राजस्थान का अमरनाथ: कुदरत का अद्भुत नजारा है परशुराम महादेव

IMG-20220613-WA0018.jpg
(प्रस्तुत फ़ोटो आज सोमवार का ही हैं)

राजस्थान के पाली जिले के सादड़ी से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित परशुराम महादेव तीर्थ प्रकृति एवं भक्ति का संगम हैं। प्राकृतिक गुफा में उभरा प्राकृतिक शिवलिंग श्रद्धालुओं की आस्था एवं पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। प्रतिवर्ष लाखों लोग दूरदराज से दर्शनार्थ पहुंचते हैं।
यहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि और श्रावण शुक्ला षष्टमी व सप्तमी को विशाल मेलों का आयोजन होता है, तब श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। श्रावण व भाद्रपद पूरे दो माह हर रोज मेले सा माहौल रहता हैं।
यह स्थल दिल्ली-अहमदाबाद रेल लाईन पर पाली जिले के फालना स्टेशन से 14 किलोमीटर व सादड़ी से आगे 12 किलोमीटर की दूरी पर है । कुंड तक सड़क मार्ग की यात्रा के लिए वाहन सुविधा उपलब्ध है। राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ से दस,केलवाड़ा से 11 व उदावड़ से 5 किलोमीटर का पगडंडी रास्ता है।
हरी-भरी अरावली पर्वत श्रृंखलाओं के बीच समुद्रतल से 3995 फीट की ऊंचाई पर देवाधिदेव परशुराम महादेव की गुफा अवस्थित हैं। सादड़ी से एक किलोमीटर की दूरी पर परशुराम महादेव की बगेची नामक स्थान पर एक शिव मंदिर मौजूद है ।
आगे के 9 किलोमीटर लम्बे मार्ग में प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। यह मार्ग तय होने पर कुण्ड पर पहुंच जाते है। आगे 2 किलोमीटर की पैदल दुर्गम पहाड़ी यात्रा के लिए नवीन उत्साह व स्फूर्ति का संचार करती है ।
कुंड से थोड़ा ऊपर एक नव-निर्मित भगवान शंकर का मंदिर है, जिसमें शंकर पार्वती, गणेश व परशुराम की मनमोहक प्रस्तर प्रतिमाएं है। प्रामाणिक जानकारी के अनुसार करीब 21 वर्ष पहले द्वारिका जाते हुए गोविन्दा स्वामी परशुराम महादेव के दर्शनार्थ आए थे। मूलतः मुद्रास के सेवानिवृत अभियंता गोविन्द स्वामी उर्फ मद्रासी बाबा ने इसे हमेशा के लिए अपना साधना स्थल चुन लिया था। यहा उनकी समाधि हैं।
IMG-20160801-WA0061.jpg
(file photo)
यहां से परशुराम महादेव की मुख्य यात्रा लगभग 200 सीढ़ियो की खड़ी चढ़ाई से प्रारंभ होती है। जाने का पहाड़ी मार्गी बड़ा दुर्गम व संकरा है। लगभग 1 किलोमीटर की पहाड़ी चढ़ाई के बाद नजर आता है एक आश्रम जैसी जगह। जिसे अमरगंगा प्याऊ नाम से जाना जाता है।
यहां से और थोड़ा रास्ता तय करने के पश्चात परशुराम महादेव की प्राचीन गुफा और विश्राम स्थल दृष्टिगोचर होते है । लेकिन इस गुफा तक पहुंचने के लिए पुन: घुमावदार रास्ते में बनी लगभग ढाई सौ सीढ़िया चढ़नी पड़ती है, जो हमें 104 मीटर ऊंचाई पर ले जाती है। इतने ऊंचे और दुर्गम रास्ते को भी बच्चे बूढ़े सभी यात्री 'परशुराम महादेव की जय हर हर महादेव' और 'जय शिवशंकर बमभोले' आदि जय जय कार करते हुए आसानी से तय कर देते है ।
जनश्रुति के अनुसार परशुराम ने अपने फरसे से पहाड़ फाड़कर गुफा बनाकर शिवलिंग स्थापित कर तपस्या की थी । धरा को इक्कीस बार क्षत्रिय विहीन करने का प्रण करने वाले परशुराम का जन्म अग्निपूजक भृगुओं के कुल में जमदग्नि के कनिष्ठ पुत्र के रूप में वैशाख शुक्ला तृतीया को हुआ था । इसी गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग की आराधना करके देश में तत्कालीन अधिपतियों की प्रजाध्वंसक नीति के विरुद्ध अपनी शक्ति संचय कर दुष्टों का संहार किया था।
इस गुफा के अन्दर की और सामने एक छोटी गुफा भी है। कहते है किसके तलघट में बैठकर परशुराम ने तपस्या की।
IMG-20160801-WA0057.jpg
(file photo)

Sort:  

कुदरत का करिश्मा हैं परशुराम महादेव

अच्छी खबर