कहो तो कह दूं
कहो तो कह दूं
पं अजय मिश्र
धनबल के बूते कुर्सी हथियाने का प्रयास तो क्या ऐसे में होगा नगर विकास
तमाम स्वार्थो के चलते लोग साम-दाम-दंड भेद के बूते राजनीति में आना चाहते हैं। जन सेवा की भावना अब गौण हो चली है। सियासत में बढ़ती तिजारत की प्रवृत्ति से यहां पैसे का खेल एक लाइलाज बीमारी बनता जा रहा है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्लोबल इंटीग्रिटी द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि राजनीति में धनबल को रोकने में हम फिसड्डी साबित हुए हैं। जनता की भलाई के लिए बनाई जाने वाली नगरपालिका,और जनपद व जिला पंचायत आधुनिक लोकतंत्र में विकास योजनाओं का क्रियान्वयन कराने व नीतियों के बनाने वाले होते हैं । जनता द्वारा चयन किए जाने के बाद पार्षद ,जिला पंचायत सदस्य व जनपद सदस्य लोग अपने वोट से नगर पालिका ,जिला और जनपद अध्यक्ष को चुनते हैं। शुरुआती दौर में समाज सेवी रही निकायों की राजनीति कालांतर में एक पेशे का रूप अखतयार करती जा रही है। इसका ताजा उदाहरण हाल ही में हुए ये चुनाव हैं। चुनाव के दौरान समाजसेवा की भावना रखने वाले, धनबल के आगे हथियार उठाने का दम ही नहीं भर पाये, उनकी जगह तिकड़मबाज और व्यापारी किस्म के लोगों ने ले ली और लाखों देकर खरीद फरोखत शुरू कर दी । अध्यक्ष की कुर्सी पाने खुलेआम धनबल का इस्तेमाल देखा जा रहा है और इस मामले में चुनाव आयोग ने सिर्फ गाल बजाने का ही काम किया है, लेकिन इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता है कि धन के बगैर इस राजनीति में सफलता अपवाद ही है। राजनीति में बढ़ते धनबल की प्रवृत्ति आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।धनबल के सहारे सत्ता के शीर्ष पर पहुचा जनता का कितना विकास करेगा इसका सहज ही अंदाज़ आप लगा सकते हैं बहरहाल आप तो इस बदली हुई राजनीति का मज़ा लीजिए और इन सबके बीच समय मिले तो आप चिंतन करिये की हम किधर जा रहे हैं
बहुत शानदार स्टोरी
सत्य है 🖕
बहुत ही अच्छा लिखा है
Good story
आप सभी का धन्यवाद
super
बहुत ही उम्दा लिखे हैं
एकदम सटीक और सही
Good news
बहुत सही सर जी👌
Sahi h sir ji