years ago

देश 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया। जाते समय अंग्रेज देश को भारत-पाक बंटवारे का ऐसा दर्द दे गए जिसके जख्म आज भी सताते हैं। आज भी ये जख्म पीड़ा दे रहे हैं। बंटवारे को तब भी सही नहीं ठहराया गया था, आज भी इसे सही नहीं माना जा रहा है। कुछ नेताओं की सत्ता की भूख ने देश में बंटवारे की लाइन खींचते हुए भारत व पाकिस्तान बना दिए। उस वक्त 10 लाख पंजाबियों को सिर्फ धर्म के नाम पर मौत के घाट उतार दिया गया। यह एशिया का सब से बड़ा नरसंहार था। जिसकी दर्दनाक घटनाएं याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं और आंखों नम हो जाती हैं। ये शब्द हैं पंजाब विधानसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर प्रो. दरबारी लाल के हैं।
प्रो. लाल कहते हैं कि जब देश के बंटवारे का एलान हुआ तो उस वक्त वह गांव गोलेके, जो पाकिस्तान स्थित जिला गुजरात में चिनाब नदी पर था, वहां रहते थे। उस वक्त उनकी आयु आठ वर्ष थी। वह गांव के ही मदरसों में शिक्षा हासिल करते थे। उनके गांव में आपसी भाईचारा था। हिंदू, मुसलमानों व सिखों में किसी तरह की नफरत नहीं थी। स्कूल में पांच-छह हिंदू बच्चे, तीन चार सिख परिवारों के बच्चे और करीब 15 मुसलमान परिवारों के बच्चे पढ़ते थे। उनके पिता लाला बरकत राम ने उनको वर्ष 1945 में गांव के बाहरवार स्थित मदरसे में पढ़ाई के लिए दाखिल करवाया था।
प्रो. लाल बचपन की घटना याद करते हुए बताते हैं कि वह मदरसे में एक शीशम के पेड़ के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे थे। तब उन्होंने दूर से आते देखा कि कुछ पठान घोड़ों पर सवार होकर गांव की तरफ बढ़ रहे हैं, वह रास्ते में महिलाओं और बच्चों को लेकर आ रहे थे। कुछ पठानों के हाथों में बंदूकें, तलवारें और भाले भी थे। जैसे ही उन्होंने पठानों को गांव की तरफ आते देखा तो उन्होंने शोर मचा दिया कि पठान आ गए।
मदरसे में पढ़ने वाले सभी बच्चे गांव की तरफ भाग गए। वह भी छोटी दीवार फांदकर घर में दाखिल हुए और मां को पठानों के आने की बात कही। पिता व्यापार के सिलसिले में बाहर गए थे। मां उन्हें और परिवार के अन्य पांच-भाई बहनों को लेकर घर की दीवार फांदकर गली में भाग गई। वहां गांव के ही एक मुसलमान परिवार ने घरों में मिट्टी के बने अनाज के भड़ोलों में छिपा दिया।