हमारी बस्तियों में सूखी झीलों के सिवा क्या है..
परिंदों की कतारें उड़ न जातीं तो क्या करतीं,
हमारी बस्तियों में सूखी झीलों के सिवा क्या है..
पाँव हौले से रख कश्ती से उतरने वाले
जिंदगी अक्सर किनारों से ही खिसका करती है
पुरानी शाखों से पूछो जीना कितना मुश्किल है,
नये पत्ते तो बस अपनी अदाकारी में रहते हैं!
परिंदों की कतारें उड़ न जातीं तो क्या करतीं,
हमारी बस्तियों में सूखी झीलों के सिवा क्या है..