रिद्धि सिद्धि के साथ खड़े गणपति का विशेष मंदिर काजू बादाम व सिक्को से किया जाता है शृंगार

in #pratapgarh2 years ago

तुरंत सुनवाई वाले खड़े गणपति का विशेष मंदिर काजू बादाम व सिक्को से किया जाता है शृंगार

IMG_20220830_214806.jpg
राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले
के दक्षिण में तालाब की तलहटी के नीचे दीपनाथ (दीपेश्वर) महादेव विराजित हैं। यहां पर एक गणेश मंदिर भी है। इसकी विशेषता यह है कि यहां चिंता हरण खड़े गणपति का मंदिर उदयपुर संभाग में सिर्फ यहीं है। बाकी सभी जगह गणेशजी विराजित प्रतिमाओं में है।

इतिहास के पन्नों में इस मूर्ति और मंदिर की कई रोचक जानकारियां हर किसी को अपने तरफ आकर्षित करती। माना जाता है कि इस तरह का मंदिर जिस में खड़े गणपति के साथ रिद्धि सिद्धि भी उनके साथ खड़ी अवस्था में मौजूद है जिससे कई लोगों का मानना है कि जिससे यहां पर तीव्रता से सुनवाई होती है और मन्नत मांगने वालों का तत्काल काम होता है यह मूर्ति और मंदिर 18 वीं सदी के यानी कि करीब 200 साल पुराने है। इसे गुजरात से आए 5 टकीवाल (टकसाल) ब्राह्मण समाज की ओर से बनाया गया था।

जिनके वंशज आज भी प्रतापगढ़ में रहते हैं। इस कारण आज भी यहां गणपति जी प्रतिमा के शृंगार के दौरान काजू बादाम के साथ सिक्के भी काम में लिए जाते हैं। गणेशजी और पूजा अर्चना के लिए तो यह मंदिर खास है ही लेकिन अब जिले सहित आसपास व अन्य क्षेत्रों के लोगों के लिए मन्नतों की पूरी हो जाने पर पूजा अर्चना करने के लिए भी यह मंदिर एक अलग पहचान बना चुका है।

इस मंदिर, प्रतिमा और इसकी खासियत के इतिहास की जानकारी पिपलोदा के औदीच्य ब्राह्मण जाति के पूर्व जागीरदार ओंकार लाल व्यास की छठी पीढ़ी के हरीश व्यास और मंदिर के पुजारी मनोज मेनारिया बता रहे हैं। 18 वीं सदी में महारावत प्रताप सिंह ओंकार लाल व्यास को प्रतापगढ़ कामदार के रूप में नियुक्त किया था।

पांच टकीवाल ब्राह्मण परिवारों ने कराया गणपति मंदिर का निर्माण

हरीश व्यास बताते हैं कि दीपेश्वर महादेव मंदिर महारावत सावंतसिंह के कुंवर दीपसिंह ने बनवाया। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में महारावत प्रतापसिंह ने प्रतापगढ़ शहर की सुरक्षा के लिए आठ दरवाजे और शहर के चारों ओर परकोटा बनवाया था। महारावत प्रतापसिंह के वंशज महारावत सालमसिंह को ओक्वाइस का अधिकार व क्षमता होने से चांदी व तांबे के सिक्के ढलवाने के लिए टकसाल की शुरुवात के लिए गुजरात से पांच कुशल ब्राह्मण परिवार को प्रतापगढ़ बुलवाया। बाद में ये कर्म के कारण टकीवाल ब्राह्मण कहलाए। जिनके वंशज आज भी प्रतापगढ़ में रहते हैं। इन पांच परिवारों ने भगवान गणेश के प्रति अटूट आस्था के कारण दीपनाथ में खड़े गणपति, नवग्रह मंदिर तथा श्री चंद्र शेखर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। जिनकी सेवा पूजा लगभग पिछले दो सौ वर्षों से हो रही है।

इतिहास के पन्नों से दीपेश्वर स्थित चिंता हरण खड़े गणपति की कहानी, औदीच्य ब्राह्मण जाति के पूर्व जागीरदार की छठी पीढ़ी के हरीश व्यास की जुबानी - रियासत कालीन सिक्कों की टकसाल चलाने के लिए गुजरात से आए थे 5 ब्राह्मण परिवार, प्रतापगढ़ में आज भी इनके वंशज, टकसाल चलाने की वजह से नाम टकीवाल ब्राह्मण पड़ा, सिक्कों का काम करते थे इसलिए आज भी सिक्कों से सजाए जाते हैं