शहर का शोर और जिंदगी की कांव-कांव...पितृ पक्ष में ढूंढे नहीं मिल रहे कौवे

in #pitripaksh2 years ago

एक फिल्मी गाना है ‘झूठ बोले कौवा काटे, काले कौवे से डरियो...’ लेकिन आज स्थिति इस गीत से बिल्कुल अलग है। अब तो कौवे ही लोगों से दूर कहीं चले गए हैं। यही वजह है कि पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर कौवों को भोजन खिलाने यहां-वहां घूम रहे लोगों को कौवे ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। शहरों में भोर से ही बढ़ रहा शोर और अपनी जिंदगी में उलझनों की कांव-कांव के कारण लोग पक्षियों की भूख-प्यास भी भूल चुके हैं, ऐसे में बाकी पक्षियों की तरह कौवे को हमसे दूर हो गए हैं।एक समय था जब शहर और गांव हर जगह कौवों का झुंड दिखाई देता था। चिड़िया और कौवे घर की छत और आंगन में सूख रहा अनाज खाते थे। लोग पक्षियों को दाना डालते थे। सुबह घर की छत पर कौवा कांव-कांव करता था तो कहते थे कि कोई मेहमान आने वाला है। लेकिन अब यह कांव-कांव शायद ही कभी सुनाई देती हो। ऊंचे पक्के मकानों और अपार्टमेंटों में पक्षियों की भूख-प्यास कहीं दूर उड़ गई। वहीं बिजली के तारों का जंजाल और शहरों में घने पेड़-पौधों की कमी से कौवे पितृ पक्ष के दौरान भी नहीं दिख रहे। ललितपुर के मसौराकलां निवासी ग्रामीण अमित और आशीष बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में कम शोरगुल, अनाज की उपलब्धता और पेड़ों के चलते अभी भी कौवे दिखते हैं।पहले हमारे दादा-परदादा की श्राद्ध होती थी तो घाट से लेकर घरों की छत तक कौवे दिखते थे। दिनभर उनकी कांव-कांव सुनाई देती थी। लेकिन अब अपार्टमेंटों और कॉलोनियों के कारण कौवे दिखते ही नहीं हैं। कोई इस पर ध्यान भी नहीं दे रहा है। अपनी व्यस्तता में पशु-पक्षियों को कोई देखता ही नहीं है।Screenshot_20220912-141433.jpg