PM इंदिरा को हराने के 3 साल बाद बागपत में फूंका था बिगुल, राजनारायण के प्रदर्शन से हिले थे चरण सिंह

in #pm2 years ago

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले ने राजनीति को काफी प्रभावित किया है। यूपी में महिलाओं के प्रति बर्बरता के मामले काफी ज्यादा गरमाए हुए हैं। इन मामलों ने देश और प्रदेश की राजनीति को कई बार प्रभावित किया है। लखीमपुर खीरी में दो बहनों की घर से खींचकर ले जाकर रेप किया गया। हत्या कर दी गई। मारकर लड़कियों के शव को पेड़ से टांग दिया गया। इस केस ने उन पुरानी तमाम घटनाओं को याद दिला दिया है, जिसने समय-समय पर प्रदेश की राजनीति को प्रभावित किया। पश्चिमी यूपी में महिला अत्याचार के मामले लगातार आए हैं। 80 के दशक में कई ऐसे मामले आए थे, जिसने यूपी की राजनीति को काफी प्रभावित किया था। इंदिरा गांधी को हराकर देश भर में चर्चा के केंद्र में आए राजनारायण ने उस समय इस लड़ाई को लड़ी थी। इसने तत्कालीन केंद्र सरकार तक पर सवाल खड़े कर दिए थे। वहीं, पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेता और प्रधानमंत्री पद से हाल में ही हटे चौधरी चरण सिंह भी उनके आंदोलन से हिल गए थे।
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PM इंदिरा को हराने के 3 साल बाद बागपत में फूंका था बिगुल, राजनारायण के प्रदर्शन से हिले थे चरण सिंह, जानिए कहानी
Curated by राहुल पराशर | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 17 Sept 2022, 10:01 am
Raj Narain Baghpat Protest Story: यूपी की राजनीति के एक दमदार चेहरे राजनारायण ने वर्ष 1980 में महिला अधिकारों की बड़ी लड़ाई लड़ी थी। बागपत में वे प्रदर्शन में शामिल होकर तत्कालीन केंद्र सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थी। साथ ही, चौधरी चरण सिंह के लिए भी परेशानी खड़ी कर दी है।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले ने राजनीति को काफी प्रभावित किया है। यूपी में महिलाओं के प्रति बर्बरता के मामले काफी ज्यादा गरमाए हुए हैं। इन मामलों ने देश और प्रदेश की राजनीति को कई बार प्रभावित किया है। लखीमपुर खीरी में दो बहनों की घर से खींचकर ले जाकर रेप किया गया। हत्या कर दी गई। मारकर लड़कियों के शव को पेड़ से टांग दिया गया। इस केस ने उन पुरानी तमाम घटनाओं को याद दिला दिया है, जिसने समय-समय पर प्रदेश की राजनीति को प्रभावित किया। पश्चिमी यूपी में महिला अत्याचार के मामले लगातार आए हैं। 80 के दशक में कई ऐसे मामले आए थे, जिसने यूपी की राजनीति को काफी प्रभावित किया था। इंदिरा गांधी को हराकर देश भर में चर्चा के केंद्र में आए राजनारायण ने उस समय इस लड़ाई को लड़ी थी। इसने तत्कालीन केंद्र सरकार तक पर सवाल खड़े कर दिए थे। वहीं, पश्चिमी यूपी के कद्दावर नेता और प्रधानमंत्री पद से हाल में ही हटे चौधरी चरण सिंह भी उनके आंदोलन से हिल गए थे।
Raj Narain Baghpat

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बागपत में वर्ष 1980 में महिलाओं पर अत्याचार के मामलों में बड़ा प्रदर्शन हुआ था। महिलाओं ने बढ़ रही हिंसा के मामलों को लेकर प्रोटेस्ट का आयोजन किया। आम लोगों का साथ मिला। इसमें रायबरेली से सांसद बने राजनारायण को भी आमंत्रित किया गया था। राजनारायण इस प्रोटेस्ट में शामिल हुए थे। उस समय तक केंद्र से मोरारजी देसाई की सरकार हट चुकी थी। चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में सरकार चल रही थी। राजनारायण भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के पद से मुक्त हो चुके थे। ऐसे में पश्चिमी यूपी में राजनारायण की सक्रियता बढ़ने लगी थी। माना जा रहा था कि इंदिरा गांधी के बाद उनके निशाने पर चौधरी चरण सिंह आ गए हैं। आने वाले समय में ऐसा हुआ भी। चौधरी चरण सिंह के खिलाफ राजनारायण खड़े हो गए। तब चरण सिंह ने अपने समर्थकों को उनके खिलाफ किसी प्रकार का हमला न करने की अपील की थी। बहरहाल, चर्चा महिला उत्पीड़न के मामलों की। इस मामले को लेकर चार दशक पहले भी यूपी की राजनीति खासी गरमाई थी।
80 में आया था मामला

वर्ष 1980 में त्यागी केस बागपत में सामने आया था। गाजियाबाद निवासी ईश्वर त्यागी अपने दो साथियों और पत्‍‌नी माया त्यागी के साथ बागपत के पास एक शादी में शरीक होने आए थे। बागपत में उनकी कार पंचर हो गई। कार ठीक करने के दौरान बागपत में तैनात एक एसआई नरेंद्र सिंह के साथ ईश्वर त्यागी और उनके साथियों की कहासुनी हो गई। नरेंद्र सिंह उस समय तो वहां से चला गया। कुछ ही देर बाद अपने कुछ साथी पुलिसकर्मियों के साथ वापस लौटा। नरेंद्र सिंह ने ईश्वर त्यागी और उनके दोनों साथियों की गोली मारकर हत्या कर दी। ईश्वर की पत्‍‌नी माया त्यागी को पूरे बाजार में निर्वस्त्र घुमाया। बाद में उनके खिलाफ कई मुकदमें दर्ज कर दिए। आरोप था कि पुलिसकर्मियों ने माया के साथ दुष्कर्म भी किया। इस प्रकरण के बाद महिला आन्दोलन का गुस्सा फूटा, जन आंदोलन तेज हुआ। इसकी गूंज लखनऊ और दिल्ली तक पहुंची थी।
राजनारायण ने लगातार उठाया मुद्दा
राजनारायण लगातार महिला अधिकारों की बात करते थे। समाजवाद के प्रबल समर्थक राजनारायण ने महिला अधिकारों को लेकर लड़ाई लड़ी। इस कारण जब भी कोई विवादित मसले पर प्रोटेस्ट होता था, तो राजनारायण को उसमें आमंत्रित किया जाता था। राजनारायण को राम मनोहर लोहिया के हनुमान के तौर पर भारतीय राजनीति में देखा जाता है। महिला अधिकरों को लेकर भी उन्होंने इस मामले को जोरदार तरीके से उठाया। लेकिन, उनकी सबसे बड़ी खासियत थी कि उन्होंने जीवनपर्यंत अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। 31 दिसंबर 1986 को जब उनका निधन हुआ तो लोगों को उनकी लोकप्रियता का अहसास हुआ था। बिना बुलाए ही हजारों लोग उनकी शव यात्रा में सड़कों पर थे।
ऐसे लोकप्रिय हुए थे राजनारायण
राजनारायण अपनी बात जोरदार तरीके से रखने के लिए जाने जाते रहे। 4 मार्च 1953 को यूपी के विधानसभा में जो कुछ हुआ, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। तब राजनारायण प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की समस्या उठाने पर अड़े हुए थे। उन्हें सदन से घसीट कर निकाला गया। सदन में मार्शल बुलाए गए। संपूर्णानंद सरकार को इसके लिए काफी आलोचना झेलनी पड़ी। इस पूरे वाकये में राजनारायण को लगी चोटों का दर्द बाद में कांग्रेस को काफी भारी पड़ा।
1971 के चुनाव से बदली स्थिति
वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण खड़े हो गए थे। जनसरोकार की राजनीति करने वाले राजनारायण चुनाव हार गए, लेकिन इस रिजल्ट के खिलाफ वे कोर्ट में चले गए। वर्ष 1975 में इलाहाबाद हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया। इंदिरा गांधी के निर्वाचन को लेकर दी गई चुनौती को सही पाया गया। कोर्ट ने इंदिरा गांधी के 6 सालों तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया। इसके बाद देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी गई। बाकी, इतिहास है। यह राजनारायण की धुन का ही परिणाम था। वे जो ठान लेते थे। करके दिखाते थे।