कविता
जन्म भूमि के मूक क्रूदन का साक्षी हू ।
मै गगन ,मैं शून्य ,मैं ही पक्षपाती हु ।।
सृजन पर संवलता अंधेरों का साथी हू ।
मन्दिर ,मस्जिद को तोड़ता मैं मनुष्य जाति हू ।।
जन्म भूमि के मूक क्रूदन का साक्षी हू ।
मै गगन ,मैं शून्य ,मैं ही पक्षपाती हु ।।
सृजन पर संवलता अंधेरों का साथी हू ।
मन्दिर ,मस्जिद को तोड़ता मैं मनुष्य जाति हू ।।
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