बहुत ही दिलचस्प है सिंगरा गाँव स्थित शिव मन्दिर तथा हजरत इनायत शाह की दरगाह का इतिहास।

in #public10 months ago

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मिलक । सिंगरा गांव के प्राचीन शिव मंदिर में लोगों की अटूट आस्था बनी हुई है। सावन के महीने में यहां पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पूजा करने के लिए पहुंचते हैं। मंदिर प्राचीन है इसलिए आसपास के क्षेत्र के लोग भी सावन के सोमवार को यहां भगवान शिव का जलाभिषेक करने आते हैं।पूर्व ग्राम प्रधान झुन्डे लाल ने बताया कि मंदिर का निर्माण लगभग 100 वर्षों पूर्व हुआ था ।मन्दिर के इतिहास की बात करें तो बताया जाता है कि मन्दिर निर्माण से पहले यह एक किसान का खेत हुआ करता था जो कि दूसरे धर्म से ताल्लुल रखता था। एक बार कुछ ऐसा हुआ कि जब किसान अपने खेत की खुदाई कर रहा थी अचानक उसकी कस्सी एक विचित्र से पत्थर से टकराई ये देखने के लिए की क्या है उसने थोड़ा आगे और जोर से कस्सी मारी तो अजीब आवाज के साथ चिंगारी जल उठी और उतने बीच में दूध और खून की धार बहने लगी किसान ये सब देख कर दंग रह गया और भागकर गाँव की ओर दौड़ पड़ा।उसने पूरी घटना ग्रामीणों के समक्ष रखी तो ग्रामीणों ने खेत की ओर दौड़ लगा दी। घटना स्थल पर पहुँचे ग्रामीणों ने देखा कि वहाँ दूध और खून बहुत तेजी से बह रहा था।ग्रामीणों ने योजना बनाई और उस स्थान को चारों तरफ से खोदना चालू कर दिया कुछ समय पश्चात देखा तो वह एक शिवलिंग के आकार का एक विशाल पत्थर था जिसके नीचे ख़ुदाई करने पर उसका कोई अंत देखने को नही मिल रहा था ये देख खेत स्वामी वहाँ से चला गया और कभी बापस नहीं आया। सभी ग्रामीणों ने उस जगह का पूजन कर बहाँ भगवान शिव के मंदिर के निर्माण की योजना बनाई।मन्दिर निर्माण के बाद बहाँ पर श्रद्धालुओं के आना-जाना रहने लगा तथा मंदिर की देख-रेख के लिए पुजारी जीवन लाल मन्दिर पर ही निवास करने लगे तथा सुबह-शाम बहाँ पूजा-अर्चना करने लगे।कुछ वर्षों पश्चात उनके गोकिल राम मंदिर में पुजा तथा देख-रेख करने लगे तथा गोकिल राम ने अपने ताऊ जीवन लाल की समाधि उसी मन्दिर परिसर में बनाई जो कि बर्तमान समय में भी मौजूद है।गोकिलराम के बाद मन्दिर की सेवा करने के लिए कई साधुओं का आना-जाना लगा रहा फिर लगभग 2 वर्षों तक मन्दिर की बागडोर नन्नूकी प्रसाद के हाथों में रही उनके बाद वर्तमान में मन्दिर की देख-रेख तथा पूजा का कार्य पल्लू(पन्नालाल) संभाल रहे हैं।मंदिर में सावन व शिवरात्रि को व्यापक स्तर पर मनाया जाता है। सावन महीने में आने वाले हर सोमवार को मंदिर में भांग, धतूरा, बेलपत्र व पूजा सामग्री सहित अन्य सामान लेकर श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है। मंदिर में सावन में रोजाना रुद्राभिषेक भी किया जाता है। इसके अलावा सावन माह में व्रत रखने वाले श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।
वहीं गाँव में हज़रत इनायत शाह की मज़ार है जोकि कई सौ वर्ष पुरानी है। वर्तमान में यहाँ पक्की मज़ार बनी हुई है बताया जाता है कि गाँव स्थित मज़ार का इतिहास काफी पुराना है यहां बुजुर्गों के द्वारा कई बार शेर देखे गए थे यहां पर शेरों के आना-जाना लगा रहता था जो कि हज़रत इनायत शाह की मज़ार पर सलामी देने आया करतें थे। गाँव निवासी महमूद मियाँ ने बताया कि जिस समय मज़ार कच्ची हुआ करती थी लगभग सवा सौ वर्ष पूर्व उस समय उनके नाना गुलाम रसूल मियाँ मज़ार की देख-रेख किया करते थे। उन्होंने सबसे पहले जुमेरात के दिन शेर पर बैठे हज़रत इनायत शाह को देखा था फिर उन्होंने ग्रामिणों को इसके बारे में बताया और कहा कि कच्ची मज़ार को ध्वस्त कर वहाँ पक्की मज़ार का निर्माण करो तथा यहां आना-जाना करो । उन्हीं के समय से मज़ार पर उर्स लगाना चालू किया गया। मज़ार पर उर्स प्रत्येक वर्ष अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक नवंबर माह की तारीख़ 8,9 व 10, 3 दिन का लगता चला आ रहा है।सभी ग्रामीणों ने मिलकर योजना बनाई और कच्ची मज़ार के स्थान पर पक्की मज़ार का निर्माण किया जाना चाहिये जब मज़ार के पक्के निर्माण के लिए कुछ राजगीर मिस्त्री मज़ार पर पहुचे तो उन्होंने जो वहां देखा तो वह देखकर दंग रह गए ,शेर को देख उनके पसीने छूट गए कुछ समय पश्चात उन्होंने देखा कि शेर पर बैठे हज़रत इनायत शाह जिसकी यह मज़ार है शेर के ऊपर बैठे और अन्दर जंगल की तरफ चले गए। लोगों ने कई बार मज़ार के अन्दर सलामी देने आए शेर को देखा था। एक दिन वो आया जब गुलाम रसूल मियाँ की देख-रेख में कच्ची मज़ार के स्थान पर पक्की मज़ार का निमार्ण कार्य प्रारम्भ हुआ और कुछ ही महीनों में पक्की मज़ार बनकर तैयार हो गयी। धीरे-धीरे मज़ार पर इबादतें तथा फ़ातियें पड़ने के लिए जायरीनों का जमघट लगने लगा , सभी ग्रामीण मज़ार पर मन्नतें माँगने आने लगे।मज़ार की सेवा कर रहे गुलाम रसूल मियाँ के दारा लगभग 60 वर्षों तक देखभाल की गई उनके नवासे महमूद मियाँ ने बताया कि उनके नाना हज़रत इनायत शाह की मज़ार पर लगभग 60 वर्षों तक मुताबल्ली रहे और एक दिन ऐसा आया कि वे संसार से पर्दा कर गए । गुलाम रसूल मियाँ के पर्दा करने के बाद उनकी मज़ार को हज़रत इनायत शाह की मज़ार के बगल में ही बनवाया गया उसके बाद मज़ार की देख-रेख महमूद मियाँ करने लगे तथा हजरत इनायत शाह के उर्स के लगभग 10 दिन बाद गुलाम रसूल मियाँ का उर्स लगने लगा जो कि 2 दिन का रहता है।मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा मज़ार पर उर्स की शोभा बढ़ाने के लिए बदायूं के मशहूर हाजी तस्लीम आरिफ बुलाया जाता है तथा दूर-दराज से कब्बाल भी बुलाएं जाते हैं ये कार्यक्रम प्रत्येक वर्ष किया जाता है। ग्राम निवासी महमूद मियाँ के द्वारा बताया गया कि मज़ार पर ऐसे लोगों जो कि किसी बीमारी या मुसीबतों में होते है उनकी मुरादे पूरी होतीं है तथा निसंतानों को संतानें प्राप्त होती हैं मज़ार की सेवा में गुलाम रसूल मियाँ के बाद लईक खाँ उनके बाद बब्बू मियाँ जो कि हाल ही में उनका इन्तकाल हुआ है तथा वर्तमान में मज़ार की सेवा नज़ाकत अली के द्वारा की जा रही है।

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