कविता

in #poem2 years ago

न आकाश गंगा बड़ी है
न ब्रह्माण्ड
न प्रकृति , न संस्कार
वो जो बच्चे को बाहों मे लेकर चूमता है
वो पिता बढ़ा है ,
हां !
वो ही पिता
जो पसीने से तरबतर
मेहनत से थक कर चूर

बस ! वही बढ़ा होता है