सशर्त एजेंडा पास कराना चाहता था गहलोत गुट,पर्यवेक्षक बोले- ये कांग्रेस के इतिहास में कभी नहीं हुआ
राजस्थान के नए मुख्यमंत्री की लड़ाई 'गद्दार' और 'बफादार' के बीच उलझ गई है। सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावनाओं के बीच गहलोत गुट हाईकमान से ही भिड़ गया। उन्होंने साफ कह दिया है कि 2020 में बगावत करने वाले विधायकों को छोड़कर ही सीएम बनाया जाए। इन विधायकों ने 19 अक्टूबर तक पार्टी की किसी भी बैठक में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया है। यानी कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने तक गहलोत गुट के विधायक पार्टी की किसी भी बैठक में शामिल नहीं होंगे। उधर, विधायक दल की बैठक में नहीं गहलोत गुट के विधायकों का नहीं आना अनुशासनहीनता माना गया है
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार गहलोत गुट के विधायकों के विधायक दल की बैठक में नहीं पहुंचने पर पर्यवेक्षक अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे कड़ी प्रतक्रिया दी। उन्होंने कहा, विधायकों का इस तरह बैठक में नहीं आना अनुशासनहीनता है। विधायक दल की बैठक के दौरान उन्होंने खुद एक बैठक बुला ली। यह भी अनुशासनहीनता है, अब यह देखा जाएगा कि इन विधायकों पर क्या कार्रवाई की जा सकती है। हम विधायक से अलग-अलग मिलकर उनकी राय जानना चाहते थे, लेकिन वह सामूहिक रूप से मिलने पर अड़े रहे।
उनका कहना था कि गहलोत समर्थक 102 विधायकों में से ही सीएम बनाया जाए। वह अपनी बात को एजेंडे में शामिल करने की बात कह रहे थे, जबकि एजेंडा सिर्फ एक लाइन का होता है। कांग्रेस के इतिहास में सशर्त एजेंडा कभी पास नहीं हुआ है। विधायकों ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव तक सीएम उम्मीदवार पर चर्चा नहीं कराने की मांग रखी, लेकिन ऐसा संभव नहीं है। यह हितों के टकराव का मामला है
नाराज विधायकों ने रखीं यह तीन शर्तें
अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद सीएम पद से इस्तीफा देंगे।
जो भी मुख्यमंत्री बनेगा वह 102 विधायक में से हो जिन्होंने 2020 में सचिन की बगावत के बाद सरकार बचाने में साथ दिया था।
प्रदेश का मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सहमति के बाद ही बनाया जाए।
Please like my posts